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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती प्रत विशेष- मूल पत्रांक-३१७+८=३२५ छे. , विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. अन्ते मूलपाठ अलगथी आपेल छे. कुल झे.पृष्ठ-२६८, डीवीडी-९३/९५ पाकाहेम ७९९, पृ. ४३, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह स्वो-(सं) भाष्य, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-४३ पाकाहेम ८००- पे.क्र. १, पृ. १-२६८, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह स्वो-(सं)भाष्य व टीका, वि-१५७३, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थान-१८२८२. कुल झे.पृष्ठ-२६८ पाकाहेम ८००- पे.क्र.२, पृ. २६८, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह स्वो-(सं)भाष्य व टीका, वि-१५७३, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-१८२८२. कुल झे.पृष्ठ-२६८ पाकाहेम १०५३, पृ. ६, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-५ पाकाहेम १०५४, पृ. ६, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-६ पाकाहेम १०५५- पे.क्र. १, पृ. १-५३७, तत्त्वार्थाधिगमसूत्रभाष्यटीकासहित, वि-१८वी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-४३ पाकाहेम १०५५- पे.क्र. २, पृ. ५३८-५४३, तत्त्वार्थाधिगमसूत्रभाष्यटीकासहित, वि-१८वी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-४३ पाकाहेम १४०९४, पृ. २३, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सावचूरि, वि-१८१५, संपूर्ण प्रत विशेष- स्तबकरूपे लखेलो महत्त्वनो ग्रन्थ. पाकाहेम १६६२३, पृ. ३७, तत्त्वार्थसूत्र स्वोपज्ञभाष्यसह, वि-१६५४, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३७ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-(सं.)भाष्य वाचक-उमास्वाति, सं., गद्य, आदि वाक्यः सम्यग्दर्शनशुद्धं यो ज्ञानं विरतिमेवं चाप्नोति।... लिंता ९४४, पृ. ८९, तत्त्वार्थभाष्य, संपूर्ण प्रत विशेष- शुद्ध, मुद्रित सूचीमां पृष्ठ संख्या- ८९ आपेल छे. अताका ४७३, पृ.?, तत्वार्थाधिगमसूत्र भाष्य, संपूर्ण प्रत विशेष- (५९/१५२५), पृष्ठ माहिती नथी. डीवीडी-१०३/१०४ पाकाहेम ७९९, पृ. ४३, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह स्वो-(सं) भाष्य, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-४३ पाकाहेम ८००- पे.क्र. १, पृ. १-२६८, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह स्वो-(सं)भाष्य व टीका, वि-१५७३, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-१८२८२. कुल झे.पृष्ठ-२६८ पाकाहेम १०५५- पे.क्र. १, पृ. १-५३७, तत्त्वार्थाधिगमसूत्रभाष्यटीकासहित, वि-१८वी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-४३ पाकाहेम १६६२३, पृ. ३७, तत्त्वार्थसूत्र स्वोपज्ञभाष्यसह, वि-१६५४, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३७ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-(सं.)स्वोपज्ञभाष्य नी (सं.)टीका (तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-(सं.)भाष्यनी टीका) गणि-सिद्धसेन, सं., गद्य, ग्रं.२२२८२, आदि वाक्यः (१) वीरं प्रणम्य सर्वज्ञ तत्त्वार(२) जैनेन्द्रशासनसमुद्रमनन्तरत्न..थस्य विधीयते।... कृ.विः वृत्ति भाष्य उपर पण छे. भांता ४९, पृ. ३९१, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह स्वोपज्ञभाष्य की सिद्धसेनीया टीका, अपूर्ण 318
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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