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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सक्षम गुरू भगवंतों आदि को उनके बरसों से अपेक्षित ग्रंथ यहाँ से सहज ही मिल जाते हैं और उनके अंतस्थल के हर्षोद्गार भरे आशीर्वचन मिलते हैं. वह घड़ी संस्था व संस्था के अधिष्ठाताओं एवं कार्यकर्ताओं के लिए सबसे धन्य होती है. समग्र कार्य दौरान पूज्य आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी व श्रुताराधक पूज्य मुनिराज श्री अजयसागरजी की ओर से प्राप्त प्रेरणा व प्रोत्साहन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है. हम पूज्यश्री एवं उनके शिष्य मंडल के चरणों में श्रद्धावनत हैं. ___ मुद्रित ग्रंथों के आधार पर कृति संपादन हेतु श्री रामप्रकाश जगदीश झा, तथा प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु श्री संजय सोमाभाई गुर्जर तथा ग्रंथालय विभाग के अन्य सभी सहकार्यकरों को त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक धन्यवाद. जीर्ण, चिपकी व फफूंदग्रस्त आदि हस्तप्रतों के पुनरुद्धार एवं रख-रखाव के कार्यों में सहयोगी बननेवाले सम्राट संप्रति संग्रहालय के श्री आसीत वस्तुपालभाई शाह को भी हम धन्यवाद ज्ञापन करते हैं. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य खंड १.१.१ के प्रकाशन के बाद आए अभिप्रायों तथा त्रुटियों की ओर ध्यान आकर्षित करने हेतु सभी संबंधित महानुभावों, विद्वानों का तथा विशेष रूप से प.पू. आचार्य श्री मुनिचंद्रसूरीश्वरजी म. तथा प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के निदेशक श्री विनयसागरजी के प्रति हम कृतज्ञता सहित आभार प्रदर्शित करते हैं. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानी पूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के रहते क्वचित भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्ररूपणा के लिए हम त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडम् देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रही भूलों हेतु हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, जिससे अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. -संपादक मंडल. कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा इस परियोजना के तहत सूचीपत्र में मुख्य तीन विभाग किए गए हैं.१ हस्तप्रत माहिती. २ कृति माहिती. ३ विद्वान- व्यक्ति माहिती. यद्यपि कम्प्यूटर में सभी तरह की सूचनाएँ विस्तृतरूप से भरी गई हैं एवं आगे भी उनमें परिष्कार, विस्तार जारी रखने का आयोजन है, तथापि प्रत्येक विभाग में मात्र तत्-तत् विभाग की सूचनाएँ शक्य विस्तार से देकर अन्य विभागों की संबद्ध सूचनाओं को आवश्यक हद तक संक्षेप में ही दिया जाएगा. इन संक्षिप्त सूचनाओं की विस्तृत माहिती के लिए संबद्ध विभाग के सूचीपत्र की अपेक्षा रहेगी. उपयोगिता एवं अनुकूलता के अनुसार उपरोक्त तीनों विभागों के सूचीपत्रों के क्रमशः प्रकाशन का आयोजन है. यहाँ पर सूची प्रकाशन रूपरेखा की मूल अवधारणा में हुए परिवर्तनों, परिवर्धनों के साथ संक्षिप्त ढांचा ही दिया गया है, विशेष विस्तार हेतु कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य खंड १.१.१ में पृष्ठ २२ से २४ देखें. १. हस्तप्रत विभाग इस विभाग में महत्तम उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए कृति की प्रधानता के अनुसार निम्न वर्ग किए गए हैं. ये सूचियाँ यथोपलब्ध प्रत क्रमांक के अनुक्रम से होगी. १.१ जैन कृति वाली प्रतें, १.२ धर्मेतर साहित्यिक आदि कृति वाली प्रते, १.३ वैदिक कृति वाली प्रतें, १.४ शेष धर्मों की कृति वाली प्रतें. इनमें प्रथम, हस्तप्रत केंद्रित इस सूची में सूचनाएँ दो स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर : इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ उपयोगिता एवं सूची पुस्तक के कद की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए विविध अनुच्छेदों में शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. (२) कृति माहिती स्तर : इस द्वितीय स्तर पर प्रत में रही कृतियों का निर्णय करने हेतु आवश्यक लघुतम सूचनाएँ ही दी गई हैं. पुस्तक के कद को मर्यादित रखने के लिए भी यह आवश्यक था. कृति की शक्यतम विस्तृत माहिती तो द्वितीय कृति विभाग वाली सूची में दिए जाने का आयोजन है. प्रत्येक खंड में तत्-तत् खंड की कृति परिवारों के अकारादि क्रम से प्रत क्रमांक का परिशिष्ट भी होगा. For Private And Personal Use Only
SR No.018025
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size4 MB
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