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________________ प्रस्तावना-31 उसके साथ रखें और अन्य भंडारोंके सभी ऐसे नये नामके ग्रंथोंको आचार्यगच्छके पुराने सूचीपत्रमें (आचार्यगच्छ कागज ग्रंथ भंडार के ग्रंथांक १९७ से ३७१ तक) नयी प्रविष्टियों करके उनके साथ रखे है । इसलिये इस नये सूचिपत्रमें आपको ऐसे उल्लेख भी मिलेंगे । इस तरह, बहुत बहुत काम, तथा करनेवाले कम, और मर्यादित काल में सब कार्य पूर्ण करना था, इसलिये च का नाम पढ़ने में या कर्ता या लेखकका नाम दूंढनेमें हमारी भी कई गलतीयों हुई होगी ऐसा हमें लगता है । पुना जैसलमेरसे विहार करनेके बाद हमने इस सुचिपत्रको तैयार करनेके कामका प्रारंभ किया । हम जैसलमेरसे लगभग १२०० कि.मी. दूर हरिद्वारमें बैठे हैं । इसलिये जहाँ भी हमें शक हो वह दूर करनेके लिये मूल ग्रंथोंको देख सकें यह किसी भी तरीके से संभव नहीं है । और हमने जब ये सभी ग्रंथभंडार ढंगसे जमाकर ट्रस्टको सुप्रत कीये तब वे सभी ग्रंथ थोडे समयके लिये जैन भवनके एक कमरे में रखे गये थे । बाद में उस कमरेके द्वार पर ही बहुत बडा मधुमक्खीयोंका घर (छत्ता) बन जानेसे वहाँ कीसीको भेजकर शंकाका समाधान करना भी शक्य नहीं था । इसलिये ऐसी भूलें और क्षतियोंके लिए वाचक हमें क्षमा करें ऐसी हमारी बिनति है । अभी भी जैसलमेर ग्रंथ मंडारमें कपड़े में बंधे हुए बस्ते हैं जिनमें केवल गुटके हैं । इन गुटकोंमें कोई ग्रंथ, स्तवन, सज्झाय, मंत्र, तंत्र आदि यतियोंके युगमें जो प्रचलित साहित्य था वह है । यह सूचिपत्र तैयार करनेका सभी काम तथा आयोजन मेरे शिष्य मुनिराजश्री धर्मचन्द्रविजयजी महाराजके शिष्य मुनिश्री पुंडरीकरलविजयजी तथा धर्मघोषविजयजी महाराजने ही कीया है। इस काम में मेरी माता शतवर्षाधिकायु संघमाता साध्वीजी श्रीमनोहरश्रीजी महाराज की शिष्या साध्वीजीश्री सूर्यप्रभाश्रीजी की शिष्या साध्वीजीश्री जिनेन्द्रप्रभाश्रीजी आदि साध्वीजीगण का भी बहुत बड़ा हिस्सा है । खरतरगच्छ के मुनिराजश्री मणिप्रभसागरजी म.सा. एवं साध्वीजीश्री चंद्रप्रभाश्रीजी म.सा, एवं साध्वीजीश्री मणिप्रभाश्रीजी म.सा. आदि का भी इस कार्य में बहुमूल्य सहकार रहा है । पू.आ.म.श्री हेमचंद्रसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से संचालित श्री जिनशासन आराधना ट्रस्ट तथा उसके कार्यकर चंद्रकान्तभाई पंडित(पाटण) तथा रोहितभाई अभेचंद-(मुंबई)ने भी इस कार्य में बहुत सहयोग दिया है । पू.आ .म.श्री भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. के प्रशिष्य पू.आ.म.श्री रत्नसुंदरसूरीश्वरजी म.सा.की प्रेरणा से माटुंगा जैन श्वे.मू. संघ तथा सांताकुज जैन संघ मुंबई की ओरसे बहुत बड़ा आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ । वर्धमान संस्कृति धाम, विनियोग परिवार ट्रस्ट (मुंबई) के अरविंदभाई पारेख, केतनभाई तथा अनेक स्वयंसेवकोंने वहाँ कई दिन रहकर तन-मन-धन से कार्यमें सहयोग दिया तथा मुंबईमें देवकरण मूळजी जैनसंध (मलाक) तथा सांताक्रुज जैन संघको प्रेरणा करके फोटोस्टेट आदि कार्योमे बहुत बडा आर्थिक सहयोग प्राप्त करवाया । उमेशभाई जयंतिलाल भोगिलाल देवचंद वासणवाला(अगदाबाद)ने ग्रंथोंको और सी.डी.