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________________ (झ) पद्मावती (धरणेंद्र) (देखिए - धरणेंद्र) पद्मोत्तर (देखिए -महापद्म चक्रवर्ती ) परशुराम वैदिक महाभारत और पुराणों के अनुसार विष्णु के छठे अवतार । रामायण में भी परशुराम का उल्लेख हुआ है और शिवधनुष तोड़ने पर वह श्री राम पर क्रुद्ध हुआ। जैन पौराणिक साहित्य और त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र के अनुसार परशुराम जमदग्नि ऋषि का पुत्र था । पुत्र के बिना गति नहीं होती, इस सिद्धान्त के अनुसार जमदग्नि ने वृद्धावस्था में नेमिकोष्टक नगर के राजा जितशत्रु की पुत्री रेणुका से विवाह रचाया । ऋषि जितशत्रु के पास पहुंचा और उसने उसकी अनेक पुत्रियों में से किसी एक पुत्री की याचना की। राजा ऋषि का प्रस्ताव स्वीकृत न था, पर ऋषिश्राप के भय से उसने कहा कि मेरी जो भी पुत्री आपको चाहे, आप उसे ले जा सकते हैं। वृद्ध और कुरूप ऋषि को किसी भी राजकुमारी ने पसन्द न किया । इससे क्रोध हो ऋषि ने निन्यानवे राजकुमारियों को कुब्जा बना दिया। तब ऋषि ने एक अल्पायुष्क राजकुमारी रेणुका को केलों का प्रलोभन दे अपने साथ चलने को राजी कर लिया । जितशत्रु की आर्त्त प्रार्थना पर ऋषि ने निन्यानवे कन्याओं को कुब्जत्व से मुक्त कर दिया । रेणुका का पालन-पोषण कर ऋषि ने उसके युवती हो जाने पर उससे विवाह रचाया। उसी से परशुराम का जन्म हुआ, जो ब्राह्मण और क्षत्राणी का रक्त होने से ब्रह्म के तेज और क्षत्रिय के बल से पूर्ण था। रेणुका ने अपनी बहन के पति हस्तिनापुर नरेश अनन्तवीर्य से अनुचित सम्बन्ध स्थापित कर एक पुत्र को जन्म दिया। इससे परशुराम विचिकित्सा और क्रोध से भर गया । उसने अपनी माता और उसके पुत्र का वध कर दिया। अनन्तवीर्य ने जमदग्नि का आश्रम तुड़वा दिया। उसके बदले में परशुराम ने अनन्तवीर्य का वध कर दिया । एक विद्याधर की सेवा कर परशुराम ने उससे परशु प्राप्त किया, जिसका वार अमोघ था। परशु के बल पर उसने क्षत्रियों का संहार शुरू कर दिया और कहते हैं कि उसने सात बार पृथ्वी को क्षत्रियविहीन बना दिया था। आखिर अनन्तवीर्य के पौत्र सुभूम चक्रवर्ती ने परशुराम का वध कर अपने पिता, पितामह और क्षत्रियों की हत्या का प्रतिशोध लिया । - त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित्र - 6/4 1 पर्वत क्षीरकदम्बक आचार्य का पुत्र और शिष्य, जो शास्त्रपदों की गलत व्याख्याएं करके अपने अहंकार और असत्य का संपोषण करता था। (देखिए वसुराजा) पल्लव नरेश ईसा की द्वितीय सदी में तमिलनाडु प्रान्त में पल्लव - राजवंश की स्थापना हुई। इस वंश का संस्थापक कीलिकवर्मन चोल का एक पुत्र था । कीलिकवर्मन के एक पुत्र शांतिवर्म ने जैन धर्म की दिगम्बर परम्परा में दीक्षा भी ली थी। शांतिवर्म आचार्य समन्तभद्र नाम से जैन जगत में विख्यात हुए। इस वंश में सिंहवर्मन, सिंहविष्णु, महेन्द्रवर्मन आदि कई नरेश हुए, जिन्होंने जैन धर्म को अपने राज्य में पूर्ण प्रश्रय दिया। आचार्य समन्तभद्र और आचार्य सर्वनन्दि का इन राजाओं पर विशेष प्रभाव रहा। ••• जैन चरित्र कोश - *** 329
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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