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________________ १२६६ --- गा.७ जीर्ण... ११० जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग | ग्रंथांक ग्रंथर्नु नाम स्थिति। कर्ता भाषा संवत् । पत्र संख्या झेरोक्षसी .डी. ग्रंथान विशेष नोंध शीतलामातागीत आदि ............ मध्यम .. कानजी .... सिद्धांतशिरोमणिसूत्र ........... श्रेष्ठ ..... भास्कराचार्य ..... १५-२६ - १२५५.. १२७८ उपधानविधिप्रकरण ... जीर्णप्राया मानदेवसूरि ...३.१२५५.. १२७८ ......गा.५४ राशिचक्र ............. नंदितान्यछंदाशास्त्र किंचिदपूर्ण मध्यम ... संवत् १८२२ नुं पंचांग .. .......... मध्यम .. भागवतदशमस्कंधविवरण अपूर्ण, जीर्ण .... अंतःकरणप्रबोधवृत्ति ................. जीर्ण.... वल्लभ .. ग्रं.१७०, प्रति घोंटेली छे १२७४/१ न्यायतात्पर्यटीका द्वितीयाध्यायपर्यन्त श्रेष्ठ .... वाचस्पतिमिश्र .... ... १२७५ .......५ १८९ . १२१५.. १२७८ - २२०/.......... अतिशुद्ध छे. पत्र ३७मुं नथी. टिप्पणी सह १२७४/२....न्यावतात्पर्यटीका तृतीयाध्यायपर्यन्तथी श्रेष्ठ .... वाचस्पतिमिश्र ..... .... १२७९ ...... १९० थी २८०. १२५५.. १२७८ ...२२० ........... . प्रति अतिशुद्ध छे. ... सम्पूर्ण टिप्पणी सह ............. १२७४/३ ..... न्यायभाष्य टिप्पणीसह अपूर्ण ...........श्रेष्ठ .... वात्स्यायनमुनि... १२७५......२८१ थी ३५०. १२५५.. १२७८ .२२०............ प्रति अतिशुद्ध छे. १२७५/१.....न्यायवार्तिक टिप्पणीसह ............... भारद्वाज....... १२७९ .........८ थी १५७, १२५५.. १२७८.२४१ नूतनलिखित सं. १७४५ १२७५/२.... तात्पर्यपरिशुद्धि टिप्पणीसह अपूर्ण ..... श्रेष्ठ .... उदयनाचार्य............... १२७९.१५७ (२ थी ३२५), १२५५.. १२७८ - २४१........... अतिशुद्ध छे. १२७६ ......राजप्रश्नीयोपांगसूत्रवृत्ति ... मलयगिरि आचार्य -वृ. १४९० प्रति उधेईए खाधेली छे १२७७... चैत्यवंदनाकुलक वृत्तिसहित अपूर्ण ..... १४०० २.१५, १२५५.. १२७८ १२७८ अंजनासुंदरीकथानक.. श्रेष्ठ..... गुणसमृद्धि महत्तरा ....... १४०७ ...२३ १२५५... १२७८ १२७९ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रमहाकाव्य दशमपर्व महाबीरचरित्र श्रेष्ठ ..... हेमचन्द्रसूरि ............ १३८४ .२४१............१२७९ .२७३ १२८० संग्रहणीप्रकरण आदि संक्षिप्तटिप्पणी . जीर्ण ......... ......८/१२८० थी १२८२ १२८१ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रमहाकाव्य प्रथमपर्व आदिनाथचरित्र .............. श्रेष्ठ.... हेमचन्द्राचार्य ........... १५०० ................१०२ १२८० थी १२८२ १२८२.... दुर्गवृत्तिव्याश्रयमहाकाव्य ............... .... जीर्ण ... जिनप्रभसूरि श्योपज्ञ...... १५०० .......... १२२-२८२ १२८० थी १२८२... २७४............ अपूर्ण स्वोपज्ञवृत्तिसह त्रू.अ. पंचवस्तुकप्रकरणवृत्ति प्रथमखंड अपूर्ण श्रेष्ठ .... मुनिचंद्रसूरि, .सं.-............ १४००.................१९५/..१२८३ + १२८४ ...२७४ ..! कर्मप्रकृतिप्रकरण सटीक अपूर्ण........ श्रेष्ठ .... शिवशर्मसूरि मू.. .......प्रा.सं ............. १४०० .................३४७...१२८३+ १२८४ -.२७४........ -पत्र ११७-११८.१५५,१६१-१६३,१९५. मलयगिरि आचार्य -टी. .............१९७, २०४-३४६ नथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.nebrar og
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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