योंको सुरक्षित रखनेकी स्टीलकी पेटीयों बनवाने में तथा मिहिर विनुभाई-बोरीवली, प्रतिक आसरा-नई मुंबई, राजीव बगडीया, नितिन बगडीया-बोरीवली, नानालालभाई देवराज (आघोईवाले) बम्बई, पारस विनोदभाई संघवी तथा आशीष महेन्द्रभाई अमदावाद, नरेंद्रभाई पटवा (पाटण), कच्छ तुंबडी निवासी मेहुल रमणिकलाल, लक्ष्मणभाई भोजक तथा अमृतभाई पटेल (अमदावाद), शारदाबेन चीमनलाल एज्युकेशनल रीसर्च सेन्टर-अहमदाबाद वाले पं. जितेन्द्रभाई बाबुलाल शाह तथा अमदावाद के अनेक स्वयंसेवकोंने हमें बहुत बहुत प्रकार का सहयोग दिया है, अन्य भी अनेक नामी अनामी सद्गृहस्थोंने अपनी शक्तियाँ इस काममे लगाई है। मेरी माता साध्वीजी की शिष्या सूर्यप्रभाश्रीजीका भाई जितेन्द्र मणिलाल संघवी आदरियाणा, निवासी तो शुरुसे अंत तक सभी छोटे मोटे कार्योंमें जुटे थे और कम्प्युटर तथा फोटोस्टेट मशीनोंकी सभी जरुरतोंके पीछे मांडल निवासी अशोकभाई संघबीने अपना समय और शक्ति लगाई । इस काममें शेठश्री श्रेणिकभाई कस्तूरचंदभाई लालभाई की प्रेरणा से श्रुतनिधि ट्रस्ट, अमदावाद, तथा शेठश्री वर्धमानभाई एवं भरतभाई (माणसावाले) की प्रेरणा से पंकज सोसायटी जैन संघ (अमदावाद)ने कम्प्युटर तथा अन्य सामग्री खरीदने के लिये बहुत बड़ा आर्थिक सहयोग दीया । पुनडी (कच्छ) निवासी रविभाई संगोई की प्रेरणा से श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथ श्वेतांबर कच्छी जैन संघ माटुंगा (सेन्ट्रल) मुंबई की और से भी अच्छा आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ । श्री पार्श्व कोम्प्युटर्स (अहमदाबाद) वाले अजयभाई चीनुभाई शाह तथा विमलकुमार बीपीनचंद्र पटेलने जैसलमेर में स्केनींग आदि तथा इस सूचीपत्रके टाईपसेटींग का अत्यंत जटिल कार्य अतिप्रसन्नतापूर्वक पूर्ण किया है । हजारों फोटोस्टेट कापीओंको प्लास्टीककी थैलीयोंमें दंगसे जमाकर उसके पेकींगके काममें साध्वीजीगण ने बहुत मेहनत की है। उन सबको मेरे हजारों धन्यवाद है । इस ग्रंथ की हिंदी प्रस्तावना का परिमार्जन करनेवाले दिवाकर प्रकाशन (आगरा) वाले श्रीमान् श्रीचंद सुरानाजीके हम ऋणी है । विश्व प्रसिद्ध मोतीलाल बनारसीदास-पब्लीसर्स (दिल्ली)ने इसका सुंदर मुद्रण एवं प्रकाशन-कार्य करके बहुत बडा सहयोग दिया है । अंतमें जैसलमेर लौद्रवपुर पार्श्वनाथ श्वेतांबर जैन ट्रस्टके संचालकोंने श्रुतज्ञानकी आराधनाका जो अपूर्व मौका दिया है उसके लिये उन्हें भी हजारों धन्यवाद देता हूँ । इन ग्रंथोंका संशोधनादि कार्योंमें सदुपयोग हो और अभ्यासु वाचकगणके हाथोंमें ऐसा संशोधित साहित्य शीघ्र पहुंचे ऐसी परमात्माको प्रार्थना करके जैसलमेर दुर्गमंडन एवं हरिद्वार तीर्थमंडन श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ प्रभुजी के करकमलों में यह सृचिपत्र रूप ग्रंथ अर्पण करता हूँ । श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन श्वे. मन्दिर, पूज्यपादगुरुदेवमुनिराजश्रीभुवनविजयान्तेवासी ऋषिकेश रोड, भूपतवाला, हरिद्वार, उत्तरप्रदेश, मुनि जम्बूविजय पीन-२४९४१०. INDIA. विक्रमसंवत् २०५६ मार्गशीर्ष वदि २. दि. २४-१२-९९ lain Education Internatione For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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