SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७५ विशेष नोंध झेरोक्षसी .डी ग्रंथान गा.५४४ ४७३ - ..३६०० मातचाप्य .............. श्रेष्ठ.. ४७४ FFFFF ५५ | गुज. ............... पत्र ३२१ मुं नथी. १७२५ गुज. जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथांक ग्रंथy नाम स्थिति कर्ता भाषा संवत् । पत्र संख्या ४७२......... उपदेशमालाप्रकरण .....................श्रेष्ठ .....धर्मदासगणि....... ४७३........ स्थानांगसूत्र श्रेष्ठ ..... सुधर्मास्यामी १५७० ......... ४७४ .........कल्पांतर्वाच्य ४७५/१ ..... लब्धिकुशलसूरिगीत... कीर्तिवर्धन ... लब्धिकुशलसूरिगीत.. सुमतिहंस... लब्धिकुशलसूरिगीत कीर्तिवर्धन ... ४७५/४ .....लब्धिकुशलसूरिगीत दयावर्धन. ४७५/५ ...... लब्धिकुशलसूरिगीत ..................... श्रेष्ठ .....महिमाकीर्तिगणि ........ ४७६....... सामवेदनिर्णय-द्वादशमहावाक्यनिर्णय ... मध्यम ... ४७७ ......... जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र सटीक त्रिपाठश्रेष्ठ ..... शांतिचंद्रोपाध्याय -य. .. प्रा.सं. ........... २७३-३८३ भुवनभानुकेवलिचरित्र बालावबोध ......श्रेष्ठ ..... हरिकलश धर्मघोषगच्छीय गुज. ऋषिमंडलसूत्रबालावबोध अपूर्ण ........जीर्णप्राय .... त्याद्यतप्रक्रिया अपूर्ण....................मध्यम....... .............. कुंडेश्वरागम अपूर्ण ................ प्रत्येकबुद्धरास अपूर्ण .. ............ मध्यम ... समयसुंदर ........... १६६४ ऋषिदत्तारास ............................ श्रेष्ठ .....जयवंतसूरि ............. गुज. र.१६४३-ले.१७०४ प्रत्येकबुद्धचोपाई त्रूटक अपूर्ण ........... श्रेष्ठ ......... चंपकमालारास अपूर्ण ................... श्रेष्ठ .....सौभाग्यसागरसूरिशिष्य. वीरस्तुतिअध्ययन नरयविभत्तिअध्ययन सूत्रकृतांगसूत्रगत .......................मध्यम .. पूर्णकलशस्थापनाविधि ................ श्रेष्ठ ..... .......... भर्तृहरिशतकवालावबोध अपूर्ण .......... श्रेष्ठ .. विक्रमचोपाईरास ...... मध्यम ..परमसागर ....... १७२४............. २३-४१ ........ शालिभद्रचोपाई ...... जीर्ण .... मतिसार ............ ૧૬૭૮ ............... ४९१......... जंबूस्वामिरास.......... ... श्रेष्ठ .....नयविमल ........... ......... १२.३० ४९२........ उत्तराध्ययनसूत्र श्रेष्ठ .... ४९३ ........ कातंत्रव्याकरणदौर्गसिंहीवृत्ति अपूर्ण ... जीर्ण ....दुर्गसिंह ............... ................२७-१८० ........... । पत्र ७४-१६१ नथी. उंदरे करडेली छे, मध्यम ........ -४८०४८१ ...४८० + ४८१ ..१७९ ............ प्रति चोंटीने खराब थएली छे पत्र ३१-३९ नथी.पाणीमां भीजाएली छे. Jain Education International For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy