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________________ वीर (आचार्य) श्वेताम्बर परम्परा के एक विद्वान और चमत्कारी आचार्य। वीराचार्य वाद-कला निष्णात जैन आचार्य थे। गुजरात नरेश सिद्धराज जयसिंह उनके परम भक्त थे। कहते हैं कि एक बार सिद्धराज ने विनोदपूर्वक एक वाक्य आचार्य श्री को कहा जो उन्हें चभ गया। वीराचार्य पाटण को छोड कर जाने लगे। पर सिद्धराज ने द्वारपालों को सख्त आदेश दिया कि वे आचार्य श्री को नगर से बाहर न जाने दे। ऐसी स्थिति में आचार्य वीर आकाश मार्ग से अन्यत्र विहार कर गए। इससे जयसिंह को आचार्य श्री की सिद्धि पर आश्चर्यपूर्ण प्रसन्नता हुई, पर खेद इस बात का हुआ कि आचार्य श्री उसके नगर से चले गए हैं। सिद्धराज आचार्य श्री के पास पहुंचा और उन्हें पाटण चलने की प्रार्थना की। सिद्धराज के विशेष आग्रह पर कई गांवों और नगरों में विचरण करते हुए आचार्य श्री पाटण पधारे। - वीराचार्य ने अपने जीवनकाल में कई विद्वानों से शास्त्रार्थ किया और सदैव विजयी रहे। उनका समय वी.नि. की 17वीं सदी है। -प्रभावक चरित्र वीरक ___ एक माली। (देखिए-हरिराजा) वीरकुमार श्रीनिलय नगर के राजा रिपुमर्दन का पुत्र । वह गुणों का निधान था, पर उसमें एक दुर्गुण भी था। वह था आखेट-प्रियता। एक बार वह अपने मित्रों के साथ शिकार के लिए वन में गया। बहुत घूमने के बाद भी उसे कोई पशु दिखाई नहीं दिया। वह और आगे बढ़ा, उसने देखा, एक स्थान पर सैकड़ों पशु-पक्षी एकत्रित हैं। उनके मध्य एक मुनि विराजित हैं जो उपदेश दे रहे हैं। यह देखकर राजकुमार चकित रह गया कि शशक और सिंह, मृग और चीते आदि जन्मजात वैरी पशु भी मुनि के प्रभाव से वैरभाव विस्मृत कर एक साथ बैठे हुए हैं। वीरकुमार भी मुनि का उपदेश सुनने को उत्सुक हुआ। वह भी श्रोताओं में बैठ गया और उपदेश सुनने लगा। मुनि ने अहिंसा, सत्य और सदाचार का उपदेश दिया, जिसे सुनकर वीरकुमार ने अहिंसा, सत्य और सदाचार के नियम धारण कर लिए। वह पूर्ण निष्ठाभाव से उक्त व्रतों का पालन करने लगा। ___महाराज रिपुमर्दन के वीरकुमार के अतिरिक्त भी कई पुत्र थे। महाराज जानते थे कि वीरकुमार ही उनके शासन का सुयोग्य अधिकारी है, पर वे यह भी जानते थे कि वीरकुमार को राजपद देने से उसके पुत्रों में सत्ता संघर्ष उजागर हो सकता है। इस विचार से उन्होंने वीरकुमार को भाग्य परीक्षण के लिए प्रदेश भेजने का संकल्प कर लिया। कृत्रिम रोष प्रदर्शित करते हुए उन्होंने अकारण ही वीरकुमार को राज्य से चले जाने को कह दिया। वीरकुमार परम पितृभक्त था। वह पिता के प्रत्येक आदेश में अपना हित देखता था। पिता को प्रणाम कर वह श्रीनिलय नगर का त्याग कर चल दिया। वह कई दिनों की यात्रा के बाद कोशलपुर नगर पहुंचा। वहां उसने एक दृश्य देखा, पट्टहस्ति के पीछे-पीछे राजा सहित अनेक गण्यमान्य लोग चल रहे हैं। पट्टहस्ति की सूण्ड में पुष्पमाला है और उसकी पीठ पर राजकुमारी आरूढ़ है। उस दृश्य को देखकर वीरकुमार जब तक किसी चिन्तन-निष्कर्ष पर पहुंच पाता, पट्टहस्ति उसके निकट पहुंच गया और उसने उसके गले में पुष्पमाला डाल दी। राजकुमारी हस्ति की पीठ से उतरी और उसने भी वीरकुमार के कण्ठ में जयमाला डाल दी। वीरकुमार के आश्चर्य का निराकरण कोशलपुर नरेश ने किया। उसने कहा, वीरवर! मैं कोशलपुर नरेश रणधवल हूँ। मैंने कुलदेवी की प्रेरणा से अपनी पुत्री के लिए सुयोग्य वर के चयन के लिए यह उपक्रम किया ...564 . - जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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