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________________ कर्ता सी.डी. । विशेष नोंध श्रेष्ठ ग्रंथांक ग्रंथनु नाम १/१ ... आचारांगसूत्र १/२ ... आचारांगसूत्रनियुक्ति .................. १/३ ... आचारांगसूत्रवृत्ति ................... २५...आचारांगसूत्र ............... जिनभद्रसूरि ताडपत्रीय ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग भाषा संवत् पत्र संख्या झेरोक्ष ..प्रा. ..............१-७१/......१(१-२-३) ...............७२-८७ ......१(१-२-३) .........१-४२१ ..........१-७६ ........२(१-२) ग्रंथान ....... २६५४ ....गा. ३६६ ...१२००० भद्रबाहुस्वामी.. शीलांकाचार्य पत्र ७०मुं नथी. आ ग्रंथ वे पेटीमां मुकेल छे. स्थिति मध्यम छे. गा. ३५४ पर्यंत २।२ .... आचारांगसूत्रनियुक्ति अपूर्ण. भद्रबाहुस्वामी २/३ ... आचारांगसूत्रवृत्ति अपूर्ण .............. शीलांकाचार्य आचारांगसूत्रचूर्णी .. १-१३ ......२-३०२ ..........१४८९ ...........२६० ......२(१-२) ....... २(१-२) ४ ....... सूत्रकृतांगसूत्रवृत्ति अपूर्ण ............. शीलांकाचार्य . .............१२०० ...........४१४ ......... ४(१२) ...... ३/४ पत्र ९.५७,८०,८४,८५ नथी. पत्र ६.९.१२.१४.१५.१७.१९.२०,२७,२८,४०, ४१,४५,४८.५८.५९.६९.८३,८४,८८,१६७, २२३, २२६ नथी. ७४.१२६.१३६.१६०,२०८ नंबरना बे पत्रो छे. पत्र ३५९ मुं नथी. आ प्रतिना ताडपत्र अत्यंत सुकुमार पातळां अने सरस छे. आ प्रतिनां ताडपत्र स्थूल छे. घणा पानाना टुकड़ा थई गयेला छे. पत्र १.३.४.९/ |१०,१३,१८,१९,२३,२९.३१.३४.३८.५५थी ५९/ ६६.६९.३४२,३४६,३४९,३५२.३५३ नथी. |५/१... सूत्रकृतांगसूत्र 1 ज तागसूत्र ................. .............१५०० .........१५३ /........ ५(१-२) ..........५ गा.२०८ (१-२) ५/२ .... सूत्रकृतांगसूत्रनियुक्ति भद्रबाहुस्वामी. ५/३.. सूत्रकृतांगसूत्रवृत्ति किंचिदपूर्ण .......... शीलांकाचार्य, स्थानांगसूत्रवृत्ति ..... ............... अभयदेवाचार्य स्थानांगसूत्र ..... ७/२... स्थानांगसूत्रवृत्ति . समवायांगसूत्र .... पर....समवायांगसूत्रवृत्ति ....... अभयदेवाचार्य ........ समवायांगसूत्र |१/२ .... समवायांगसूत्रवृत्ति .... अभयदेवाचार्य ....... १० .... भगवतीसूत्र .. ११.... भगवतीसूत्र १. वि.सं. १४०१ में मूल्य देकर खरीदी गई थी। ....५४-५८ ......५(१-२) ....५९-३५६ .....५(१,२) सं.२.११२०,ले.१३०० ...........३४५ ..६(१२) १-८७ ७(१,२) सं.र.११२०,ले.१४८६ .........१-३४९ ...१-४५ सं.र.११२०,ले.१४८७ ......४६-१३४ १-६४ सं. र.११२०,ले.१४०१........ ६५-२१५ ..प्रा..........ले.१२३१ ........३४८ ..१०(१-२) .प्रा..........ले.१४८८...........२९३,.......११(१-२) प्रा. ... १४२५० पत्र ६.८.३९.३३४ नथी श्रेष्ठ ३०५० १४२५०-३४५.३४६.३४७ पत्र नथी. १६६७ १५ मुं पत्र नथी ३५७५ श्रेष्ठ १६०० - पत्र २४ मुं नथी ३५७५ प्रति शुद्ध छे. श्रेष्ठ अंतिम पत्रमा शोभन अने प्रतिशुद्ध छे. श्रेष्ठ | पत्र २८५ टुकडो तथा २८८ नथी श्रेष्ठ ........ मा. Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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