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________________ हंस कुण्डपुर निवासी व्यापारी यशोधर का पुत्र और दृढ़ प्रतिज्ञ केशव का सहोदर । ( देखिए-केशव) हंसराज (वच्छराज ) पैठणपुर नरेश महाराज नरवाहन की प्राणप्रिया रानी हंसावली का अंगजात। उसका एक सहोदर था जिसका नाम वच्छराज था। दोनों भाइयों में परस्पर प्रगाढ़ प्रेम था। दोनों राजकुमार शिक्षा-दीक्षा पूर्ण कर जब यौवन के द्वार पर पांव रख रहे थे तो अकस्मात् घटित एक घटना ने उनका जीवन विचित्र और विकराल घटनाओं से पूर्ण बना दिया। वह घटना थी - एक बार जब दोनों भाई परस्पर गेंद से खेल रहे थे तो उनकी गेंद विमाता लीलावती के महल में चली गई। दोनों भाई गेंद लेने वहां गए तो लीलावती ने उनसे भोगेच्छा पूर्ण करने की प्रार्थना की। दोनों भाइयों के लिए यह अकल्प्य प्रस्ताव था । दोनों ने लीलावती को मातृपद से सम्मानित किया और दुश्चिन्तन को मन से दूर करने का उसे परामर्श दिया। लीलावती ने इसे अपना अपमान माना और अपने वस्त्र फाड़कर कल्पित स्वांग रच दिया कि हंसावली के पुत्रों ने उसे अपमानित किया है। राजा तक सूचना पहुंची। कानों के कच्चे राजा ने बिना पड़ताल किए मंत्री को आदेश दिया कि वह उसके दोनों पुत्रों को जंगल में ले जाकर शूली पर चढ़ा दे । मंत्री बुद्धिमान था और जानता था कि हंसराज और वच्छराज निरपराध हैं। पर राजाज्ञा के समक्ष वह विवश था। वह दोनों राजकुमारों को जंगल में ले गया और दोनों को द्रुतगामी दो अश्व तथा बहुमूल्य बारह रत्न देकर कहा कि वे पैठणपुर राज्य से दूर निकल जाएं। राजकुमारों ने देवतुल्य मंत्री को प्रणाम किया और अश्वारूढ़ होकर एक दिशा में चल दिए । दूर जंगल में जाने पर हंसराज को प्यास लग गई। वह एक वृक्ष की छाया में बैठ गया और वच्छराज उसके लिए जल लेने के लिए चला गया। इतनी ही देर में वृक्ष के नीचे लेटे हंसराज को एक विषधर ने डस लिया जिससे उसकी श्वासगति मंद पड़ गई । वच्छराज ने लौटकर देखा तो भाई को मृत पाया । वह शोक सागर में डूब गया। भाई के संस्कार के लिए वह चन्दन की लकड़ियों की व्यवस्था के लिए निकट के नगर कुन्ती नगर में पहुंचा। वहां एक धूर्त सेठ मम्मण ने वच्छराज को अपने वाग्जाल में फंसा कर उससे उसके रत्न और अश्व ले लिए तथा बदले में चन्दन की लकड़ियां उसे दे दीं। लकड़ियों को लेकर वच्छराज जंगल में पहुंचा, पर उसे उसका भाई वहां नही मिला । वस्तुतः घटना ऐसे घटी कि वच्छराज के लकड़ियां लेने के लिए चले जाने के बाद एक गरुड़ पक्षी उस वृक्ष पर आ बैठा और उसके मुख से टपकी लार से हंसराज की देह निर्विष हो गई। हंसराज भाई वच्छराज को खोजते हुए नगरों और जंगलों में भटकने लगा । उधर वच्छराज को इतना संतोष अवश्य हो गया कि उसका सहोदर जीवित है । वह चन्दन की लकड़ियां लौटाने के लिए मम्मण सेठ के पास पहुंचा तो सेठ ने कपट जाल फैलाकर वच्छराज को चोर ठहरा दिया और • जैन चरित्र कोश ••• *** 710
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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