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________________ काव्यालंकारसूत्रवृत्ति] (१२२ ) [काव्यालंकारसूत्रवृत्ति विभाजन अधिकरणों में हुआ है जिसमें पांच अधिकरण हैं। प्रत्येक अधिकरण में कई अध्याय हैं । सम्पूर्ण ग्रन्थ में पांच अधिकरण, १२ अध्याय एवं ३१९ सूत्र हैं। इस पर लेखक ने स्वयं वृत्ति की भी रचना की है प्रणम्य च परं ज्योतिमिनेन कविप्रिया । काव्यालंकारसूत्राणां स्वेषां वृत्तिविधीयते ॥ प्रथम अधिकरण में काव्यलक्षण, काव्य और अलंकार, काव्य के प्रयोजन (प्रथम अध्याय में ), काव्य के अधिकारी, कवियों के दो प्रकार, कवि तथा भावक का सम्बन्ध, काव्य की आत्मा (रीति को काव्य की आत्मा कहा गया है ) रीति के तीन प्रकारवैदर्भी, गौड़ी एवं पाञ्चाली, रीति-विवेचन ( द्वितीय अध्याय ) काव्य के अंग, काव्य के भेद-गद्य-पद्य, गद्य काव्य के तीन प्रकार, पद्य के भेद-प्रबन्ध एवं मुक्तक, आख्यायिका के तीन प्रकार ( तृतीय अध्याय ) आदि विषयों का विवेचन है। द्वितीय अधिकरण में दो अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में दोष की परिभाषा, पांच प्रकार के पददोष, पाँच प्रकार के पदार्थदोष, तीन प्रकार के वाक्यदोष, विसन्धिदोष के तीन प्रकार एवं सात प्रकार के वाक्यार्थ दोष का विवेचन है। द्वितीय अध्याय में गुण एवं अलंकार का पार्थक्य तथा दस प्रकार के शब्दगुण वर्णित हैं। द्वितीय अध्याय में दस प्रकार के अर्थदोषों का वर्णन है। चतुर्थ अधिकरण में मुख्यतः अलंकारों का वर्णन है । इसमें तीन अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में शब्दालंकार-यमक एवं अनुप्राप्त का निरूपण एवं द्वितीय में उपमा-विचार है। तृतीय अध्याय में प्रतिवस्तु, समासोक्ति, अप्रस्तुतप्रशंसा, अपहृति, रूपक, श्लेष, वक्रोक्ति, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, सन्देह, विरोध, विभावना, अनन्वय, उपमेयोपमा, परिवृत्ति, व्यर्थ, दीपक, निदर्शना, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक, विशेषोक्ति, व्याजस्तुति, व्याजोक्ति, तुल्ययोगिता, आक्षेप, सहोक्ति, समाहित, संसृष्टि, उपमारूपक एवं उत्प्रेक्षावयव नामक अलंकारों का विवेचन है। पंचम अधिकरण में दो अध्याय हैं। दोनों में शब्दशुद्धि एवं वैयाकरणिक प्रयोग पर विचार किया गया है। इस प्रकरण का सम्बन्ध काव्यशास्त्र से न होकर व्याकरण से है। वामन ने प्रत्येक अधिकरण एवं अध्याय का वर्णित विषयों के आधार पर नामकरण किया है। अधिकरणों के नाम हैं-शारीर, दोषदर्शन, गुण-विवेचन, आलंकारिक एवं प्रयोगिक । इस ग्रन्थ के तीन विभाग हैं-सूत्र, वृत्ति एवं उदाहरण । सूत्र एवं वृत्ति की रचना वामन ने की है और उदाहरण विभिन्न ग्रन्थों से लिये गए हैं। 'काव्यालंकारसूत्र' भारतीय काव्यशास्त्र का प्रथम ग्रन्थ है जिसमें सूत्र-शैली का प्रयोग किया गया है। इस पर सहदेव नामक व्यक्ति ने टीका लिखी थी। गोपेन्द्रतिभूपाल की भी 'काव्यालंकारसूत्र' पर टीका प्राप्त होती है जो कई बार प्रकाशित हो चुकी है । 'काव्यालंकारसूत्र' रीति सम्प्रदाय का प्रस्थापक ग्रन्थ माना जाता है। इसमें रीति को काव्य की मात्मा कहा गया है। इस ग्रन्थ का हिन्दी भाष्य आचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्त शिरोमणि ने किया है । 'काव्यालंकारसूत्र' की कामधेनुटीका ( गोपेन्द्रतिप्भूपाल कृत) सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इसमें गोपाल भट्ट नामक टीकाकार का भी उल्लेख है।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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