SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य के प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की दीक्षा की स्वर्णजयंती के अविस्मरणीय प्रसंग पर द्वितीय व तृतीय खंड का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रथम खंड के प्रकाशन के पूर्व से ही अगले खंडों के प्रकाशन हेतु हमारी तैयारियाँ जारी थीं. प्रथम खंड के अनुभव ने इन खंडों के कार्य को हमारे लिए सुगम बना दिया था. प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद अनेक विद्वानों का आग्रह होने की वजह से मूल रूपरेखा में उपयोगिता की दृष्टि से थोड़ा परिवर्तन लाते हुए संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की कृति अनुसार प्रतानुक्रम परिशिष्ट-१ में तथा देशी भाषाओं वाली मूल कृतियों को कृति अनुसार प्रतानुक्रम परिशिष्ट-२ प्रत्येक खंड के अंत में शामिल कर दिया गया है. द्वितीय खंड में प्रथम व द्वितीय दोनों खंडो के सम्मिलित परिशिष्ट हैं. आगे के प्रत्येक खंड में भी स्वयं के ये परिशिष्ट देने तय किया गया है. इन परिशिष्टों हेतु यद्यपि कृति-एकीकरण का शक्य प्रयत्न किया गया है, तथापि यह शक्य है कि एक ही कृति भिन्न-भिन्न नामों से एकाधिक जगहों पर भिन्न-भिन्न प्रतों के साथ मिल सकती है. इस कार्य में सांगोपांगता तो भविष्य में सुसंपादित होकर प्रकाशित होने वालेकृति पर से प्रत माहिती वाले खंडों के प्रकाशन के समय ही आ सकेगी. वर्तमान कार्य के परिमाण स्वरूप प्राकृत, संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल व व्याख्या साहित्य की छोटी-बड़ी कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही है. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक महत्व के विद्वानों की कृतियाँ भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. यद्यपि यह निर्धारण संपूर्ण नहीं है फिर भी लाभार्थियों के लिए यह निःसंदेह उपयोगी सिद्ध होगा. उल्लेखनीय है कि विजयधर्मलक्ष्मी ज्ञानभंडार, आगरा से प्राप्त ज्यादातर प्रतों का समावेश कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य के खंड २ तथा ३ में हो जाता है. इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सब का विस्तृत ब्यौरा, टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ पृष्ठ ८ एवं प्रयुक्त संकेतों का स्पष्टीकरण पृष्ठ ११ पर मुद्रित है. ___ संस्था के जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण का एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सब से बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रन्थालयों में अपनायी गई मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरी सामग्री इन भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. ग्रन्थालय सूचना पद्धति में कृति की विभावना स्वतः में अनूठी एवं बहूपयोगी सिद्ध हुई है. कृति को हस्तलिखित प्रतों तथा प्रकाशनों के साथ संयोजित किया गया है, जिससे किसी भी कृति से सम्बन्धित सभी हस्तप्रतों व सभी मुद्रित प्रकाशनों एवं सामयिकों की सूचनाएँ एक साथ मिल जाती हैं. इसी तरह व्यक्ति - विद्वान का भी कृति सर्जक, हस्तप्रत प्रतिलेखक आदि व प्रकाशन, सामयिक के संपादक, संकलनकार, संशोधक, संयोजक, प्रेरक एवं प्राचीन मूर्ति आदि के प्रतिष्ठापक, भरवानेवाले इत्यादि आयामों में एकीकृत परिचय रखा गया है. इस प्रकार प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्ध कर एकीकृत किया गया है. इस परियोजना के तहत अनेक ज्ञानभंडारों की हस्तप्रत व पुस्तकों की एकीकृत सूची को तैयार करने की भी योजना है. इसी के तहत जेसलमेर, पाटण, खंभात, भांडारकर-पूना आदि भंडारों की ताडपत्रीय व अन्य महत्त्वपूर्ण कागज की हस्तप्रतों की एकीकृत सूची भी बडे श्रम से कम्प्यूटर पर बनाई गई है व उसके साथ पूज्य श्रुतोद्धारक मुनिप्रवर श्री जंबूविजयजी के प्रयासों से करवाई गई झेरोक्स, डीवीडी व माइक्रोफिल्म की सूचनाएँ भी प्रविष्ट कर दी गई हैं. सूचीकरण के कार्य हेतु ग्रन्थालय विज्ञान की किसी प्रस्थापित प्रणाली के अनुसार नहीं वरन् अनुभवों के आधार पर भारतीय साहित्य की लाक्षणिकताओं के अनुरूप बहुजनोपयोगी तर्कसंगत सूचीकरण प्रणाली यहाँ विकसित की गई है एवं तदनुरूप विशेष कम्प्यूटर प्रोग्राम तैयार किया गया है, जिसके अन्तर्गत उपरोक्त सभी प्रकार की सूक्ष्मतम जानकारी मात्र यहीं पर पहली बार कम्प्यूटर में प्रविष्ट की जा रही है. श्रुतभक्ति का यह श्रमसाध्य कार्य करने के बाद सबसे ज्यादा प्रसन्नता व सार्थकता की अनुभूति तब होती है, जब गुणवान For Private And Personal Use Only
SR No.018025
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2004
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy