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________________ १०१ जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग प्रथांक ग्रंथनु नाम | स्थिति कर्ता भाषा १०५०......लघुजातक सटीक त्रिपाठ............... मध्यम ... वराहमिहिर -मू...........सं..... ...... उत्पलभट्ट -टी. १०५१...... दार्शनिकग्रंथ अज्ञात अपूर्ण १०५२ ....... प्रवचनसारोद्धार त्रूटक अपूर्ण ...........जीर्ण संवत् पत्र संख्या झेरोक्षसी .डी. ग्रंथान १७०१,................६९...१०५०+१०५१. विशेष नोंध प्रति पाणीमां भीजाईने खराब थई में .... श्रेष्ठ .... . सं. ........... १८...१०५० + १०५१ प्रति पाणीमां भीजाएली छे, अस्तव्यस्त छे. ......१०५३ ..१०५५ NAGES १०६०............३५६४ ..गा.३७, १०५३ ...... कथासंग्रह गद्यपद्य ........ १०५४ ....... नारचंद्रज्योतिष द्वितीयप्रकरण .... मध्यम ...नरचंद्रसूरि .............. कातंत्रव्याकरण दुर्गसिंही आख्यातवृत्ति ,जीर्ण ....दुर्गसिंह वृ............ शालिभद्रकथा पद्य .............. जीरावलापार्श्वनाथरतबन ............... मध्यम ... भक्तिलाभ अष्टप्रकारपूजाकथा ............. मध्यम .. शीलोपदेशमालाबालाययोध ............. मध्यम.. त्रिषष्टिशलाकापुरुषारित्र परिशिष्टपर्व श्रेष्ठ ..... हेमचंद्रसूरि ............ १०६१ .... जल्पमंजरी.................... श्रेष्ठ, १०६२ अल्पबहुत्वस्तवन ................. मध्यम ...Jशांतिमंदिरशिष्य खरतर १०६३ .... घोडशकप्रकरण..... मध्यम ... हरिभद्रसूरि. १०६४/१.... देववंदनकप्रत्याख्यानप्रकरण श्रेष्ठ....-जिनप्रभसूरि .............प्रा. १०६४/२.... साधुसंघमर्यादापट्टक जिनप्रभसूरि १०६५ ...... पिंडविशुद्धिप्रकरण ...... मध्यम ... जिनवल्लभगणि ......... प्रा. वरदराजीटिप्पनक ... श्रेष्ठ.. १०६७ ......श्रीचंद्रीया संग्रहणी सावचूरि पंचपाठ...जीर्णप्राय श्रीचंद्रसूरि मू.. ........प्रा.सं .......... १५०१ ......... साधुसोम -अव, मौनएकादशीकथा सस्तबक .............मध्यम ...सौभाग्यनंदी ..........सं.गु. र.१५७६-ले.१८०० १०६९ ... सारस्वतीयधातुपाठ वृत्तिसह ........... श्रेष्ठ .......... १०७० चतुःशरणप्रकीर्णक सस्तबक .........../जीर्ण ...... ..प्रा.ग. १०७१. हैमधातुपाठ सावचूरि पंचपाठ .........-श्रेष्ठ..... हेमचंद्राचार्य ....सं.... ....१४९७ ૧૦૭૨ . चंपकमालाकथा ................ ....मध्यम ... ......१०६३...२७३.....२९६ 1.पं. ७२ गा.१०३, |.सं.. १०६६ .......१०६७........मू.गा.२७६ १०८८... .....................मू.अं.११७, सं. |२६ नथी, ...२७3 ....३८ नथी प्रति चोंटी जवाथी अक्षरो उखडी ...............! गया छे Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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