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________________ ६-कल्पावतंसिका उपाङ्ग, [अन्तगडदशाङ्गप्रतिबद्ध ] पद्म, महापद्म, भद्र, सुभद्र, पद्मभद्र, पद्मसेन, पद्मगुल्म, नलिनी-गुल्म, आनन्द, नन्दन के नाम से 10 अध्ययन हैं। 10- पुष्पिका उपाङ्ग, अणुत्तरोववाईप्रतिबद्ध चन्द्र, सूर, शुक्र, बहुपुत्रिका, पुण्यभद्र, माणिभद्र, दत्त, शिव, वलि, अनादृत नाम से दश 10 अध्ययन हैं। 11- पुष्पचूलिका उपाङ्ग, [प्रश्नव्याकरणप्रतिबद्ध ] श्री, ही, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, इलादेवी, सुरादेवी, रसदेवी, गन्धदेवी नाम से दश 10 अध्ययन हैं। 12- वह्रिदिशा उपाङ्ग, [विपाकसूत्रप्रतिबद्ध निसङ्क, अत्रि,दह, वह, पगती, जुति, दसरह, दढरह, महाधनु, सत्तधनु, दसधनु, नामेसय के नाम से 12 अध्ययन हैं इन पाँचो उपाङ्गों का एक नाम 'निरयावली' है, और कल्पिका आदि पाँचो उपाङ्गो के 52 अध्ययन हैं / इनकी संपूर्ण मूलग्रन्थसंख्या 1106 है, इनकी वृत्ति 700 श्री चन्द्रसूरिकृत है। संपूर्ण ग्रन्थसंख्या 1806 है // इस तरह बारह उपाङ्गों की मूलसंख्या 25420 है और टीका की संख्या 67636, और लघुवृत्ति 6828, चूर्णि 3360, संपूर्णसंख्या 103544 है। दश पइन्नाओं (प्रकीर्णक) की गाथा संख्या इस तरह है१- चउसरण पइन्ना में 63 गाथा हैं ! 2 आउरपञ्चक्खाण पइन्ना में 84 गाथा हैं। 3 भत्तपञ्चक्खाण पइन्ना में 172 गाथा हैं। 4 संथारग पइन्ना में 122 गाथा हैं। 5 तंदुलवेयाली पइन्ना में 400 गाथा हैं। 6 चन्दविजगपइन्ना में 310 गाथा हैं। 7 देविन्दत्थव पइन्ना में 200 गाथा हैं / 8 गणिविज्जा पइन्ना में 100 गाथा हैं। 6 महापञ्चक्खाण पइन्ना में 134 गाथा हैं (कई लिखी प्रतियों में महापचक्खाण पइन्ना के स्थान में 43 गाथावाला वीरस्तव पइन्ना लिखा है, किन्तु उपर कहे हुए दश पइनाओं से पृथक् भी है परन्तु उनकी यहाँ आवश्यकता न होने से केवल नामनिर्देश ही किया है।) 10 समाधिमरण पइन्ना में 720 गाथा हैं। इन दश पइन्नाओं की संपूर्ण गाथासंख्या 2305 है और प्रत्येक में दश दश अध्ययन हैं, और ये दश पइन्ना भी पैंतालीस आगम की गिनती में हैं। 1 वीरस्तव पइन्ना गाथा 43 है। 2 ऋषिभाषित सूत्र संख्या 750 / 3 सिद्धिप्राभृतसूत्र संख्या 150, और इसकी टीका 750 है। 4 दीवसागरपन्नत्ति संग्रहणी संख्या 250, और इसकी टीका 2500 है। 5 अङ्गविजापइन्ना संख्या 8800 (कहीं 2 पाई जाती) है। 6 ज्योतिष्करण्डक पइन्ना संख्या 500, इसकी टीका मलयगिरिकृत 5400 है, और 21 पाहुडा (प्राभृतक हैं। 7 गच्छाचारपइन्ना, टीका विजयविमलगणिविरचित, मूलटीका संख्या 5850 है, और 4 अधिकार हैं। 8 अङ्गचूलिया ग्रन्थसंख्या 800, इसमें लिखा हुआ है कि "आर्यसुधर्मा स्वामी से उन के शिष्य जम्बूस्वामी ने पूछा कि-ग्यारह अङ्गों की अनचूलिका किस लिए हैं?"इस पर सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया कि-"जिस तरह आभूषणों से अङ्ग शोभित होते हैं उसी तरह
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
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