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________________ संवत् जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग पत्र संख्या झेरोक्ष सी.डी. ग्रंथान विशेष नोंध .......५,.. ४९४ थी ४९९ ...२७०/...... ............ .... ..... |... ४९४ थी म.गा.७० १७३३ मू.गा.७० ४९७ .... | ग्रंथांक ग्रंथर्नु नाम स्थिति]. कर्ता ४९४ ......... प्रवज्याविधानकुलक बालावबोधसह ... मध्यम ..जिनेश्वरसूरि बा. ....प्रा.गु. वेगडगच्छीय ४९५...... पर्यंताराधनाप्रकरण सस्तबक .......... मध्यम ... सोमसूरि मू. ४९६ ...... पर्यताराधनाप्रकरण सस्तबक .......... श्रेष्ठ .... सोमसूरि मू..... संबंधोद्योत.......................... जीर्ण .. रभसनंदि.. ४९८..... अभिधानचिंतामणिनाममाला अपूर्ण .. जीर्ण .... हेमचंद्रसूरि .......... ४९९/१......दानविधिप्रकरण............. ४९९/२.... नवकारफलकुलक.. आदिजिनस्तवन.................. ४९९/४ ... श्रेष्ठ.... पार्श्वनाग............. ४९९/५ ... प्रश्नोत्तररत्नमालिका ................ श्रेष्ठ ..... विमलाचार्य ........... ५००/.. सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण जिनवल्लभगणि ........ |५००/२... आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण (प्राचीन चतुर्थ कर्मग्रंथ)............... मध्यम .. जिनवल्लभगणि .......... प्रा. उत्तराध्ययनसूत्र सार्थ-अवचूरिसह ..... श्रेष्ठ ....... .......................प्रा.सं.] संस्तारकप्रकीर्णक बालावबोधसह ...... श्रेष्ठ ..... क्षेमराजऋषि या. त्रिपाठ ................ पाचचंद्रगच्छीय .......... प्रा.गु. ५०३.......-ताबाद तीर्थोद्गारप्रकीर्णक मध्यम .. FEF. ... ४९४ थी ४९९ . आर्या ७६ आर्या.२९ .गा.१५६ - ७-११ ..........गा.८६. ५०१. ..................१६३ ............ ५०२.... .................प्रा. .....मू.गा.१२१ ..५०३ थी ५०७ ....... गा.१२५४. चोंटेली तथा, पाणीमां भीजाएली छे. ..../१५४१. पाना चॉटेला छे. 1.२७०/- गा.१७४ श्रेष्ठ .... श्रेष्ठ..... श्रेष्ठ .... .......... ५०५...... 1. २७० ........... पत्र २.४ नथी ५०४/१ ...... चंदाविज्झयप्रकीर्णक ... ........... ५०४/२.... तंदुलवेयालियप्रकीर्णक .............. ५०४/३....! पौषधविधि ... कातंत्रव्याकरण तद्धित अपूर्ण ........ ५०६ ....... कातंत्रव्याकरण दौर्गसिंहीवृत्ति व्याख्यानकलाप्रदीपिका ........ नवपदप्रकरण ............. ५०८ .... योगशास्त्रस्वोपज्ञवृति अपूर्ण.. |५०९......... सारस्वतव्याकरण सूत्रपाठ........ श्रेष्ठ..... गौतमपंडित -दी. ...... ...जिनचंद्र ................. श्रेष्ठ .... हेमचंद्रसूरि स्वोपज्ञ ५०३ थी ५०७.२७०....४०७० .......... ५०३ थी ५०७ ......... गा.१३९ श्रेष्ठ....जनमा ... ३६ श्रेष्ठ....... सं............. १७११ ................. .............. ................ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.nebrar og
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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