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________________ पद्मावती नामक राजकन्या से उनका पाणिग्रहण हुआ। तिरासी लाख पूर्व की अवस्था तक प्रभु राजपद पर रहे। तदनन्तर दीक्षित हुए। केवलज्ञान प्राप्त कर धर्मतीर्थ के संस्थापक हुए। चौरासी लाख पूर्व का कुल आयुष्य पूर्ण कर प्रभु निर्वाण को उपलब्ध होंगे। देवराय अठारहवें विहरमान तीर्थंकर श्री महाभद्र स्वामी के जनक। (दखिए-महाभद्र स्वामी) देवर्द्धिगणि 'क्षमाश्रमण' (आचार्य) वी.नि. की दसवीं शताब्दी में हुए एक युगान्तरकारी और क्रान्तद्रष्टा आचार्य। वे अन्तिम पूर्वधर आचार्य माने जाते हैं। आचार्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण से पूर्व आगम श्रुत-परम्परा के आधार पर सुरक्षित थे। परन्तु स्मरण-शक्ति का निरन्तर ह्रास हो रहा था और अमूल्य श्रुत अंश-अंश कर विलुप्त होता जा रहा था। समय-समय पर उपस्थित होने वाले दुर्भिक्ष भी श्रुत-राशि के विलुप्त होने के प्रमुख कारण थे। भगवान महावीर के निर्वाण की दसवीं शताब्दी में भी देश में भयंकर दुर्भिक्ष की स्थिति उत्पन्न हुई। कल्पनीय आहार की प्राप्ति के अभाव में अनेक श्रुतधर स्थविर अनशन सहित स्वर्गवासी हो गए। दुर्भिक्ष की परिसमाप्ति पर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने श्रुत-सुरक्षा के विषय में विशद चिन्तन किया और आगम साहित्य को लिपिबद्ध करने का निर्णय किया। संघ में उनके निर्णय का स्वागत किया गया। देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने वल्लभी नगरी में श्रमण सम्मेलन आहूत किया और पूर्ववर्ती स्कन्दिली वाचना को प्रमुख रखकर उन्होंने वाचना क्रम प्रारंभ किया। प्रथम बार जिनवाणी को लिपिबद्ध पुस्तकारूढ़ किया गया। वैसा करने से आगम वाणी में स्थिरता और एकरूपता आ गई। वी.नि. की नौवीं शताब्दी में आचार्य स्कन्दिल के समय में ही आचार्य नागार्जुन के नेतृत्व में भी वाचना हुई थी। दो अलग-अलग जगहों पर वाचना होने से स्कन्दिली और नागार्जुनीय वाचनाओं में पाठ भेद रह गया था। प्रस्तुत वाचना में आचार्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने पाठ भेद की जटिलता को समन्वयात्मक पद्धति से सरल बना दिया। उन्होंने आचार्य स्कन्दिल की वाचना को प्रमुख रखते हुए नागार्जुनीय वाचना को पाठ भेद अथवा पाठान्तर के रूप में आगमों में स्थान प्रदान किया। . आचार्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की इस सम्यक् नीति को संघ में सर्वत्र सम्मान मिला। वर्तमान में उपलब्ध विशाल आगम साहित्य देवर्द्धिगणि की दूरदर्शिता से ही संरक्षित और सुरक्षित रह पाया है, जो जिनशासन पर उनका महान उपकार है। ___ वर्तमान में मूल आगमों में स्थान प्राप्त नन्दी सूत्र के निर्वृहणकर्ता आचार्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ही थे। इस सूत्र में पांच ज्ञान का विशद और सरल विश्लेषण हुआ है। ___ आचार्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के गृहस्थ जीवन के बारे में प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध नहीं है। कल्प सूत्र स्थविरावली के अनुसार वे काश्यप गोत्रीय थे। श्रुति परम्परा के अनुसार वे सौराष्ट्र प्रान्त के थे। उनके पिता का नाम कामर्द्धि और माता का नाम कलावती था। वी.नि. 980 में देवर्द्धिगणि के नेतृत्व में आगमों को लिपिबद्ध किया गया। वी.नि. 1000 के लगभग उनका स्वर्गवास अनुमानित है। उनके निर्वाण के पश्चात् पूर्वो का ज्ञान विलुप्त हो गया। -नन्दी सूत्र स्थविरावली ... 256 ... am. जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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