SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धनदत्त की पत्नी धनश्री अपने पति की व्रतनिष्ठा में उसके साथ थी। वह पानी पीकर सो जाती पर पति को कभी उपालंभ न देती। इसके विपरीत उसके धैर्य को संबल प्रदान करती। पर जब घर में अन्न का एक दाना नहीं बचा और दुकान चौपट हो गई तो धनदत्त ने पत्नी से कहा कि अब तो उसे विदेश जाकर सेवावृत्ति ही अपनानी होगी। पत्नी को समझा-बुझाकर धनदत्त अपने नगर के कुछ व्यापारियों के साथ चल दिया, जो परदेश में व्यापार के लिए जा रहे थे। व्यापारियों के समूह के साथ धनदत्त एक बड़े नगर में पहुंचा। व्यापारियों ने भी उसी नगर में रहकर व्यापार किया। धनदत्त किसी ऐसे व्यक्ति की खोज में निकला जो धार्मिक हो और जिसके पास वह नौकरी कर सके। उसने कई लोगों के पास नौकरी की पर उसे वैसा व्यक्ति नहीं मिला, जैसे व्यक्ति की उसे तलाश थी। यत्र-तत्र नौकरी कर वह इतना ही कमा सका, जिससे उसका उदरपोषण हो सके। व्यापारी स्वदेश लौटने लगे। पर धनदत्त के पास पत्नी को भेजने के लिए कुछ नहीं था। उसके हाथ में एक बिजौरा नामक फल था। बोला, मेरी पत्नी को यही दे देना। व्यापारी धनदत्त से बिजौरा लेकर अपने नगर के लिए चल दिए। कई दिन की यात्रा के बाद वे एक बड़े नगर में रात्रि बिताने के लिए रुके। संयोग से वहां के युवराज को उदरशूल हो गया। वैद्यों-हकीमों ने युवराज के अनेक उपचार किए, पर समस्त उपचार व्यर्थ सिद्ध हुए। ज्यों-ज्यों दवा की, त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता गया। ___ आखिर एक वृद्ध वैद्य ने राजा से कहा कि यदि बिजौरा मिल सके तो युवराज के प्राण बचाए जा सकते हैं। पर यह बिजौरे का मौसम भी तो नहीं है। बेमौसमी बिजौरा मिले तो कहां से मिले। पर संभव है किसी प्रदेशी व्यापारी के पास प्राप्त हो जाए। एतदर्थ आप नगर में घोषणा करा दें। वैसा ही किया गया। घोषणा की गई कि राजा को जो बिजौरा उपलब्ध कराएगा, उसे बड़ा पुरस्कार दिया जाएगा। धनदत्त के मित्र व्यापारियों के पास बिजौरा था, सो उन्होंने वह राजा को भेंट कर दिया। युवराज उसके सेवन से स्वस्थ हो गया। राजा ने हीरे-मोतियों के थाल भरकर व्यापारियों को दिए। व्यापारियों ने प्रामाणिकता का परिचय दिया और राजा से प्राप्त समस्त धन अपने नगर में लौटकर धनश्री को अर्पित कर दिया और धन प्राप्ति की गाथा भी सुना दी। कुछ दिन बाद धनदत्त भी परदेश से लौट आया। उसका सत्य तो फलवंत हो ही चुका था। सब ओर धनदत्त की सत्यनिष्ठा के चमत्कार की सुगंध फैल गई। धर्मनिष्ठ धनदत्त और धनश्री जगत के समक्ष सत्यनिष्ठा का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत कर आयुष्य पूर्ण कर सद्गति के अधिकारी बने। -धनदत्त रास (कविवर समयसुन्दर कृत) (क) धनदेव जयत्थल नगर के श्रेष्ठी विशाखदत्त का पुत्र, एक अस्थिर-चित्त और शंकाशील पुरुष! (देखिए-संवर) (ख) धनदेव हसंतीपुर नगर का रहने वाला एक तरुण, जिसने संसार के छलछद्म को देखकर दीक्षा धारण की। भवान्तर में केवलज्ञान प्राप्त कर वह सिद्ध हुआ। (देखिए-मदन) (ग) धनदेव प्रतिष्ठानपुर नगर के सेठ धनसार का पुत्र । (देखिए-धन्य जी) (घ) धनदेव मौर्य ग्रामवासी वासिष्ठ गोत्रीय एक ब्राह्मण और षष्ठम् गणधर मंडितपुत्र के जनक। (देखिए-मंडितपुत्र) -आवश्यक चूर्णि ...270 ... जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy