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________________ सेठ के आचार, व्यवहार और वाणी को प्रमाण मानने लगे। छह माह व्यतीत होते-होते गांव में सेठ का यश फैल गया। प्रामाणिकता के कारण उसके व्यापार में भी आशातीत उछाल आया। पूर्वापेक्षया उसे दोगुणा-तीन गुणा लाभ भी प्राप्त हुआ। लोग 'वंचक वणिक' शब्द को भूल गए और सागरदत्त को 'सेठ जी' कहकर पुकारने लगे। सुलक्षणा ने श्वसुर और पति के हृदय में धर्म के संस्कारों का बीजारोपण किया। सामायिक-संवर की निष्ठा उनके भीतर जागृत की। सेठ प्रामाणिक और धार्मिक जीवन जीकर सद्गति का अधिकारी बना। -उपदेश प्रासाद (श्राद्धविधि) सामज्ज मुनि प्राचीनकालीन एक जैन श्रमण जो योग-विद्या में कुशल थे। (देखिए-रुद्रसूरि) सायर (देखिए-चन्दन राजा) सारण कुमार महाराज वसुदेव और महारानी धारिणी के अंगजात, भगवान अरिष्टनेमि के प्रवचन से प्रतिबोध पाकर सारण प्रव्रजित बने। बीस वर्षों तक विशुद्ध संयम पालकर मासिक संलेखना के साथ शत्रुजय पर्वत से सिद्ध-बुद्ध-मुक्त बने। -अन्तगडसूत्र, तृतीय वर्ग, सप्तम अध्ययन सालिहीपिता श्रावक भगवान महावीर के दस श्रमणोपासकों में से एक। वह श्रावस्ती नगरी का निवासी था। उसके पास बारह कोटि स्वर्णमुद्राएं तथा चालीस हजार गाएं थीं। उसने अपनी पत्नी फाल्गुनी सहित भगवान महावीर से श्रावक धर्म की दीक्षा ली थी। उसने चौदह वर्षों तक विशुद्ध श्रावकाचार की आराधना की। अन्ततः मासिक अनशन सहित देह विसर्जित कर प्रथम देवलोक में गया। वहां से महाविदेह में जन्म लेकर निर्वाण प्राप्त करेगा। सावियब्बे ___ गंगकाल की एक जैन महिला। सावियब्बे धर्मप्राण सन्नारी थी। श्रवणबेलगोल के एक पाषाण पर इस वीरांगना का एक चित्र है तथा साथ ही शिलालेख भी है। चित्र में इस वीरांगना को घोड़े पर सवार होकर एक गजारूढ़ योद्धा पर आक्रमण करते हुए दिखाया गया है। लेख में उल्लेख है-सावियब्बे रेवती जैसी दृढ़धर्मिणी श्राविका, सीता जैसी पतिव्रता, देवकी जैसी रूपवती, अरुन्धती जैसी धर्मप्रिया तथा शासनदेवी जैसी जिनेन्द्र भक्त थी। शिलालेख से सिद्ध है कि सावियब्बे एक योद्धा भी थी। उसने अपने पति के साथ मिलकर राजा रक्कसगंग की सेना की ओर से बगेपुर युद्ध में अपने जौहर दिखाए थे। रणभूमि में ही वह वीरगति को प्राप्त हुई थी। साहसमति ___ चक्रांक राजा का पुत्र। उसने सुग्रीव का रूप धारण कर सुग्रीव के लिए विकट स्थितियां उत्पन्न कर दी थीं। (देखिए-तारा) ... जैन चरित्र कोश ... --- 639 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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