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________________ राजा अमोघवर्ष स्वयं भी जैन धर्म के प्रति समर्पित था। वीर बंकेयरस का जन्म जैन कुल में हुआ था। जिनमंदिरों के निर्माण, स्थापना और उनके सुचारू संचालन के लिए बंकेयरस ने स्थायी व्यवस्थाएं की थीं। रणशूर और धर्मशूर-ये दोनों महान गुण बंकेयरस के जीवन के भूषण थे। वीर बंकेयरस ईसा की नौवीं सदी में हुआ। वीरभान (उदयभान) कनकपुर के राजा वीरधवल का पुत्र, धर्मप्राण और रूप-गुण सम्पन्न राजकुमार । उसका एक बड़ा भाई था जिसका नाम उदयभान था। दोनों भ्राताओं में राम-लक्ष्मण सा अनुराग था। दोनों राजकुमार मन्त्री के अधिकार में रहकर शिक्षा ग्रहण करने लगे। राजकुमारों की जननी का देहान्त पहले ही हो चुका था। अंतरंग मित्रों के दबाव में आकर राजा ने श्रीरानी नामक एक राजकुमारी से विवाह कर लिया। यही रानी वीरभान-उदयभान के लिए अपशकुन सिद्ध हुई। रानी ने दोनों कुमारों से प्रणय-प्रार्थना की जिसके ठुकरा दिए जाने पर उसने कुमारों पर बलात्कार का आरोप मढ़कर राजा से उनके लिए मृत्युदण्ड का आदेश दिलवा दिया। मंत्री की कुशलता से कुमारों के प्राण तो बच गए पर उन्हें देश छोड़कर भाग जाना पड़ा। पुत्रों को प्राणदण्ड देने से राजा आत्मग्लानि से भर गया और शीघ्र ही उसे ज्ञात हो गया कि दुश्चरित्रा रानी ने उसके पुत्रों पर झूठा आरोप लगा कर उन्हें मृत्युदण्ड दिलवाया है। राजा ने रानी को कारागृह में डाल दिया। कुछ ही दिनों में श्रीरानी का देहान्त हो गया। वीरधवल पुत्र-शोक से संतप्त बना रहता था। एक दिन एक नैमित्तिक ने राजा को सन्तुष्ट किया कि उसके पुत्र जीवित हैं। राजा ने मंत्री से पूछा तो उसने भी नैमित्तिक के कथन की पुष्टि की और स्वयं द्वारा राजाज्ञा के उल्लंघन के लिए दण्ड की याचना की। राजा ने मंत्री को कण्ठ से लगा कर कहा कि उसने राजाज्ञा का उल्लंघन करके उस पर जो उपकार किया है उसका बदला वह शत-शत जन्मों में भी नहीं चुका सकता है। वीरभान-उदयभान कई दिनों तक जंगल में भटकते रहे। एक रात्रि में जब उदयभान सो रहा था और वीरभान जाग कर पहरा दे रहा था तो श्री रानी जो मरकर सर्पिणी बनी थी पूर्वजन्म के वैर वश वहां आ गई और उदयभान को डसने को उद्यत हुई। वीरभान सावधान था, उसने दण्ड प्रहार से सर्पिणी को मार दिया। इससे सर्पिणी के शरीर से छितर कर कुछ रक्तकण वीरभान के शरीर पर गिरे । विष के प्रभाव से वीरभान अचेत हो गया। ___प्रातः काल भाई को अचेत देखकर तथा निकट ही पड़े सर्पिणी के शव को देखकर उदयभान शोकसागर में डूब गया। भाई को कन्धे पर उठाकर वह एक दिशा में बढ़ा। एक सुरक्षित स्थान देखकर उसने वीरभान को वहां लिटा दिया और किसी चिकित्सक को खोजने एक दिशा में बढ़ा। वह उज्जयिनी नगरी में पहुंचा और पुण्ययोग ने उसे वहां का राजा बना दिया। कर्मदशा वश उदयभान की स्मृति से यह बात उतर गई कि उसका भाई जंगल में अचेत पड़ा है। उधर जंगल से एक मांत्रिक गुजरा जिसने वीरभान को स्वस्थ बना दिया। वीरभान उज्जयिनी नगरी पहुंचा और यह जानकर हर्षित हुआ कि उसका अग्रज राजा बन गया है। उसने भाई के पास जाने के स्थान पर स्वतंत्र विचरण कर भाग्य परीक्षण का संकल्प किया। उसने उज्जयिनी नगरी को यक्ष के कोप से मुक्त बनाया। वह सागरदत्त नामक सेठ से मैत्री सम्बन्ध स्थापित करके उसके साथ रहने लगा। एक बार केसर सेठ नामक एक धनी व्यापारी विदेश व्यापार के लिए जाने लगा तो वीरभान भी उसके साथ हो लिया। कांतिपुर नगर के तट पर सेठ के जहाज लगे। वहां व्यापारादि से सेठ को प्रभूत ...566 . जैन चरित्र कोश..
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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