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________________ जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग झेरोक्ष सी.जी. ग्रंथान विशेष नाँध ४९...... संवत । पत्र संख्या १६६२ ............ १६५१ प्र.८ool ............... प्रा. गा.43 4. प्रतिमा घणां पाना नथी ४५४ .... ग्रंथांक प्रधनुं नाम स्थितिाकर्ता भाषा सारस्वतव्याकरणचंद्रकीर्तिटीका ....... श्रेष्ठ ..... चंद्रकीर्ति..... ४५०...... उपदेशमालाप्रकरण ...... श्रेष्ठ ..... धर्मदासगणि सारस्वतव्याकरण अपूर्ण ............... श्रेष्ठ ..... अनुभूतिस्वरूपाचार्य ...... सं. प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र सस्तबक .... श्रेष्ठ ..... सूत्रकृतांगसूत्रसस्तबक अपूर्ण ....... श्रेष्ठ...... उपदेशमालाप्रकरण सस्तवक किंचिदपूर्ण मध्यम ... धर्मदासगणि -मू....... कल्पसूत्र बारसा .................... श्रेष्ठ ..... भद्रबाहुस्वामी कल्पसूत्रबालावबोध सप्तम वाचना .... मध्यम .......... कालिकाचार्यकथा ................... श्रेष्ठ..... गुज. ४५८ ...... कालिकाचार्यकथा बालावबोधसह ....... मध्यम . ४५९ .........गीतगोविंद सटीक मध्यम ... जयदेवकवि -मू... | जगद्वर -टी...............सं. - उत्तराध्ययनसूत्र प्रथम अध्ययन......../जीर्ण .... ..............प्रा. प्रा. ....... ... अंतिम पत्र नथी १६९३ ........ १५८२ सटाक.............. ......... ४६० ....... प्रति पाणीमां भीजाएली छे बंने पत्रमा भगवाननु तथा पर्षदासह आचार्यनु सुंदर चित्र छे. २८ .. ४६२ थी ४६४ ................... प्रति पाणीमा भीजाएली छे ... ४६२ थी ४६४. प्रति पाणीमां भीजाएली छे .. ४६२ थी ४६४ .............२०७२ . गा.५४४. पत्र १, १७२३ नथी .....४६६ + ४६७ .............८२५ .....४६६ + ४६७ ............ ३६९ ४६५.... ४६६ ... जीर्ण .... ४६१......... उत्तराध्ययनसूत्र बालायबोधसह १३ अध्ययनपर्यत .... मध्य म.. निर्यावलिकासूत्र श्रेष्ठ... निर्यावलिकासूत्रवृत्ति ............. श्रेष्ठ .... श्रीचंद्रसूरि ............ राजप्रश्नीयोपांग .... श्रेष्ठ .... उपदेशमालाप्रकरण श्रेष्ठ .... धर्मदासगणि .............. अंतगडदशांगसूत्र कालिकाचार्यकथा गद्यपद्य ........ महानिशीथसूत्रगत कमलप्रभाचार्यअधिकार सस्तबक ...... जीर्ण..... ........ ४६९ ........ अनेकविचारसंग्राह ........... जीर्ण .. ४७० ........ अंतकृशांगसूत्र वृत्तिसह त्रिपाठ ..... श्रेष्ठ...., सुधर्मास्वामी -मू......... प्रा.सं अभयदेवसूरि -बृ. (४७१......./उपदेशमालाप्रकरण, मध्यम .. धर्मदासगणि........... ........ ........... १५२६ FNE ......४६९ + ४७० ......४६९.४७० Jain Education International For Private &Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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