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________________ (क) समुद्र इनका सम्पूर्ण परिचय गौतम के समान है। ये गौतम के अनुज थे। इन्होंने भी भगवान अरिष्टनेमि से प्रव्रजित बनकर सिद्धि प्राप्त की थी। (देखिए-गौतम) -अन्तगडसूत्र, प्रथम वर्ग, द्वितीय अध्ययन (ख) समुद्र (आचार्य) भगवान महावीर की श्रमण परम्परा के ख्याति प्राप्त आचार्य। नंदी सूत्र स्थविरावली के अनुसार उनका विमल सुयश समुद्र पर्यंत विस्तृत था और समुद्र के समान वे गंभीर व गुणों के अक्षय सागर थे। आचार्य षाण्डिल्य के बाद आर्य समुद्र का शासन काल माना जाता है। आर्य समुद्र वी.नि. 414 में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए और वी.नि. 454 में उनका स्वर्गारोहण हुआ। -नंदी सूत्र स्थविरावली (ग) समुद्र (कुमार) इनका समग्र परिचय गौतम के समान है। (देखिए-गौतम) -अन्तगडसूत्र, द्वितीय वर्ग, तृतीय अध्ययन (क) समुद्रदत्त चम्पानगरी के सुप्रसिद्ध श्रेष्ठी सागरपोत का इकलौता पुत्र । उसकी माता का नाम कमलप्रभा और पत्नी का नाम नन्दा देवी था। समुद्रदत्त भद्र, विनीत और अनेक कलाओं में प्रवीण था। वह अपने द्वार से किसी को रिक्त नहीं जाने देता था। उसकी उदारता नगर भर में विख्यात थी। ___ माता-पिता का पुत्र पर अनन्य अनुराग था। पर सेठ के मुनीम को समुद्रदत्त की यह उदारता पसन्द नहीं थी। एक दिन उसने कुमार पर व्यंग्य किया, पिता के धन से उदारता अर्जित करना जितना सरल है, स्वोपार्जित धन से उदारता अर्जित करना उतना ही दुष्कर है, स्वयं कमाओगे तो ज्ञात होगा कि कमाना कितना कठिन है। मुनीम का यह व्यंग्य समुद्रदत्त के हृदय में शल्य की भांति चुभ गया। उसने अपने श्रम से धन अर्जित करने का संकल्प कर लिया। उसके लिए उसने विदेश जाने का निश्चय किया और अपने संकल्प से अपने माता-पिता और पत्नी को परिचित करा दिया। माता-पिता ने पुत्र को अनेक तर्क उपस्थित करके समझाया कि उनके पास धन के अम्बार लगे हैं, उसे विदेश नहीं जाना चाहिए। पर बलवान तर्क प्रस्तुत करके समुद्रदत्त ने माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर ली। ____नन्दा और समुद्रदत्त के मध्य अनन्य प्रीतिभाव था। दोनों एक दूसरे के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते थे। नन्दा ने पति से साथ चलने का आग्रह किया। पर समद्रदत्त के इस तर्क के समक्ष कि उसकी अनपस्थिति में उसके माता-पिता की उसे सेवा करनी है. नन्दा मौन हो गई। शुभ मुहूर्त में समुद्रदत्त ने सागर में पोत बढ़ाए। चार दिन की यात्रा के पश्चात् उसके पोत एक शून्य तट पर लगे। पोतों के नायक ने समुद्रदत्त को सूचना दी कि उन्हें मौसम की अनुकूलता की प्रतीक्षा में कुछ दिन उसी तट पर रुकना होगा। इस समाचार से समुद्रदत्त ने विचार किया, कितना अच्छा हो कि मैं इस समय का उपयोग अपनी पत्नी से पुनः मिलन में करूं! वह अपने विश्वस्त मित्र को साथ लेकर एक तीव्रगामी छोटी नौका में बैठकर अपने नगर में जा पहुचा। रात्रि के तृतीय प्रहर में वह सबकी दृष्टि बचाकर अपनी पत्नी के कक्ष में जा पहुंचा। उसने पत्नी के समक्ष स्पष्ट कर दिया कि समुद्रीद्वीप पर व्यर्थ समय बिताने की ... 624 ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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