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________________ 32 - सूचीपत्र का उपयोग करने से पहले अवश्य पढ़ें हमने उसका स्पष्टीकरण नहीं कीया है। संवत्वार अकारादि सूधि भी परिशिष्ट में दी सूचीपत्रका उपयोग करनेसे पहले अवश्य पढ़ें (१) जिस भंडार की सूचि चल रही है वह नाम उस भंडारके हर पन्ने पर सबसे उपर दीया गया है । (२) पहली कॉलम ग्रंथ नंबरकी है । उसमें एकही नंबरमें जहाँ एक से अधिक ग्रंथ रखे है वहाँ उस नंबर के साथ स्लेश करके A,B, या १, २, ऐसे नंबर दिये गये है। उदा० .....IA. अकारादि क्रममें एकही नंबर के अंतर्गत आये हुए प्राया सभी ग्रंथोंको वही नंबरकी तहत रखके उसका अन्य विवरण अकारादि सूचीमें नहीं दिया है । याने-अकारादि क्रम में जहाँ नंबरके सामने नामकी दूसरी कॉलममें सिर्फ नाम ही है और अन्य कॉलममें (पत्र, कर्ता, संवत् आदिमें) कोई भी विवरण नहीं दीया है, वह सूचीत करता है की यह ग्रंथ एकही ग्रंथके अंतर्गत रखे हुए है । जिन नंबरोंके साथ ऐसा निशान दीया गया है वे ग्रंथ मूल हस्तलिखित भंडारमें विद्यमान नहीं है ऐसा सूचित करता है । अकारादि क्रमकी सूचि सभी भंडारोंको एकत्रित करके की गई है । उससे एक नामके ग्रंथ अलग अलग सभी भंडारोंमें कितने है यह एकही जगह देखनेको मिलता है। साथ ही वह नंबर कौनसे भंडारके है यह सूचित करनेवाले संकेत (जि.ता., जि.का., त.ता., त.का.... आदि) रखे गये है जिससे उस ग्रंथका विशेष विवरण मूल क्रमवार सूचिमें देख सकते है । (३) दूसरी कॉलम ग्रंथनाम की है, वहाँ ग्रंथ का नाम दीया हुआ है। (४) तीसरी कॉलम 'कर्ता' की कॉलम के अंतर्गत ग्रंथ के कर्ता, लेखक, वृत्तिकार, बालायबोधकार, मूल कर्ता, पूर्णि कर्ता, अवधूरिकर्ता आदि सभी नाम लिये गये है । जहाँ सिर्फ नाम लिखा है विशेष जानकारी नहीं लिखी है वहाँ वह नाम लेखक या कर्ता का है । जहाँ स्पष्ट जानकारी मिली है वहीं वह (वृत्तिकार, चूर्णिकार आदि) स्पष्ट कीया गया है । कर्तावारी अकारादि सूचिमें एक ग्रंथके अंतर्गत आये अनेक प्रकारके कर्ता नागों को भी समाविष्ट कीया गया है । (५) चौथी कॉलम संवत की है उसमें रचना संवत् और लेखन संवत् दोनों समाविष्ट कीये गये है । जहाँ एकही संवत् मिला है वह प्रायः लेखन संवत् ही है फिरभी कहीं कही रचना संवत् भी हो सकता है । क्योंकी मूल ग्रंथमें उसका स्पष्टिकरण न होने से (६) पाँचवी कॉलग पत्र संख्या की है । वहाँ ग्रंथके कुल पत्रोंकी संख्या तथा कहाँ से कहाँ तक के पत्रांक संबंधित ग्रंथमें है यह सूचित कीया गया है । कम या अतिरिक्त पत्रोंका विवरण "विशेषनोंध' नामक अंतिम कॉलम में दीया गया है । (७) छठी कॉलममें झेरोक्ष (फोटोस्टेट) का विवरण दिया गया है । जिन ग्रंथोंकी फोटोस्टेट नकल (कापी) बनायी गई है वह ग्रंथांक के सामने इस कॉलममें वह ग्रंथका नंबर दिया गया है । सिर्फ ग्रंथका ही एक नंबर इस कॉलममें हो तो यह सूचित करता है की संबंधीत ग्रंथकी फोटोस्टेट कापी के सभी पन्ने प्लास्टीककी एक ही थैलीमें रखे गये है। जिस प्रथांक के सामने इस (झेरोक्ष) कॉलममें एकसे ज्यादा नंबर लिखे है यहाँ अगर दोनों नंबर के बीच से' या 'पी' लिखा है वहाँ संबंधित ग्रंथकी फोटोस्टेट कॉपी एक ही प्लास्टीक की थैलीमें क्रमशः उन सभी ग्रंथोके साथ रखी गयी है । जहाँ दो नंबर के बीच + (अधिक) का चिन्ह है यहाँ वह नंबरके ग्रंथके साथ दूसरा भी निर्देशित ग्रंथ एक ही प्लास्टीक की थैलीमें रखा गया है । जहाँ दो नंबरके बीच (....) ऐसा निशान किया गया है वहाँ वह ग्रंथ उन दो नंबर के बीच आये हुए कोई कोई (क्रमशः सभी नंबर के ग्रंथ नहीं) दूसरे ग्रंथोंके साथ एक ही प्लास्टीक की थैलीमें रखा गया है । जहाँ इस (झेरोक्ष) कॉलममें पहले ग्रंथका नंबर लिखके कंस में (१.२. या ३ आदि) नंबर लिखा है वहाँ वह ग्रंथ बडा होने से संबंधित ग्रंथके फोटोस्टेट कापी के पन्ने एक से ज्यादा प्लास्टीक थैलीयोंमें बाँटकर रखे है । कसमें जितने नंबर दिये है वह सब अलग अलग पैलीयाँ मिलाकर वह पूरा ग्रंथ होता है । उदा० (0) जि.ता. ग्रंथोक १ झेरोक्ष कॉलममें १ (१, २, ३) - यह सूचीत करता है की १ नंबर के ग्रंथकी फोटोस्टेट कॉपी तीन प्लास्टीक की थैलीयोंमें बांटके रखी गयी है। मुका० - ग्रंथांक १ के सामने झेरोक्ष कॉलममें यह सूचीत करता है की, इस ग्रंथकी फोटोस्टेट कॉपी एक ही प्लास्टीक थैलीमें रखी है । (i) डूंका. ग्रंथांक नं.२ के सामने झेरोक्ष कॉलममें '२+६+१०/१' यह सूचीत करता है कि यह ग्रंथकी फोटोस्टेट कापी उसी भंडार के ६और १०/१ नंबर के ग्रंथोंकी फोटोस्टेट कॉपी के साथ एक ही प्लास्टीक की थैलीमें रखी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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