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________________ अपेक्षा उसने घर आने को समय का सदुपयोग माना । नन्दा पति के अनुराग भाव को देखकर गद्गद बन गई। प्रभात खिलने से पूर्व ही समुद्रदत्त लौटने को तत्पर हुआ। नन्दा ने समुद्रदत्त से विशेषरूप से आग्रह किया कि वह अपने आने की सूचना अपने माता-पिता को अवश्य देकर जाएं, क्योंकि आपकी माता इस तथ्य से भली-भांति परिचित है कि आपके विदेश रवाना होते समय • ऋतुमती थी। समुद्रदत्त संकोचवश अपने माता-पिता से मिले बिना ही लौट गया। समय की विचित्रता वश नन्दा ने भी इस तथ्य को गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि वह अपने सास- श्वसुर को अपने माता-पिता से भी अधिक प्यार करती थी। सास- श्वसुर का भी उस पर पूर्ण वात्सल्य भाव था । समय अपनी गति से गति करता रहा। चार मास व्यतीत होते-होते गर्भ के लक्षण प्रगट होने लगे । सास का हृदय नन्दा के प्रति दुराशंका से भर गया । उसने अपने पति से उक्त बात कही। कर्मों की गति के कारण कोमल हृदय सास- श्वसुर पाषाण हृदय बन गए। सेठ ने अपने मुनीम से वस्तुस्थिति कही और उक्त स्थिति से निपटने का उपाय पूछा। कुटिल हृदयी मुनीम ने बात को संवारने की अपेक्षा उसे और अधिक विकृत रूप में प्रस्तुत किया। उसने सेठ को समझाया कि ऐसी कुलकलंकिनी स्त्री को जितना शीघ्र हो सके अपने घर से निकाल देना चाहिए। सास- श्वसुर और मुनीम - तीनों ने मिलकर एक योजना निर्मित की और योजनानुसार नन्दा को भोजन में मूर्च्छा की औषध मिला कर खिला दी । नन्दा भोजन करने के पश्चात् मूर्च्छित हो गई। उसी अवस्था में सेठ ने अपने विश्वस्त अनुचर द्वारा नन्दा को एक रथ में डाल कर भयानक जंगल में छुड़वा दिया। नन्दा की चेतना लौटी तो उसने अपने आपको घोर घने जंगल में पाया । सहसा उसे अपनी परिस्थिति पर विश्वास नहीं हुआ। वह स्तंभित बन गई। कुछ निर्णय नहीं कर पाई कि वह जंगल में कैसे आ पहुंची। सोचते, चिन्तन करते हुए वस्तुस्थिति स्पष्ट होने लगी। उसे विश्वास हो गया कि उसे कलंकिनी मान कर जंगल में छोड़ा गया है। पवित्र होते हुए भी उस पर कलंकिनी का मिथ्या दोष लगा, इस विचार ने उसे कंपा दिया। उसके करुण क्रन्दन से वन- प्रान्तर का कण-कण दयार्द्र बन गया। वह बहुत देर तक रोती रही। पर रोना तो उपाय न था । वह विदुषी थी। उसने निर्णय कर लिया कि जब तक उस पर लगा मिथ्या आरोप धुल नहीं जाता तब तक वह अपने किसी परिचित के घर नहीं जाएगी। नन्दा जंगल में एकाकी भटकने लगी। एकदा कुछ भीलों ने उसे घेर लिया और पल्लिपति के पास ले गए । पल्लिपति ने नंदा को अपनी पत्नी बनाना चाहा । नन्दा के शील का चमत्कार प्रगट हुआ । पल्लिपति कांप उठा। उसने नन्दा को बहन का पद देकर एक नगर के निकट छुड़वा दिया। नगर नरेश पद्मसिंह से नन्दा की भेंट हुई। पद्मसिंह एक न्याय नीति सम्पन्न नरेश था। उसने नन्दा को अपनी बहन बना लिया । राजा के पूछने पर नन्दा ने अपनी पूरी कथा राजा को सुना दी और प्रार्थना की कि जब तक उस पर लगा यह कलंक धुल नहीं जाता है तब तक वह किसी एकान्त पवित्र स्थान में रहकर धर्माराधना करना चाहती है । राजा ने नन्दा को जंगल में स्थित एक आश्रम में छोड़ दिया। आश्रम का कुलपति राजा का गुरु था। वहां रहकर नन्दा अपने गर्भ के पालन के साथ-साथ धर्माराधना में लीन रहने लगी। कालक्रम से उसने एक पुत्र को जन्म दिया। ऋषि पत्नी ने मातृवत् नन्दा की शुश्रूषा की । बालक गुरु के सान्निध्य में अमृत संस्कारों को आत्मसात् करते हुए बड़ा होने लगा । उधर पांच वर्षों तक विदेशों में रहकर और करोड़ों की संपत्ति कमा कर समुद्रदत्त अपने नगर में लौटा। नन्दा को घर से निकाल देने पर सेठ सागरपोत की आर्थिक दशा डावांडोल बन गई थी। समय का ऐसा ••• जैन चरित्र कोश - *** 625 444
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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