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________________ राजा से उसे मुत्युदण्ड दिलवा दिया। चाण्डाल को वच्छराज पर करुणा आ गई और उसे पुत्र मानकर अपने घर के भौंयरे में छिपा लिया। मम्मण सेठ के पुत्र का नाम पुष्पदत्त था। वह अपने पिता के समान ही धूर्त और कपटी था। वह व्यापार के लिए प्रदेश जाने लगा तो उसके जहाज जल में ही स्तंभित हो गए। मम्मण ने सामुद्रिक वेत्ता को बुलाकर उसका कारण पूछा। सामुद्रिक ने स्पष्ट किया कि सेठ ने किसी की धरोहर दबा ली है। जिसकी धरोहर दबाई है वह व्यक्ति यदि जहाज पर कदम रख दे तो जहाज निरापद हो सकते हैं। मम्मण ने कहा, लेकिन जिस व्यक्ति की धरोहर दबाई गई है वह व्यक्ति तो मर चुका है। इस पर सामुद्रिक ने वच्छराज के जीवित होने की बात बताई। मम्मण ने अपनी कपट पूर्ण चतुरता से चाण्डाल से वच्छराज को प्राप्त कर लिया और उसे जहाज पर ले गया। वच्छराज के स्पर्श से ही जहाज स्तंभन मुक्त हो गए। पुष्पदत्त ने वच्छराज को अपना सेवक बनाकर अपने साथ रख लिया। पुष्पदत्त के जहाज कनकावती नगरी के तट पर पहुंचे। पुष्पदत्त वच्छराज के मृदु व्यवहार से प्रभावित बन चुका था। अतः वह वच्छराज को प्रत्येक कार्य में अपने साथ रखने लगा था। कनकावती पहुंचकर पुष्पदत्त और वच्छराज राजा से मिले। राजा को यथोचित भेंट देकर व्यापार की अनुमति प्राप्त कर ली गई। वच्छराज के निरन्तर राजदरबार में आने-जाने से किसी दिन राजकुमारी चित्रलेखा ने उसे देख लिया और वह उस पर मोहित हो गई। चित्रलेखा के आग्रह पर राजा ने उसका विवाह वच्छराज से कर दिया। वच्छराज के बढ़ते प्रभाव को पुष्पदत्त सहन नहीं कर सका। वह चित्रलेखा के रूप पर भी मोहित हो गया था। अपने नगर को लौटते हुए उसने धोखे से वच्छराज को समुद्र में फैंक दिया और चित्रलेखा के समक्ष अपना प्रेम-प्रस्ताव प्रस्तुत किया। चित्रलेखा बुद्धिमती कन्या थी। उसने अपनी चतुराई से पुष्पदत्त से कुछ समय मांग लिया। __उधर वच्छराज एक विशाल मत्स्य की पीठ पर बैठकर किनारे पर पहुंच गया। कुन्ती नगर में वह जिस वीरान उद्यान में विश्राम के लिए लेटा, पुण्य प्रभाव से वह उद्यान हरा-भरा हो गया। मालिन ने उसका कारण वच्छराज को माना और उसे अपना पुत्र मानकर अपने पास रख लिया। ___ हंसराज अनेक ग्रामों और नगरों में भाई को खोजता हुआ कुन्तीनगर में आया। नगर में पहुंचने पर . उसके पुण्य चमक उठे। निःसंतान राजा के निधन के पश्चात् सुसज्जित हथिनी ने हंसराज के गले में पुष्पमाला पहनाकर उसे राजा चुन लिया। हंसराज ने सिंहासन पर बैठते ही घोषणा कराई कि जो भी उसके भाई वच्छराज के बारे में सूचना देगा उसे इच्छित धन और पद दिया जाएगा। उधर पुष्पदत्त कुन्तीनगर पहुंच चुका था। वच्छराज ने मालिन द्वारा पता लगा लिया कि पुष्पदत्त कुन्तीनगर आ चुका है। उसने मालिन के हाथ से अपनी पत्नी चित्रलेखा के पास अपने सुरक्षित होने की सूचना भेजी। चित्रलेखा के हर्ष का पार न रहा। वह अपने पति से मिलने के उपाय पर चिन्तन करने लगी। उसी दौरान उसे राजा द्वारा कराई गई घोषणा सुनाई पड़ी। उसने तत्क्षण उद्घोषक को अपने पास बुलाया और कहा कि वह राजा के भाई का परिचय जानती है। राजा हंसराज को सूचना मिली तो उसने शिविका भेजकर राजकीय सम्मान के साथ चित्रलेखा को राजदरबार में बुलवाया। चित्रलेखा ने हंसराज वच्छराज के पैठण से प्रस्थान से शुरू कर वर्तमान तक का समग्र कथानक सुना दिया और स्पष्ट कर दिया कि वर्तमान में वच्छराज मालिन का पुत्र बनकर इसी नगर में रह रहा है। वच्छराज को मान-सम्मान के साथ राजभवन में लाया गया। दोनों भाई लम्बे समय बाद मिले। चित्रलेखा भी वच्छराज को प्राप्त हो गई। मम्मण और पुष्पदत्त को देश-निकाला दिया गया। ... जैन चरित्र कोश ... -- 711 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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