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________________ पद देना होगा, उन्हें शिकार का त्याग करना होगा और मद्य-मांस के आहार का परित्याग लेना होगा। राजा ने प्रसन्नता से रूपली की शर्ते मान ली और उससे विवाह करके उसे पटरानी का पद दे दिया। रूपली किसान के घर में जन्म लेकर भी महारानी के सिंहासन तक पहुंच गई पर उसने अहंकार को अपने हृदय में प्रवेश नहीं लेने दिया। गाय चराते हुए वह जिन मैले-कुचैले वस्त्रों को धारण करती थी उन्हें अपने साथ लेकर आई थी। प्रतिदिन उन वस्त्रों को धारण करके वह महामंत्र नवकार का जाप करती थी। उसने दासियों की सेवा कभी स्वीकार नहीं की। अपने कार्य वह अपने ही हाथों से करती थी। राजा की अन्य रानियां रूपली के भाग्य से ईर्ष्या करती थीं। उन्होंने राजा के कान भरे कि रूपली जादू-टोना करती है। राजा ने रूपली की परीक्षा ली और संतुष्ट हो गया कि रानियों ने वैसा ईर्ष्यावश कहा है। पर राजा को यह पसन्द नहीं था कि रूपली अपना पुराना वेश धारण करे। यही बात राजा के क्रोध का कारण बनी और उसने रूपली को जंगल में भिजवा दिया। रूपली ने इसे साधना का सुअवसर माना और वह जंगल में रहकर साधना करने लगी। छह मास पश्चात् राजा उसे लेने गया तो उसकी वीतराग साधना को देखकर न केवल चमत्कृत बन गया बल्कि विरक्त भी बन गया। अंततः रूपली के साथ ही राजा भी प्रव्रजित हो गया। निरतिचार चारित्र की आराधना करके रूपली और राजा देवलोक के अधिकारी बने। अनुक्रम से दोनों सिद्धत्व प्राप्त करेंगे। (क) रूपवती (आर्या) आर्या रूपवती की पूरी कथा कमला आर्या की कथा के समान है। (दखिए-कमला आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 5 (ख) रूपवती (आर्या) रूपवती आर्या का समग्र जीवन परिचय रूपा आर्या के समान जानना चाहिए। (देखिए-रूपा आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 4, अध्ययन 4 रूपसुंदरी (देखिए-श्रीपाल) रूपसेन पृथ्वीभूषण नगर के श्रेष्ठी का सर्वांगपूर्ण सुन्दर पुत्र । (दखिए-सुनन्दा) रूपांशा (आर्या) रूपांशा आर्या की सम्पूर्ण कथा रूपा आर्या की कथा के समान ही है। (देखिए-रूपा आया) ___ -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., चतुर्थ वर्ग, अध्ययन 3 रूपा (आर्या) श्री ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र के अनुसार रूपा आर्या का जन्म चम्पा नगरी में हुआ। उसके पिता का नाम रूपक गाथापति और माता का नाम रूपकश्री था। पुरुषादानीय प्रभु पार्श्वनाथ एक बार अपने मुनिसंघ के साथ चम्पानगरी के बाह्य भाग में स्थित पूर्णभद्र नामक चैत्य में पधारे। प्रभु का उपदेश सुनने के लिए विशाल परिषद उपस्थित हुई। कुमारी रूपा भी वहां उपस्थित हुई। प्रभु का उपदेश सुनकर उसे संसार असार प्रतीत होने लगा। माता-पिता की अनुज्ञा प्राप्त कर वह प्रव्रजित हो गई। आर्या पुष्पचूला के निर्देशन में रूपा आर्या ... 498 - ... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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