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________________ (क) सिंह ___ मगधदेश के महालय ग्राम का रहने वाला एक सद्गृहस्थ। उसका एक छोटा भाई था, जिसका नाम वसन्त था। दोनों सहोदरों में प्रगाढ़ प्रीति भाव था। दोनों ईमानदारी और श्रम से आजीविका कमाते और सुखपूर्वक जीवन-यापन करते हुए समय बिता रहे थे। कालक्रम से दोनों भाइयों के विवाह हो गए। कुछ वर्षों तक तो पारिवारिक प्रेम चलता रहा। बाद में वसंत की पत्नी ने पारिवारिक प्रेम में सेंध लगाना शुरू कर दिया। वह अपने पति वसंत को नित-नई काल्पनिक कथाएं सुनाकर बड़े भाई से अलग होने के लिए उकसाने लगी। वह कहती कि उसके बड़े भाई अलग से धन जमा करके रखते हैं, जेठानी पलंग पर विश्राम करती रहती है और वह दिन भर श्रम करती है। धीरे-धीरे पत्नी ने वसंत के हृदय को विषैला बना दिया। उसने बड़े भाई से अलग होने का निश्चय कर लिया। उसने अपने मन के भाव बड़े भाई से कहे। सिंह ने वसंत को ऊंच-नीच समझाई और साथ रहने के लिए मनाने का प्रयास किया। परन्तु वसंत उसके लिए तैयार नहीं हुआ। आखिर सिंह ने उसे आधा धन और आधी जमीन देकर अलग कर दिया। ___ वसंत की पत्नी को इच्छित-वरदान मिल गया। वह अपने ढंग से खाने, पहनने और व्यय करने लगी। थोड़े ही दिनों में उनका संचित धन समाप्त हो गया। सिंह की पत्नी बुद्धिमती थी। वह आय से कम व्यय करती और धन बचाकर रखती। फलतः अपेक्षाकृत कम श्रम करके भी सिंह का जीवन सुखपूर्वक चलता रहा । वसंत की पत्नी ने पति को भड़काया, तुम्हारे बड़े भाई प्रारंभ से ही अलग धन जमा करते रहे थे। इसीलिए तो बिना श्रम किए ही वे सानन्द उस धन का उपभोग कर रहे हैं। अतः तुम उनके पास जाओ और गुप्त रखे धन का हिस्सा मांग लाओ। पत्नी के कहे अनुसार वसंत सिंह के पास गया और गुप्त धन में से हिस्सा मांगने लगा। सिंह ने स्पष्ट किया कि उसके पास कोई गुप्त धन नहीं है। भाई द्वारा संदेह किए जाने पर सिंह को बड़ा कष्ट हुआ और उसने वसंत को इच्छित धन दे दिया। पर वह धन भी कब तक चलता? पत्नी के द्वारा उकसाए जाने पर वसंत भाई की हत्या करने के लिए गया। पर सिंह सचेत था। वह वसंत के प्रहार से बच गया। भाई के द्वेषपूर्ण व्यवहार को देखकर सिंह विरक्त हो गया। गृह-त्याग कर वह मुनि बन गया। उग्र तपश्चरण करके वह सौधर्मकल्प में देव बना। उधर वसंत को ग्रामीणों का कोप सहन करना पड़ा। वह भी गृह-त्याग कर तापस बन गया और अज्ञान तप करके ज्योतिषी देव बना। देवभव से च्यव कर सिंह का जीव गजपुर नगर के श्रेष्ठी सुरेन्द्र के पुत्र रूप में जन्मा। युवावस्था में एक मुनि के दर्शन कर उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसे अपना पूर्वभव स्पष्ट दिखाई देने लगा। उसने मुनि से अपने छोटे भाई के बारे में पूछा तो मुनि ने बताया, तापसी जीवन जीकर वह ज्योतिषी देवों में जन्मा है। वहां से कई छोटे-छोटे भव करते हुए वर्तमान में वह अचल नगर के बाह्य भाग में स्थित बहुशाल उद्यान में महाभयंकर विषधर बना है। कर्मों की विचित्रता को देख-सुनकर श्रेष्ठि पुत्र वसुधर प्रव्रजित हो गया। उग्र तपश्चरण और स्वाध्यायादि से मुनि वसुधर ने अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान प्राप्त किया। किसी समय भ्रमण करते हुए मुनि वसुधर बहुशाल उद्यान में पधारे और विषधर को धर्मोपदेश देकर जागृत किया। वसंत के जीव विषधर को भी जातिस्मरण ज्ञान की उपलब्धि हुई। उसने मुनि की साक्षी से अनशन किया और सौधर्मकल्प में देव बना। वहां से च्यव कर मनुष्य-भव प्राप्त कर वह मोक्ष में जाएगा। ... 640 .. ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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