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________________ 63 ७-उपासकदशाङ्ग सूत्र, अध्यन 10, मूल श्लोकसंख्या 812, और इसपर अभयदेवसूरिकृत टीका 600, संपूर्ण संख्या 1712 है। ५-अन्तगडदशाङ्ग सूत्र, अध्ययन 60, मूलश्लोकसंख्या 100, और उसपर अभयदेवसूरिकृत टीका 300, संपूर्णसंख्या 1200 है। 6- अणुत्तरोववाइयदशाङ्ग सूत्र, अध्ययन 33, मूलश्लोकसंख्या 262, और उसपर अभयदेवसूरिकृत टीका 100, संपूर्ण संख्या 362 है। 10- प्रश्नव्याकरण सूत्र, 5 आश्रवद्वार और 5 सम्बरद्वाररूप 10 अध्ययन, मूलश्लोकसंख्या 1250, और उसपर अभयदेवसूरिकृत टीका 4600, संपूर्ण संख्या 5850 है। 91- विपाक सूत्र, अध्ययन 20, मूलश्लोकसंख्या 1216, और उसपर अभयदेवसूरिकृत टीका ५००,संपूर्ण संख्या 2116 है। संपूर्ण ग्यारह अङ्गों की मूलश्लोकसंख्या 35656 है, और टीका 73544 है, और चूर्णि 22700 है, तथा नियुक्ति 700 है, और सब मिलकर 132603 है। आचाराङ्ग और सूत्रकृताङ्ग की टीका तो शीलाङ्गाचार्यकृत है और बाकी नवाङ्गी की टीका अभयदेवसूरिकृत है, इसीलिये अभयदेवसूरि का नवाङ्गीवृत्तिकार के नाम से उल्लेख किया जाता है ; अभयदेवसूरिजी का चरित्र प्र०भा०७०६ पृष्ठ में और 'सीलंगायरिय' शब्दपर शीलानाचार्य की कथा देखना चाहिए। बारह उपाङ्गों के नाम, टीका, और संख्या इस तरह है१- उववाई उपाङ्ग, (आचाराङ्ग प्रतिबद्ध) मूलश्लोकसंख्या 1200, और उसपर अभयदेवसूरिकृत टीका 3125, संपूर्ण संख्या 4325 है। 2- रायपसेणी उपाङ्ग, (सूत्रकृताङ्गप्रतिबद्ध) मूलश्लोकसंख्या 2078, और उसपर मलयगिरिकृत टीका 3700, संपूर्ण संख्या 5778 है। 3- जीवाभिगम उपाङ्ग, (स्थानाङ्गप्रतिबद्ध) मूलश्लोकसंख्या 4700, मलयगिरिकृत टीका 14000, लघुवृत्ति 1100, और चूर्णि 1500 है, संपूर्ण संख्या 21300 है। 4- पन्नवणा (प्रज्ञापना) उपाङ्ग, (समवायाङ्गप्रतिबद्ध) मूलश्लोकसंख्या 7787, मलयगिरिकृत टीका 16000, हरिभद्र-सूरिकृत लघृवृत्ति 3728 है, संपूर्ण संख्या 27515 है। ५-जम्बूद्वीपपन्नत्ति उपाङ्ग, (भगवतीप्रतिबद्ध) मूलश्लोकसंख्या 4146, मलयगिरिकृत टीका 12000, चूर्णि 1860 है, संपूर्ण संख्या 18006 है। 6- चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र, (ज्ञाताप्रतिबद्ध) मूलश्लोकसंख्या 2200, मलयगिरिकृत टीका 1411, लघुवृत्ति 1000 है, संपूर्ण संख्या 12611 है। 7- सूरपन्नत्ति सूत्र उपाङ्ग, (ज्ञाताप्रतिबद्ध) मूलसंख्या 2200, मलयगिरिकृत टीका 6000, चूर्णि 1000, संपूर्ण संख्या 12200 है। चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति दोनों मिलकर ज्ञातप्रतिबद्ध हैं। 5- कल्पिका उपाङ्ग (उपासकदशाङ्गप्रतिबद्ध) काल, सुकाल, महाकाल, कृष्ण, सुकृष्ण, महाकृष्ण, वीरकृष्ण, रामकृष्ण, पितृसेनकृष्ण, सहासेनकृष्ण के नाम से 10 अध्ययन हैं /
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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