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काव्यालङ्कारसारसंग्रह ]
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[ काव्यप्रकाश
आधारगन्थ-- क. काव्यालंकारसूत्रवृत्ति-हिन्दी भाष्य - सं० २०११ ( संस्करण ) ख संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास- डॉ० पा० वा० गुणे ।
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काव्यालङ्कारसारसंग्रह - काव्यशास्त्र का सुप्रसिद्ध ग्रन्थ । इसके रचयिता आ० उद्भट हैं । [ दे० उद्भट ] यह ग्रन्थ मुख्यतः अलंकार-ग्रन्थ है । इसमें छह वर्ग एवं ७९ कारिकाएँ हैं तथा ४१ अलंकारों का विवेचन है । अलंकारों का विवेचन वर्गक्रम से इस प्रकार है - प्रथम वर्ग - पुनरुक्तवदाभास, छेकानुप्रास, त्रिविधअनुप्रास, (परुषा, उपपनागरिका, ग्राम्या या कोमला ) लाटानुप्रास, रूपक, उपमा, दीपक, ( आदि, मध्य, अन्त ) प्रतिवस्तूपमा । द्वितीय वर्ग - आक्षेप, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक, विभावना, समासोक्ति, अतिशयोक्ति । तृतीय वर्ग - यथासंख्य, उत्प्रेक्षा, स्वभावोक्ति । चतुर्थ वर्ग - प्रेय, रसवत्, उर्जस्वित् पर्यायोक्त, समाहित, उदात्त ( द्विविध ), शिलष्ट | पंचम वर्गअपहनुति, विशेषोक्ति, विरोध, तुल्ययोगिता, अप्रस्तुतप्रशंसा, व्याजस्तुति, निदर्शना, उपमेयोपमा, सहोक्ति, संकर ( चार प्रकार का ), परिवृत्ति । षष्ठ वर्ग - अनन्वय, ससंदेह, संसृष्टि, भाविक, काव्यलिंग, दृष्टान्त । 'काव्यालंकारसारसंग्रह' में लगभग १०० उदाहरण उद्भट ने स्वरचित काव्य 'कुमारसंभव' से दिये हैं । इस पर प्रतीहारेन्दुराज ने 'लघुवृत्ति' नामक टीका लिखी है । इसका प्रकाशन १९२५ ई० में बम्बई संस्कृत सीरीज से हुआ है जिस पर डी० बनहट्टी ने अपनी टिप्पणी एवं अंगरेजी भाष्य प्रस्तुत किया है । सर्वप्रथम कर्नल जैकब द्वारा ज० रो० ए० सो० में १८९७ ई० में पृ० ८२९ - ८४७ में प्रकाशित । १९१५ ई० में लघुवृत्ति के साथ निर्णयसागर प्रेस से प्रकाशित । लघुवृति सहित काव्यालंकारसारसंग्रह का हिन्दी अनुवाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन से प्रकासनाधीन । अनु० डॉ० राममूर्ति त्रिपाठी ।
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आधारग्रन्थ-क. काव्यालङ्कारसारसंग्रह - बनहट्टी संस्करण । ख. संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास - डॉ० पा० वा० काणे |
इसके प्रणेता आचार्य मम्मट हैं । तथा इसके तीन विभाग हैंरचयिता स्वयं मम्मट हैं और
काव्यप्रकाश - काव्यशास्त्र का महनीय ग्रन्थ । [ दे० मम्मट ] यह ग्रन्थ दस उल्लास में विभक्त है कारिका, वृत्ति एवं उदाहरण । कारिका एवं वृत्ति के उदाहरण विभिन्न ग्रन्थों से लिए गए हैं । इसके प्रथम उल्लास में काव्य के हेतु, प्रयोजन, लक्षण एवं भेद - उत्तम, मध्यम एवं तथा अवर – का वर्णन है । द्वितीय उल्लास में शब्दशक्तियों का एवं तृतीय में व्यंजना का वर्णन है ( आर्थी व्यंजना ) । चतुथं उल्लास में उत्तम काव्य ध्वनि के भेदोपभेद एवं रस का निरूपण है । पंचम उल्लास में गुणीभूतव्यंग्य ( मध्यमकाव्य ) का स्वरूप, भेद तथा व्यंजना के विरोधी तर्कों का निरास एवं उसकी स्थापना है । षष्ठ उल्लास में अधम या चित्रकाव्य के दो भेदोंशब्दचित्र एवं अर्थचित्र का वर्णन है और सप्तम उल्लास में ७० प्रकार के काव्यदोष वर्णित हैं । अष्टम उल्लास में गुण-विवेचन एवं नवम में शब्दालङ्कारों - वक्रोक्ति, अनुप्रास, यमक, श्लेष, चित्र एवं पुनरुक्तप्रदाभास का वर्णन है और दशम उल्लास में ६० अर्थालङ्कार एवं दो मिश्रालङ्कारों संकर एवं संसृष्टि का विवेचन है । मम्मट द्वारा