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________________ जिसमें मल्ल मुनि की विजय हुई। इससे वहां के राजा ने मल्ल मुनि को वादी का पद दिया और वे मल्लवादी नाम से सुख्यात हुए। __ आचार्य मल्लवादी ने काफी साहित्य की रचना की। द्वादशार नयचक्र, श्री पद्मचरित्र, सन्मति तर्क टीका आदि उनके विख्यात ग्रन्थ हैं। वर्तमान में ये ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं। ___आचार्य मल्लवादी के समय के सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। विभिन्न विद्वानों की दृष्टि से वे वी.नि. की नौवीं, दशवीं अथवा ग्यारहवीं शती के आचार्य हैं। -प्रभावक चरित्र मल्लिषेण (आचार्य) वी.नि. की 19वीं सदी के पूर्वार्द्ध के एक विद्वद्वरेण्य जैन आचार्य । आचार्य मल्लिषेण 'स्याद्वाद-मंजरी टीका' नामक उत्कृष्ट ग्रन्थ के रचयिता थे। यह उनकी एक ख्यातिलब्ध कृति है। आचार्य मल्लिषेण नागेन्द्र गच्छीय उदयप्रभ सूरि के सुयोग्य शिष्य थे। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं पर उनका असाधारण अधिकार था। व्याकरण, न्याय, साहित्य आदि विभिन्न विषयों के वे गंभीर विद्वान थे। स्याद्वाद मंजरी का लेखन उन्होंने वी.नि. 1819 में संपन्न किया था। उनके सत्ताकाल को जानने का यह एक पुष्ट प्रमाण है। मल्लिनाथ (तीर्थंकर) ___अवसर्पिणी काल के उन्नीसवें तीर्थंकर । वह एक राजकुमारी थीं। आश्चर्यजनक घटनाओं में यह भी एक आश्चर्यजनक घटना है कि एक स्त्री तीर्थंकर हुई। मल्लि के चरित्र के समक्ष पक्षों से परिचित बनने के लिए इनके पूर्व जन्म को जानना आवश्यक है। अपने पूर्वजन्म में मल्ली का जीव जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र की नगरी वीतशोका के राजा महाबल के रूप में था। महाबल एक धर्मनिष्ठ और न्यायशील राजा था। उसके छह मित्र थे। यह मैत्री बाल्यकाल से चली आई थी। सातों मित्रों ने बचपन में ही यह निर्णय किया था कि वे जो भी कार्य करेंगे एक समान करेंगे। यहां तक कि, संयम भी लेंगे तो साथ ही लेंगे। किसी समय आचार्य धर्मघोष का उपदेश सुनकर जब महाबल वैराग्यशील बन गया तो उसने अपने संयम लेने के भाव अपने छहों मित्रों से कहे। छहों मित्र भी दीक्षा लेने को तैयार हो गए। इस प्रकार सातों मित्र दीक्षित हो गए। बाल्यावस्था के संकल्प के अनुसार सातों ही एक समान जप और तप की आराधना करने लगे। पर महाबल ने अपने मित्रों पर अपने को कुछ अधिक रखने के लिए कपट पूर्वक विशेष तप करना शुरू कर दिया। उसने यह विशेष तप इस कुशलता से किया कि उसके मित्र उसकी मानसिकता को समझ न सके। यहां से आयुष्य पूर्ण कर सभी मित्र अनत्तर विमान में देव बने और वहां से च्यव कर भारत वर्ष के विभिन्न राजकुलों में पैदा हुए। विशेष तप और चारित्र की आराधना से महाबल ने जहां तीर्थंकर गोत्र का बन्ध किया वहीं माया सेवन के कारण उसने स्त्रीयोनी का भी बन्ध किया। वह मिथिला नरेश महाराज कुंभ की पुत्री के रूप में जन्मा जहां उसे मल्लीकुमारी नाम दिया गया। मल्ली जब युवा हुई तो उसके रूप गुणों की ख्याति देश-देशान्तरों में फैल गई। पूर्वजन्म के छह मित्र विभिन्न राजकुलों में राजपुत्रों के रूप में जन्मे थे। क्रमशः वे छहों राजा बने। उनमें से एक साकेत नगर का राजा प्रतिबुद्धि था, दूसरा चम्पानरेश चन्द्रच्छाया था, तीसरा श्रावस्ती नरेश रूपीराज था, चतुर्थ वाराणसी नरेश शंख था, पंचम हस्तिनापुर नरेश अदीनशत्रु था तथा छठा कांपिल्यपुर ... जैन चरित्र कोश ... - 423 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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