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________________ भाषा पत्र संख्या ........ ..... २०८ जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथांक | ग्रंथ नाम | स्थिति झेरोक्ष सी.डी गंधाय विशेष मोध १२८५/१..... प्रद्युम्नशांबचरित्र ........................ श्रेष्ठ......... ..............३-५०/-.१२८५ - १२८६ .. २७४ गा.१०७०/ पत्र २५-४६ नथी १२८५/२.... सीताचरित्र ..............................श्रेष्ठ....... ५०० ..........५०-१४३ . १२८५ + १२८६ ... २७४ पत्र ५५.५७-६१,६६-६९,७१,७३-७४ .......................... ७७.७२-८५,८९-९०,९७,१०६,१०८, ...................... ११०, ११५, १२२, १४२ नथी १२८६ ...... बृहत्संग्रहणीप्रकरण त्रू.अ...............अतिजीर्ण जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण .प्रा. १४०० ५६-७६/..१२८५ + १२८६ ...२७३ १२८७ ....... पाणिनीय्याकरणमहाभाष्यप्रदीप त्रू.अ....श्रेष्ठ..... कैयट ... ............. १५०० ............. ४-१०८ ...........१२८७ बचमा केटलांक पानां नथी १२८८/५.. कातंत्रव्याकरणदुर्गपदप्रबोधवृत्तिकुँदिका कारकपर्यन्त.... १२८८/२.... शास्त्रीयअनेकविचार, २०९-२४३ १२८८/३.... कर्मविपाककर्मग्रंथबालावबोध २४४-२५७ १२८८/४.... लघुअजितशांतिस्तव भाषार्थसह .. ................ जिनदत्तसूरि २५७-२६१ १२८८/५.... प्रकीर्णकविचार मध्यम १५००.......... २६१-२६४ १२८९ ....... बृहत्संग्रहणी + चंदनविधि + पंचाशक ..अतिजीर्ण......... F........... १४०० ...............२२४ । प्रति चोंटी गयेली अने उंदरे + श्रावकवक्तव्य आ.प्रक करडी खाधेली छे १२९० ...... उपदेशमालाप्रकरण दोघट्टीवृत्तिसह अपूर्ण..... ... श्रेष्ठ ..... रत्नप्रभाचार्य -टी. ....... पत्र २१९, २२० नथी १२९१ ... कातंत्रव्याकरण विद्यानंदिवृत्तिसह .......मध्यम ... विजयानंद .............. प्रति पाणीमा भीजाईने खराब थई थे १२९२ ... प्रवचनसारोद्धारप्रकरणवृत्ति द्वितीयखंड ३४ मा द्वारथी ८३मा द्वार पर्यंत ......... श्रेष्ठ......... ........ .........१२९२...२९० अक्षरो उखडी गया है. प्रवचनसारोद्धारप्रकरणवृत्ति तृतीयखंड.............. पत्र ६२-६४.७६.७८,८९.२२५,२२७ ८४ मा द्वारथी २१७ .....................अतिजीर्ण .......१२९३ ...२७३ नथी, प्रति पाणीमा भीजाएली छे १२९४ पंचवस्तुकप्रकरणवृत्ति प्रथमखंड ........अतिजीर्ण प्रति पाणीमां भींजाएली अने उधेईए खाधेली छे रुद्रटालंकार त्रू.अ................. ......अतिजीर्ण रुद्रट ४६-५९ /..१२९५+ १२९६ शिशुपालवधमहाकाव्य-माघकाव्य ....... अतिजीर्ण महाकवि माघ ........ ......... ..१०७.१२९५+ १२९६ टिप्पणीसह २० मा सर्ग पर्यत अपूर्ण १२९७ ...... कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति अपूर्ण ....श्रेष्ठ ..... दुर्गसिंह -वृ....... १५०० ३-३२ १२९५ १२९६. Jain Education International For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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