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________________ देवशर्मा ब्राह्मण भगवान महावीर के समय का एक ब्राह्मण। भगवान महावीर का निर्वाण समय जब सन्निकट था, तब भगवान ने इंद्रभूति गौतम को निकट के गांव में रहने वाले देवशर्मा को प्रतिबोध देने के लिए भेजा। देवशर्मा को प्रतिबोध देकर गौतम वापिस लौटने लगे तो उन्हें भगवान के निर्वाण का समाचार मिला। भगवान के प्रति गौतम के हृदय में अनन्य अनुराग था। उस समाचार को सुनकर गौतम वज्राहत हो गए करने लगे। अपने परमोपकारी गुरु को आर्त्तध्यान में रत देखकर देवशर्मा ने प्रार्थना की, प्रभो ! आप तो परमज्ञानी हैं, संयोग और वियोग के यथार्थ का पूर्ण बोध आप को है ! गुरु के वियोग पर क्या यह उचित है कि आप ऐसे विलाप करें? ___ अपने ही प्रतिबोधित शिष्य से प्रतिबोध का मन्त्र पाकर इंद्रभूति ने आर्तध्यान को दूर कर दिया और शुक्ल ध्यान में प्रवेश कर क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ हो केवली बन गए। देवशर्मा ने भी जिनधर्म अंगीकार कर आत्मकल्याण किया। -महावीर चरित्र देवसेन उज्जयिनी नगरी का एक राजकुमार। (देखिए-भीमसेन) देवसेन राजा पंचम् विहरमान तीर्थंकर श्री सुजात स्वामी के जनक। (देखिए-सुजात स्वामी) देवसेना पंचम् विहरमान तीर्थंकर श्री सुजात स्वामी की जननी। (देखिए-सुजात स्वामी) देवानंद तेरहवें विहरमान तीर्थंकर श्री चंद्रबाहु स्वामी के जनक। (देखिए-चंद्रबाहु स्वामी) देवानंदा ब्राह्मणकुण्ड ग्राम में रहने वाले ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी। भगवान महावीर जब ब्राह्मणकुण्ड ग्राम में पधारे तो ग्राम के हजारों नर-नारी उनके दर्शन करने तथा उनका उपदेश सुनने उनके पास गए। देवानंदा और ऋषभदत्त भी भगवान की पर्युपासना के लिए गए। समवसृत महावीर को देखकर देवानंदा में विशिष्ट प्रकार का वात्सल्य भाव उमड़ आया। वह अपलक महावीर को निहारती रह गई। उसकी रोमराजि से हर्ष और अपनत्व का सागर उमड़ पड़ा। आंखों से अश्रुधार और स्तनों से दुग्ध धाराएं छलक पड़ीं। उसका रोम-रोम पुलकित हुआ जा रहा था। देवानंदा की इस अद्भुत दशा को देखकर गौतम स्वामी ने प्रभु से उसका कारण जानना चाहा। प्रभु ने स्पष्ट किया-गौतम ! देवानंदा मेरी मां है। इसके गर्भ में मैंने बयासी दिन-रात बिताए हैं। इन्द्र ने इस विचार से कि तीर्थंकर क्षत्रिय कुल में ही जन्म लेते हैं, हरिणगमेषी देव से मेरा साहरण क्षत्राणी त्रिशला के गर्भ में कराया। देवानंदा को चौदह स्वप्न दिखाई देना और बयासीवीं रात्रि में उन स्वप्नों को लौटते हुए देखना मेरे इस कथन का प्रमाण है। .... जैन चरित्र कोश.... -- 257 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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