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________________ पर दोषारोपण करते हुए तुम्हें तनिक भी लज्जा नहीं लगती! महावीर की श्रमणियों के चारित्र तो दुग्ध-धवल और उत्कृष्ट हैं। अपने पाप को छिपाने के लिए अन्य पर दोषारोपण किया तो तुम्हें कठोर दण्ड दिया जाएगा! देव श्रेणिक की सुदृढ़ श्रद्धा देखकर गद्गद हो गया। वह अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुआ। उसने इन्द्र द्वारा की गई उनकी प्रशंसा और उस द्वारा ली गई परीक्षा की पूरी बात कहते हुए राजा की स्तुति की और बिना मांगे ही उन्हें एक कुण्डलों का जोड़ा तथा एक अठारहसरा हार प्रदान किया और अपने स्थान पर चला गया। श्रेणिक ने कुण्डल-युगल महारानी नंदा को दिए और अठारहसरा हार चेलना रानी के अंगजात हल्ल और विहल्ल कुमार को दिया। साथ ही उन कुमारों को सिंचानक नामक हाथी भी प्रदान किया। कालान्तर में कोणिक ने कालकुमार आदि दस सौतेले भाइयों को अपने साथ मिला कर अपने पिता महाराज श्रेणिक को बन्दी बना लिया और राज्य के ग्यारह भाग कर परस्पर बांट लिया। अंततः कोणिक ही अपने पिता की मृत्यु का कारण भी बना। हल्ल-विहल्ल कुमारों को राज्य नहीं मिला। इस पर भी वे पिता-प्रदत्त हार और हाथी के साथ ही संतुष्ट थे। हाथी की पीठ पर अपनी रानियों के साथ बैठकर वे निकलते तो उनकी शोभा दर्शनीय होती थी। लोग परस्पर चर्चा करते थे कि राजा भले ही कोणिक है पर राजलक्ष्मी का वास्तविक उपभोग तो हल्ल-विहल्ल कुमार ही कर रहे हैं। हल्ल और विहल्ल कुमार की यह जीवन-शैली पद्मावती के लिए ईर्ष्या का कारण बन गई। उसने कोणिक से कहा कि उसे अठारहसरा हार और सिंचानक हाथी चाहिए। कोणिक ने अपनी रानी को समझाया कि ये दोनों वस्तुएं उसके भाइयों को उसके पिता ने दी हैं और उन पर उन्हीं का अधिकार है, इसलिए वे वस्तुएं उसे नहीं मिल सकतीं। पद्मावती ने त्रियाहठ अपनाते हुए कहा, तुम कैसे राजा हो जो अपने राज्य की ही वस्तुओं पर तुम्हारा अधिकार नहीं है। मुझे हार और हाथी चाहिए। जैसे भी हो, तुम्हें ये वस्तुएं मुझे देनी ही होंगी! कोणिक त्रियाहठ के समक्ष झुक गया और उसने पद्मावती को वचन दिया कि वह हार और हाथी उसे देगा। कोणिक ने हल्ल और विहल्ल को अपने पास बुलाया और हार व हाथी देने के लिए कहा। हल्ल-विहल्ल ने हार और हाथी को पिता-प्रदत्त वस्तुएं कहकर कोणिक को देने से इन्कार कर दिया। कोणिक ने हठ पकड़ी तो दोनों भाइयों ने हार और हाथी के बदले में राज्य का हिस्सा मांगा। इसके लिए भी कोणिक तैयार नहीं हुआ। उसने राजा होने के दंभ में आकर आदेश सुना दिया कि दूसरे दिन प्रातः ही हार और हाथी उसे सौंप दिए जाएं। हल्ल-विहल्ल के लिए यह कठिन समय था। वे अपनी रानियों के साथ हाथी पर सवार होकर रात्रि में ही चम्पा नगरी से निकलकर अपने नाना चेटक के पास वैशाली भाग गए। वस्तस्थिति से परिचित बनकर महाराज चेटक ने दोहित्रों को अपनी शरण दी और निश्चिन्त भाव से अपने पास रहने को कहा। ___आखिर हार और हाथी के लिए चेटक-कोणिक संग्राम हुआ। अनेक दिनों तक महासंग्राम चला, जिसमें असंख्य लोग मारे गए। कूलबालुक के सहयोग से कोणिक विजयी हुआ। इस पूरे युद्ध के मूल में पद्मावती की ही वह हठ प्रमुख थी जिसमें उसने कोणिक से हार और हाथी देने के लिए कहा था। (देखिए-कूलबालुककोणिक) (ज) पद्मावती वसन्तपुर नगर के कोटीश्वर श्रेष्ठी पद्मसिंह की पत्नी, एक अत्यन्त बुद्धिमती, चतुर और धर्मप्राण सन्नारी। (देखिए-पद्मसिंह) ...328 ... जैन चरित्र कोश ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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