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________________ चक्कर चला कि सेठ और सेठानी उदरपोषण भी ठीक से नहीं कर पाते थे। समुद्रदत्त को माता-पिता की यह दुर्दशा देखकर हार्दिक कष्ट हुआ। पर जब उसे नन्दा के निकाल दिए जाने की घटना ज्ञात हुई तो उसका हृदय हाहाकार कर उठा। उसने प्रण कर लिया कि जब तक वह नन्दा को नहीं खोज लेगा तब तक अन्न का एक कण भी ग्रहण नहीं करेगा। एक तीव्रगामी अश्व पर आरूढ़ होकर समुद्रदत्त नन्दा की खोज में निकला। जंगलों की खाक छानता हुआ, भाग्योदय से उसी आश्रम में पहुंच गया जहां नन्दा को संरक्षण प्राप्त था। पति-पत्नी का मिलन हुआ। नन्दा पति के दर्शन कर सारे कष्टों को भूल गई। पहले ऋषि और बाद में राजा पद्मसिंह के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित कर समुद्रदत्त नन्दा और अपने पुत्र को साथ लेकर अपने नगर में पहुंचा। सास-श्वसुर ने शत-शत अश्रुधाराएं प्रवाहित कर नन्दा से क्षमा मांगी। नन्दा ने सास-श्वसुर को वन्दन किया और कहा कि इसमें वे निर्दोष हैं, मनुष्य के सुख-दुख का कारण स्वयं उसके अपने कर्म ही होते हैं। कुछ समय बाद आचार्य चरित्रगुप्त चम्पानगरी में पधारे। सेठ ने गृहदायित्व पुत्र समुद्रदत्त को अर्पित कर चारित्र धर्म ग्रहण कर लिया। सेठानी ने भी पति का अनुगमन किया। समुद्रदत्त और नन्दादेवी ने श्रावक के द्वादशव्रत अंगीकार किए। आजीवन विशुद्ध श्रावक धर्म की आराधना करके वे दोनों सद्गति के अधिकारी बने। कालक्रम से दोनों मोक्ष में जाएंगे। (ख) समुद्रदत्त कौशाम्बी का राजा। (देखिए-पुरुषोत्तम वासुदेव) समुद्रपाल भगवान महावीर के परम भक्त चम्पानगरी के रहने वाले पालित सेठ का पुत्र । समुद्र के मध्य तैरते हुए जहाज में जन्म लेने के कारण उसका नाम समुद्रपाल रखा गया था। समुद्रपाल युवा हुआ तो रूप-गुण सम्पन्न एक श्रेष्ठि कन्या से उसका पाणिग्रहण किया गया। समृद्धि के झूले पर झूलता हुआ वह जीवन व्यतीत करने लगा। ___ एक दिन अपने महल के झरोखे से समुद्रपाल ने राजपुरुषों द्वारा बन्दी बनाकर ले जाए जाते हुए एक चोर को देखा। उसके भीतर चिन्तन का उत्स फूट पड़ा कि व्यक्ति को उसके कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है। विभिन्न तलों को स्पर्श करता हुआ उसका चिन्तन आत्मकेन्द्रित बन गया और उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। माता-पिता की आज्ञा लेकर वह मुनि बन गया और उत्कृष्ट चारित्र की आराधना करके केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष का अधिकारी बना। -उत्तराध्ययन सूत्र, अ. 21 (क) समुद्रविजय ___ एक यदुवंशी राजा, दस दशाों में प्रथम और भगवान श्री अरिष्टनेमि के जनक। वासुदेव श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव इनके लघुभ्राता थे। (ख) समुद्रविजय श्रावस्ती नरेश। मघवा चक्रवर्ती के जनक। समृद्धदत्त धातकीखण्ड द्वीप के भरत क्षेत्र का रहने वाला एक किसान। वह समृद्ध था, पर था विपरीत मति ... 626 .. जैन चरित्र कोश...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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