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________________ ............. ............ ..............१-१४८ ............. जिनभद्रसूरि ताडपत्रीय ग्रंथ भंडार • जैसलमेर दुर्ग ग्रंथांक ग्रंथर्नु नाम कर्ता भाषा संवत् पत्र संख्या | झेरोक्ष | सी.डी. | ग्रंथान | विशेष नोंघ भगवतीसत्रवत्ति, प्रथम खंड, ........... अभयदेवाचार्य............... सं.र.११२८-ले.१९९५............२५६ ..............१२........११ ........ ९४३८ - आ प्रतिना केटलाक पाना गुम थवाथी अष्टमशतक पर्यन्त ...................... आशरे १३मा सैकामां से पाना नवा ................... ............................. लखायेल देखाय छे. १३ .... भगवतीसूत्रवृत्ति, द्वित्तीयखंड, ........... अभयदेवाचार्य ............... सं. २.११२८-ले.११९५ ..........२५५ ....... १३(१-२) ....... १२ सर्व ग्रं. १८६१६ . आ पोथी उघईए खाघेली छे श्रेष्ठ नवमा शतकथी संपूर्ण. .........९१७८ १४ .... भगवतीसूत्रवृत्ति, २६ शतक पर्यन्त ..... अभयदेवाचार्य ........... ............ १२००/...........४३७ ......१४(१-२-३)... १३/१४ पत्र ४३३, ४३५ नथी. ४३६. ३३३ थी ३४२, ४३७ थी ४५३ सुधी टुकडाओ छे. श्रेष्ठ प्रतिशुद्ध छे. १५ ..... भगवतीसूत्रवृत्ति अभयदेवाचार्य .सं. र.११२८-ले१२०४ ..........४३५ ......१५(१-२-३) ....१५/१६ ....... १८६१६ . आ प्रतिना पानां पहोळा अने अति सुकुमार के १६..... भगवतीसूत्रवृत्ति अभयदेवाचार्य ......... |.. सं... र.११२८-ले१४८८ ...........३९७ ........१६(१-२) -... १७/१८ ........ १८६१६ -श्रेष्ठ १७/१.. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र .................. ..प्रा. .............१७-...१८/१९ पत्र २,३,२०,२१,१६८ नथी. ३०-३१ अने ................... ...................................... १८०-१८१ पाना मेगा छे. पत्र २६४मां देवीनुं शोभन छे. १७/२... ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति किंचिदपूर्ण ..... अभयदेवाचार्य ........... ... सं. ......... ले.१३०० ......१४९-२६४ ..... १८/१९ १८/१.. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र ...... ..................१-११४ ......... F.......२० ......... ५४६४ . पत्र १,१२ नथी. १७मां पानानो टुकडो छे. तथा १५४ नं. ना पाना बे छे. १८/२.. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति ................ अभयदेवाचार्य सं.र.११२०-ले.१५००......११४-१९७ ......२० ... ३८०० १९/१... ज्ञाताधर्मकथांगसूत्रवृत्ति . ............ अभयदेवाचार्य .......... र.११२०..........१-१४५ .......१९(१-२) -... २१/२२ ......३७०० १९/२... उपासकदशांगसूत्रवृत्ति .. अभयदेवाचार्य. ...................१४५-१७८ .....१९(१-२)-...२१/२२ .....९०० १९/३ .. अंतकृशांगसूत्रवृत्ति .. अभयदेवाचार्य .......................१७८-१८९ .......१९(१-२)...२१/२२ अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्रवृत्ति ........ अभयदेवाचार्य. ................१८९-१९३ १९(१-२) -... २१/२२ १९/५ ... प्रश्नव्याकरणसूत्रवृत्ति अभयदेवाचार्य . ................१९३-३५० ।...२१/२२ १९/६ ... विपाकसूत्रवृत्ति अभयदेवाचार्य.. ...............३५१-३७५ ... २१/२२ श्रेष्ठ २०/9... उपासकदशांगसूत्र.. ....................१-१९ २०/२... अंतकृदशांगसूत्र ........ ..........१९-३७ २०/३ ... अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र ..... ...................३७-४१ २०/४..प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र...... .........४१-६७ २०/५... विपाकसूत्र ................ .........ले.१५०० .........६७-९५ .......२०+२१ ..प्रा.... .......१९(१-२) .. +. + + + Jain Education International For Private &Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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