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________________ दक्षिण भारत में पल्लव राजवंश की स्थापना ईसा की द्वितीय सदी में हुई। पल्लव वंशीय नरेशों ने कई सौ वर्षों तक शासन किया। पल्लव वंश के अंतिम नरेशों में नन्दिवर्मन का नाम प्रमुख है, जिनका शासन काल ई. सन् 844 से 860 तक माना जाता है। पल्लविया ___ गंग राज्य के महामंत्री चामुण्डराय की लघु सहोदरा। पल्लविया का जैन धर्म के प्रति सुदृढ़ अनुराग था। छोटी अवस्था में ही उसने वैभव को ठुकराकर श्रामणी दीक्षा ग्रहण की थी। समाधि-संलेखनापूर्वक इन्होंने पण्डित मृत्यु प्राप्त की। पवनंजय विद्याधर राजा प्रह्लाद के पुत्र, महासती अंजना के पति और रामभक्त हनुमान के जनक। (दखिएअंजना) पाण्डु हस्तिनापुर के राजा और युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के जनक। धृतराष्ट्र पाण्डु के अग्रज थे। जन्मान्ध होने से धृतराष्ट्र राजपद न पा सके और पाण्डु राजा बने। वैदिक महाभारत के अनुसार पाण्डु की अकाल मृत्यु के बाद धृतराष्ट्र ने राज्य संचालन किया। धृतराष्ट्र का राज्यमोह अत्यन्त प्रबल था, उसी कारण उसने अपने पुत्र दुर्योधन को युवराज बनाना चाहा था। भीष्म-विदुरादि का तर्क था कि वह पाण्डु के राज्य की देखरेख-भर कर रहे हैं। अतः युवराज पद का अधिकारी पाण्डु-पुत्र युधिष्ठिर ही है। तर्क-वितर्क के भंवरों में उलझा कुरु राज्य अन्ततः विभाजन का शिकार बना। पाण्डु एक नीतिवान राजा थे। जैन महाभारत के अनुसार अन्तिम वय में प्रव्रजित बन वे सुगति के अधिकारी हुए। पात्रकेशरी (आचार्य) दिगम्बर परम्परा के एक विद्वान जैन आचार्य। उनका जन्म अहिच्छत्रनगर के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अपने युग के वे विश्रुत वैदिक विद्वान थे। अहिच्छत्रनगर नरेश के वे महामात्य थे। किसी समय वे पार्श्वनाथ चैत्य में गए। वहां चारित्रभूषण मुनि के मुख से समन्तभद्र विरचित 'देवागम स्तोत्र' सुनकर उन्हें जिनधर्म के प्रति अनुराग हुआ। पद्मावती देवी ने भी उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए। पात्रकेशरी जिनधर्म में दीक्षित हो गए और उन्होंने आगमों का पारायण किया। बाद में वे आचार्य पद पर आसीन हुए। विलक्षण कदर्थन और पात्रकेशरी स्तोत्र-ये दो रचनाएं आचार्य पात्रकेशरी की मानी जाती हैं, ये दोनों उत्कृष्ट रचनाएं हैं। पात्रकेशरी ई. की छठी शताब्दी के आचार्य अनुमानित हैं। -आराधना कथाकोश पादलिप्त (आचार्य) वी.नि. की सातवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुए एक महान प्रभावशाली जैन आचार्य। आचार्य पादलिप्त श्रेष्ठ विद्वान, बहुविध विद्याओं के ज्ञाता और प्रवचन प्रभावक मुनिराज थे। उनके विराट व्यक्तित्व से सम्बन्धित अनेक विद्वानों के आलेख, उनके जीवन से जुड़ी अनेक अलौकिक कथाएं वर्तमान में भी श्रवण और साहित्य का विषय बनी हुई हैं। उनके विराट जीवन-दर्शन का संक्षिप्त इतिवृत्त निम्नरूपेण है आचार्य पादलिप्त का जन्म कौशला नगरी के एक समृद्ध श्रेष्ठी के घर हुआ था। उनके पिता का नाम ...330 - ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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