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________________ नगर में ठहरने के लिए आपको स्थान नहीं मिला। आप अपनी शिष्य मण्डली के साथ तालाब के किनारे छतरियों में ठहर गए। वहीं पर आप निराहार रहते हुए शिष्यों को आगम वाचनाएं देते थे। निरन्तर आठ दिनों तक यह क्रम चला। आपकी शान्त तपस्या और आगम आराधना से लोग अत्यन्त प्रभावित हुए। आपको भिक्षा के लिए प्रार्थना की। आपने कहा, जो गृहस्थ सविधि सामायिक और सन्तदर्शन का नियम लेगा उसी के घर से हम भिक्षा लेंगे। ___कई लोगों ने नियम लिए। आपने पारणा किया। शनैः-शनैः नगर में शुद्ध धर्म का प्रभाव फैला और अनेक लोग श्रावक धर्म में दीक्षित हुए। मल्लदिन्न मिथिलाधिपति महाराज कुंभ का पुत्र और भगवती मल्ली का सहोदर । मल्लदिन्न एक कलाप्रेमी राजकुमार था। (देखिए मल्लिनाथ तीर्थंकर) मल्लवादी (आचार्य) जैन श्वेताम्बर परम्परा के एक विद्वान और वादी आचार्य। आचार्य मल्लवादी का जन्म वल्लभी नगरी में हुआ। उनकी माता का नाम दुर्लभ देवी था जो कि वल्लभी नरेश शिलादित्य की बहन थी। मल्लवादी के दो ज्येष्ठ भ्राता थे-अजितयश और यक्ष। जिनानंदसूरि मल्लवादी के मामा थे। अपने युग के वे प्रसिद्ध सूरि और वादकुशल आचार्य थे। एक बार बौद्ध विद्वान बुद्धानंद से भरूंच नगर में उन्होंने शास्त्रार्थ किया जिसमें उन्हें पराजय मिली। परिणामतः भरूंच से विहार कर वे वल्लभी पधारे। वहां पर उनके धर्मोपदेश से मल्ल सहित उनके भ्राता और माता प्रतिबोधित होकर दीक्षित हुए। मल्ल अध्ययनरुचि सम्पन्न बाल मुनि थे। उन्होंने एकाग्रचित्त से जैन तत्वविद्या का तलस्पर्शी अध्ययन किया। कहते हैं कि उनके गुरु के पास 'नयचक्र' नामक एक ग्रन्थ था। गुरु ने सभी शिष्यों को विशेष रूप से निर्देश दिया था कि बिना मेरी आज्ञा के उसे कोई न पढ़े। गुरु एक बार जब तीर्थयात्रा पर गए तो मल्ल मुनि ने उत्सुकता वश उस ग्रन्थ को पढ़ना शुरू कर दिया। पर प्रथम श्लोक पढ़ते ही शासन देवी प्रगट हुई और मल्ल मुनि के हाथ से ग्रन्थ लेकर अदृश्य हो गई। इस घटना से मल्ल मुनि बहुत खिन्न हुए। वे उपाश्रय का त्याग करके गिरि कन्दराओं में चले गए। वहां उन्होंने उग्र तपश्चरण किया। उनके तपः प्रभाव से शासन देवी प्रगट हुई। शासन देवी ने मुनि से इच्छित वर मांगने के लिए कहा। मुनि मल्ल ने 'नयचक्र' ग्रंथ लौटाने के लिए देवी से कहा। देवी ने कहा, ग्रन्थ को लौटाना संभव नहीं है। परन्तु आपने उक्त ग्रन्थ का जो प्रथम श्लोक पढ़ा था, उसके आधार पर आप उक्त ग्रन्थ की रचना करने में समर्थ होंगे। कहकर शासन देवी अन्तर्धान हो गई। ___मल्ल मुनि ने शासन देवी के वरदान स्वरूप नयचक्र ग्रन्थ के पठित श्लोक के आधार पर उक्त नाम वाले ग्रन्थ की रचना की। उस ग्रन्थ की पूर्णता दश सहस्र श्लोकों में हुई। वर्तमान में वह ग्रन्थ 'द्वादशार नयचक्र' नाम से जाना जाता है। संघ में उस ग्रन्थ की भारी मान्यता हुई और मल्ल मुनि का सम्मान भी बहुत बढ़ गया। तीर्थयात्रा पूर्ण कर जिनानंदसूरि वल्लभी लौटे और उन्होंने मल्ल मुनि को आचार्य पद प्रदान किया। मल्ल मुनि अपने गुरु की बुद्धानन्द से पराजय की बात स्थविरों से जान चुके थे। गुर्वाज्ञा प्राप्त कर मल्लमुनि भरूंच पहुंचे और उन्होंने बुद्धानन्द को शास्त्रार्थ हेतु आमंत्रित किया। वह शास्त्रार्थ छह मास तक चला - जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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