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________________ धनपति - उज्जयिनी नगरी का एक श्रीसम्पन्न श्रेष्ठी। (देखिए-धनसागर) धनपति कुमार कनकपुर नगर का राजकुमार। उसके पिता का नाम वैश्रमण तथा माता का नाम श्रीदेवी था। उसके पितामह प्रियचंद्र नगरनरेश थे। पितामही का नाम सुभद्रा था। यह पूरा राजपरिवार जिनधर्मानुरागी था। धनपतिकुमार अत्यन्त सुरूप और गुणवान युवक था। राजा से लेकर रंकपर्यन्त वह सभी की प्रीति का पात्र था। ___ एक बार श्रमण भगवान महावीर अपने शिष्य समुदाय के साथ कनकपुर नगर के श्वेताशोक उद्यान में पधारे। जन समुदाय भगवान के दर्शनों के लिए उद्यान में उपस्थित हुआ। राजकुमार धनपतिकुमार भी भगवान के दर्शनों के लिए उद्यान में गया। भगवान महावीर का उपदेश सुनकर उसे बड़ा हर्ष हुआ। उसने श्रावक के द्वादशव्रत भगवान से अंगीकार किए। जनसमुदाय और राजकुमार के लौट जाने के पश्चात् इन्द्रभूति गौतम ने भगवान से धनपति कुमार के पूर्वभव के बारे में पूछा । भगवान ने धनपति कुमार का पूर्वभव वर्णित करते हुए फरमाया-गौतम ! मणिचयिका नामक नगरी में मित्र नाम का राजा राज्य करता था। एक बार मित्र राजा के महल में एक मासोपवासी अणगार भिक्षा के लिए पधारे। मुनि का नाम संभूतिविजय था। राजा ने उत्कृष्ट भावों से मुनि को आहार दान दिया। उक्त सुपात्रदान से मित्र राजा ने महान पुण्यों का संचय किया। वहां से आयुष्य पूर्ण कर मित्र राजा ही यहां धनपति कुमार के रूप में जन्मा है। गौतम स्वामी के अगले प्रश्न के उत्तर में भगवान ने स्पष्ट किया कि धनपति कुमार कालान्तर में दीक्षा ग्रहण कर मोक्ष पद प्राप्त करेगा। धनपति कुमार का अतीत और भविष्य सुनकर समाहित चित्त बने गौतम स्वामी स्वाध्याय और ध्यान में संलग्न हो गए। कुछ समय कनकपुर में विराजकर भगवान महावीर स्वामी अन्यत्र विहार कर गए। किसी समय धनपतिकुमार पौषधशाला में पौषध की आराधना में लीन थे। आध्यात्मिक चिन्तन करते हुए उन्हें विचार उत्पन्न हुआ-धरा के वे भूभाग कितने पुण्यशाली हैं, जहां पर भगवान महावीर विचरण करते हैं! धन्य हैं वे लोग जो भगवान के दर्शन करते हैं और उनकी वाणी को सुनकर अपने कानों को पवित्र करते हैं! यदि भगवान यहां पधारें तो मैं भी उनके दर्शन करके धन्य बनूं और उनके चरणों में प्रव्रजित बनकर आत्मकल्याण करूं! कहावत है कि भक्त की पुकार भगवान अवश्य सुनते हैं। धनपति कुमार की पुकार भी भगवान ने सुनी और वे कनकपुर नगर में पदार्पित हुए। इससे धनपति कुमार की प्रसन्नता का पार न रहा। वह भगवान के श्री चरणों में पहुंचा। उपदेश सुनकर उसका वैराग्य प्रखर हो गया। परिजनों की अनुमति लेकर वह प्रव्रजित हो गया। उसने कई वर्षों तक उत्कृष्ट संयम का पालन किया और अन्त में मोक्ष प्राप्त किया। -विपाकसूत्र, द्वि.श्रु., अ.6 (क) धनपाल हस्तिनापुर का एक सार्थवाह। (देखिए-जयचंद) ... जैन चरित्र कोश ... -- 271 ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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