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________________ अनायास ही कई ऋद्धियां और सिद्धियां प्राप्त हो गई थीं। 'प्रभावक चरित्र' के उल्लेखानुसार जया और विजया नामक दो देवियां सदैव उनकी सेवा में उपस्थित रहती थीं। एक बार तक्षशिला नगर में जैन संघ में महामारी का प्रकोप फैल गया। श्रीसंघ आचार्य मानदेव की शरण में पहुंचा। आचार्य मानदेव ने श्रीसंघ को 'श्री शान्तिस्तव' नामक मंत्र प्रदान किया और उसके जाप की प्रेरणा दी। श्रीसंघ में मंत्र जाप किया गया, जिसके प्रभाव से महामारी शान्त हो गई। ____ 'चउवन महापुरुष चरिय' नामक प्रतिष्ठित ग्रन्थ के रचयिता आचार्य शीलांक आचार्य मानदेव के तेजस्वी शिष्य थे। मानमर्दन श्रीपुर नगर का एक प्रतापी राजा। (देखिए-महाबल कुलपुत्र) मानवती एक बुद्धिमती श्रेष्ठि कन्या। उसे अपने रूप-गुण और बुद्धि पर अटल विश्वास था। वह अपने लिए कुछ भी असंभव नहीं मानती थी। वह उज्जयिनी के धनकुबेर धनमित्र की इकलौती संतान थी। रूप और गुणों में वह अद्वितीय थी। एक बार वह अपनी सखियों के साथ उद्यान में खेल रही थी। विश्रान्ति के लिए सभी सखियां एक वृक्ष के नीचे बैठ गईं। परस्पर वार्तालाप करने लगीं। वार्तालाप का विषय था- बुद्धि चातुर्य में पुरुष आगे है या स्त्री। सभी सखियों ने अपने-अपने वक्तव्य दिए और अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए। मानवती की बारी आई तो उसने नारी का पक्ष लिया और स्खष्ट किया कि नारी की बुद्धिमत्ता के समक्ष पुरुष की बुद्धि सामान्य होती है। सखियों की वार्ता आगे बढ़ते-बढ़ते एक ऐसे बिन्दु पर पहुंच गई जहां मानवती ने यहां तक कह दिया कि अगर वह चाहे तो महाराज मानतुंग को भी अपना दास बना सकती है, इतना ही नहीं वह उन्हें अपना चरणोदक भी पिला सकती है, उनके हाथों पर कदम रख कर चल सकती है और उन्हें घोड़ा बनाकर उनकी पीठ पर सवार भी हो सकती है। इधर सखियों का यह वार्तालाप चल रहा था, उधर महाराज मानतुंग झाड़ी के पीछे खड़े इस वार्तालाप को सुन रहे थे। मानवती के वचन मानतुंग के हृदय में गहरे तक छिद गए। उन्होंने मानवती के मान को चूर-चूर कर देने का निश्चय कर लिया। शीघ्र ही राजा ने एक पूरी योजना अपने मस्तिष्क में बना ली। आने वाले कुछ ही दिनों में उन्होंने उस योजना को क्रियान्वित भी कर दिया। राजा ने मानवती से विवाह करके उसे एक स्तंभ वाले महल में बन्दिनी बना दिया। मानवती ने राजा से अपना अपराध पूछा तो राजा ने उद्यान-वार्ता की बात स्पष्ट करते हुए कहा, तुम्हें अपने बुद्धि-कौशल पर बहुत मान है। देखता हूं कि तू कैसे मानतुंग को अपना दास बनाती है। जब तक तू अपने कहे एक-एक वाक्य को पूरा नहीं करेगी तब तक इसी एक स्तंभ वाले महल में रहेगी। मानवती समझ गई कि राजा ने छिपकर सखियों के साथ हुई उसकी वार्ता को सुन लिया है। उसने अनुनय-विनय पूर्वक राजा से क्षमा मांगी, उस वार्ता को सखी-सुलभ वार्ता मानकर भुला देने की प्रार्थना की, पर राजा अपने नाम के अनुरूप मान का अनंग शिखर ही था। उसने मानवती की एक बात न सुनी। आखिर मानवती ने राजा की चुनौती स्वीकार कर ली। ___मानवती ने द्वारपाल के हाथ अपने पिता को एक पत्र दिया। पुत्री के पत्र के अनुसार धनमित्र ने अपने घर से एक स्तंभ महल तक सुरंग बनवा दी। मानवती सुरंग से अपने पिता के घर आने-जाने लगी। उसने एक जोगन का वेश बनाकर पूरे नगर पर अपनी छाप जमा दी। राजा भी युवा-योगिनी का भक्त बन गया। ... जैन चरित्र कोश... -443 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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