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________________ सुजय राजर्षि सुजय अयोध्या के राजा विजयराज का पुत्र था। पिता के पश्चात् सुजय सिंहासन पर आसीन हुआ। स्वभाव से ही वह दानी प्रवृत्ति का था। खुले हृदय से और दोनों हाथों से वह दान देता था। उसके पुण्यों से उसके कोष सदा ही धन से भरे रहते थे। एक बार वन-प्रान्तर में विहार करते हुए सुजय को एक तपस्वी मुनि के दर्शन हुए। सुजय को वे मुनि जाने-पहचाने से लगे। वह सोचने लगा कि उसने मुनि को कहीं अवश्य देखा है। चिन्तन करते-करते, स्मृति पर जोर डालते-डालते उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसे अपना पूर्वभव हस्तामलकवत् दिखाई देने लगा। उसने देखा, वह पूर्व जन्म में संगमक नामक एक वणिकपुत्र था। व्यापार के लिए वह समुद्र यात्रा पर था तो उसका जहाज हिमशिला से टकराकर टूट गया। पुण्य योग से काष्ठ खण्ड के सहारे वह किनारे पर आ लगा। जंगल में उसने कुछ फल तोड़े और उनको खाने को उद्यत हुआ। उसी क्षण एक शुभ भाव उसके हृदय में प्रगट हुआ कि कितना अच्छा हो कि कोई मुनि-महात्मा उसके हाथ से भिक्षा ग्रहण करे। उसके शुभभाव फलित हुए और एक मुनि उधर पधारे। उच्च भावों से उसने मुनि श्री को प्रासुक फल प्रदान किए। आहार लेकर मुनि श्री लौट गए और उसी रात्रि में संगमक का देहान्त हो गया। वह संगमक ही मैं हूँ और ये मुनि वही हैं जिनको मैंने आहार दान देकर महान पुण्यों का अर्जन किया था। सुजय ने मुनि को वन्दन किया और अपना परिचय दिया। उसकी प्रार्थना पर मुनिश्री ने उसके हाथ से भिक्षा ग्रहण की। सुजय का हृदय संयम ग्रहण करने के लिए उत्सुक बन चुका था। उसने राजपाट छोड़कर आहती दीक्षा ग्रहण कर ली। तप और संयम की निरतिचार साधना करके सुजय राजर्षि अच्युत स्वर्ग में गए। अनुक्रम से मोक्ष जाएंगे। -कथारनकोष भाग1 (क) सुजात कुमार ___चम्पानगरी के रहने वाले सम्यक्त्वी श्रमणोपासक धनमित्र और धनश्री का आत्मज, रूप और गुणों का निधान युवक। वह इतना सुरूप था कि नर-नारियों की दृष्टि उसके रूप पर चिपक कर रह जाती थी। उसे देखकर कुंवारी कन्याएं और विवाहित स्त्रियां लोक लाज को विस्मृत कर उसे देखती रह जाती थीं। एक बार महामंत्री धर्मघोष की पत्नियों ने सुजात कुमार को देखा तो वे भी उसके रूप पर मंत्रमुग्ध बन गईं। पर वे कुलीन नारियां थीं। उन्होंने अपने मनों पर विवेक का अंकुश लगाया। पर इतना विवेक वे अवश्य विस्मृत कर बैठीं कि परस्पर एकत्रित होकर मुग्ध भाव से सुजात कुमार के रूप की प्रशंसा करने लगी। उनकी चर्चा के स्वर मंत्री के कानों में पड़ गए। मंत्री बहुत बुद्धिमान था। वह सोचने लगा, सुजात कुमार का रूप मेरी पलियों के अनुराग का कारण बन गया है, भविष्य में यही रूप कभी न कभी उसके पारिवारिक जीवन के आधार को खिसका भी सकता है। अतः कोई ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे सुजात को रास्ते से हटाया जा सके। बहुत चिन्तन-मनन करके मंत्री ने एक युक्ति सोची। उस युक्ति के अनुसार उसने राजा के समक्ष यह सिद्ध कर दिया कि सजात कमार के हृदय में देशद्रोह का भाव पनप रहा है। राजा और मंत्री-दोनों ही जानते थे कि धनमित्र और उसके पत्र के विरुद्ध बिना प्रमाण के कछ भी अनचित नहीं किया जा सकता है। उससे नागरिकों में असंतोष भड़क जाने की पूर्ण संभावना थी। मंत्री ने एक युक्ति प्रस्तुत की, महाराज! अमरापुरी नरेश चन्द्रध्वज आपके अन्तरंग मित्र हैं। आप एक पत्र देकर सुजात को उनके पास भेज दीजिए और पत्र में लिख दीजिए कि पत्र-वाहक देशद्रोही है उसकी हत्या कर दी जाए। राजा को मंत्री की युक्ति उचित लगी। उसने उक्त आशय का एक पत्र तैयार किया और सुजात ... जैन चरित्र कोश ... - 653 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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