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________________ है। तुम ही मेरी पुत्री के सुयोग्य वर हो। ___ राजा ने वीरकुमार के साथ अपनी पुत्री कीर्तिमती का विवाह उत्सव पूर्वक किया। उसने वीरकुमार को दहेज में अनेक ग्रामों की जागीर दी। वीरकुमार वहां पर सुखपूर्वक रहने लगा। ___वीरकुमार बुद्धिमान और रूपवान था। उसके रूप और गुणों पर पूरा कोशलपुर मुग्ध था। उसके रूप पर कई महिलाएं भी मुग्ध बन गई थीं। पर वीरकुमार एक सदाचारी युवक था। उसने अनेक संभ्रान्त और साधारण कुल की नारियों को सदाचार के पथ पर आरूढ़ किया। वीरकुमार के इन गुणों से राजा इतना प्रभावित हुआ कि उसने वीरकुमार को ही अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। उचित अवसर पर रणधवल वीरकुमार का राजतिलक करके प्रव्रजित हो गया। उधर महाराज रिपुमर्दन ने भी वीरकुमार को आमंत्रित कर श्रीनिलय नगर का साम्राज्य प्रदान कर दीक्षा धारण कर ली। सुदीर्घ काल तक वीरकुमार ने दो-दो साम्राज्यों का न्याय-नीति से संचालन किया। जीवन के उत्तर पक्ष में उसने भी प्रव्रज्या धारण कर मोक्षपद प्राप्त किया। __ -सुपार्श्व नाथ चरित्र / जैन कथा रत्न कोष,भाग 6 / बालावबोध (गौतम कुलक) वीरकृष्णा __ महाराज श्रेणिक की रानी और वीरकृष्ण कुमार की माता। दीक्षित होकर उसने महासर्वतोभद्र तप की आराधना की। इस तप की चार परिपाटियां और प्रत्येक परिपाटी की सात लताएं होती हैं। इस तप विधि में नौ सौ अस्सी दिन लगते हैं। (शेष परिचय-कालीवत्) -अन्तगड सूत्र, वर्ग 8, अध्ययन 6 वीर जी बोहरा सूरत नगर का रहने वाला एक जैन श्रेष्ठी। 17-वीं ई. सन का वह कोटीश्वर श्रेष्ठी था और कई देशों में उसका आयात-निर्यात का व्यवसाय था। कुछ विदेशी लेखकों के उल्लेखों को यदि प्रमाण माना जाए तो वीर जी बोहरा अपने समय का विश्व का सर्वाधिक धनी व्यक्ति था। इंग्लैण्ड, फ्रांस, पुर्तगाल और अरब देश के व्यापारी वीर जी बोहरा के कृपापात्र थे। स्थानकवासी परम्परा के संस्थापकों में प्रमुख लवजी ऋषि वीर जी वोहरा की पुत्री के पुत्र थे। पिता की मृत्यु के पश्चात् लवजी ने वीर जी वोहरा के संरक्षण में ही अध्ययन किया। वीर जी वोहरा निःसंतान थे और लवजी ही उनके उत्तराधिकारी थे। परन्तु विरक्तमना लवजी को विशाल सम्पत्ति का आकर्षण बांध न सका। उन्होंने वीरजी से आज्ञा लेकर श्रामणी दीक्षा अंगीकार की और क्रियोद्धार द्वारा विशुद्ध जिनधर्म का बिगुल बजाया। ___ महाराष्ट्र की ऋषि परम्परा और पंजाब की मुनि परम्परा के लवजी ऋषि ही आदि-पुरुष थे। (देखिए-लवजी ऋषि) वीरदमन (देखिए-श्रीपाल) वीर बंकेयरस राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष प्रथम का महासेनापति। वीर बंकेयरस एक शूरवीर योद्धा था। उसके नेतृत्व में राष्ट्रकूट साम्राज्य ने काफी उन्नति की थी और अनेक युद्धों में उसे विजय श्री प्राप्त हुई थी। ... जैन चरित्र कोश .... - 565 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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