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________________ नाम दिया गया। यही पार्श्वकुमार प्रवहमान अवसर्पिणी के तेईसवें तीर्थंकर लोकमान्य प्रभु पार्श्वनाथ बने। उधर कुरंगक (कमठ) का जीव नरक से निकलकर एक छोटे से गांव में एक अति निर्धन ब्राह्मण के घर पुत्र रूप में जन्मा। उसके जन्म लेते ही उसके माता-पिता का निधन हो गया। जैसे-तैसे कमठ बड़ा हुआ और तापसवृत्ति की ओर आकृष्ट हुआ। तापस बनकर वह पंचाग्नि तप तपने लगा। ___भविष्य में पार्श्वकुमार और कमठ का पुनः साक्षात्कार हुआ। (देखिए-पार्श्वनाथ तीर्थंकर) मलयगिरि (आचार्य) , जैन परम्परा के प्रतिभाशाली जैन आचार्य। उन्होंने कई आगमों और आगमेतर ग्रन्थों पर बृहद् टीकाएं लिखकर आगम अध्येता मुमुक्षुओं पर महान उपकार किया। उनके कई टीका ग्रन्थ वर्तमान में भी उपलब्ध आचार्य मलयगिरि के जीवन और समय सम्बन्धी सामग्री अनुपलब्ध है। 'कुमार पाल प्रबन्ध' नामक ग्रन्थ में आचार्य हेमचन्द्र और आचार्य मलयगिरि को समकालीन सिद्ध करने वाली एक घटना का उल्लेख उपलब्ध होता है। आचार्य हेमचन्द्र ने गच्छांतरीय देवेन्द्रगणी और मलयगिरि के साथ रेवतक तीर्थ पर सिद्धिचक्र मंत्र की आराधना की थी। आराधना से आकर्षित होकर विमलेश्वर नामक देव प्रगट हुआ और उसने इच्छित वर मांगने के लिए कहा। तब मलयगिरि ने देव से वर रूप में अपने लिए आगमों का टीकाकार होने का वर मांगा था। यह उल्लेख आचार्य मलयगिरि को आचार्य हेमचन्द्र का समकालीन और वी.नी0 की 17वीं शताब्दी के आचार्य के रूप में प्रमाणित करता है। 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' के अनुसार आचार्य मलयगिरि ने 25 आगमों और आगमेतर ग्रन्थों पर टीकाएं लिखीं। 'शब्दानुशासन' नामक एक स्वतन्त्र ग्रन्थ की भी उन्होंने रचना की थी। वर्तमान में आचार्य मलयगिरि के टीकाकृत लगभग 20 ग्रन्थ उपलब्ध हैं जिनका पद्य परिमाण एक लाख नब्बे हजार से अधिक है। जैन जगत में वे टीकाकार के रूप में चर्चित और अर्चित आचार्य हैं। मलयागिरि कुसुमपुर के राजा चन्दन की पतिपरायणा पत्नी। एक सुविख्यात नारी चरित्र। (देखिए-चन्दन) मलयासुन्दरी श्रावस्ती अथवा सावत्थी नगरी के महाराज कनककेतु की महारानी और खंधक की माता। (देखिएखंधक मुनि) मलूकचन्द्र जी महाराज (आचार्य) स्थानकवासी पंजाब परम्परा के एक तपस्वी आचार्य। आचार्य लवजी ऋषि के उत्तराधिकारी श्री सोमजी ऋषि हुए। उनके उत्तराधिकारी श्री हरिदास जी, तथा उनके बाद उनके शिष्य वृन्दावन लाल जी आचार्य बने। उनके बाद श्री भवानीदास जी आचार्य पाट पर विराजित हुए। तदनन्तर श्री मलूकचन्द्र जी म. आचार्य बने। आप आगमों के गंभीर ज्ञाता, उत्कृष्ट आचार के आराधक और तपस्वी आचार्य थे। सं. 1815 में आप सुनाम (पंजाब) पधारे। उस समय वहां यतियों का बाहुल्य और प्रभाव था। फलतः ... जैन चरित्र कोश - --421 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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