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________________ (छ) जितशत्रु चम्पानगरी का एक प्राचीन नरेश, जो अपने सुबुद्धि नामक प्रधान से तत्व दर्शन का बोध पाकर सिद्धबुद्ध बना था। (दखिए-सुबुद्धि प्रधान) (ज) जितशत्रु कांपिल्यपुर का राजा। वह पूर्वजन्म में प्रभु मल्लि के जीव महाबल राजा का अंतरंग सखा था। पूर्वजन्म का स्नेह वर्तमान जन्म में भी प्रसंग पाकर उभर आया। राजा के महल में एक बार चोक्खा नाम की परिव्राजिका आई। वह शौचमूलक धर्म को ही धर्म कहती थी। पूर्व में वह भगवती मल्लि से भी मिल चुकी थी और उनसे संवाद-वार्ता में पराजित हो चुकी थी। राजा ने चोक्खा से उस द्वारा देखी गई किसी अपूर्व वस्तु के बारे में पूछा तो चोक्खा ने भगवती मल्लि के रूप-गुणों की प्रशंसा करते हुए कहा, वैसा रूप जगतितल पर दुर्लभ है। सुनकर जितशत्रु मल्लि को पाने के लिए मचल उठा। उसने महाराज कुंभ के पास दूत भेजा। कुंभ की अस्वीकृति से खिन्न बने जितशत्रु ने भारी सेना के साथ मिथिला को घेर लिया। आखिर भगवती मल्लि के प्रयास से राजा जितशत्रु प्रतिबुद्ध और संयम धारण कर सिद्ध हुआ। (देखिए-मल्लिनाथ तीर्थंकर) (झ) जितशत्रु उज्जयिनी नगरी का राजा जो मल्लविद्या का प्रेमी था। (देखिए-अट्टणमल्ल) () जितशत्रु ____ अवन्ती नगरी का राजा। (देखिए-अतूंकारी भट्टा) । (ट) जितशत्रु श्रावस्ती नरेश जितशत्रु, जो बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी के शासनकाल में हुए तथा जिनके पुत्र •स्कन्दककुमार तथा पुत्री पुरन्दरयशा ने भगवान के पास आर्हती दीक्षा ली थी। (ठ) जितशत्रु द्वितीय तीर्थंकर भगवान अजितनाथ के जनक। (ड) जितशत्रु कलिंगाधिपति। राजकुमारी यशोदा, जिसके साथ वर्धमान का पाणिग्रहण हुआ था, इन्हीं जितशत्रु नरेश की पुत्री थी। ____धर्मोद्योत करते हुए भगवान महावीर अपने शिष्य समूह के साथ कलिंग में पधारे और कुमारी पर्वत (वर्तमान नाम उदयगिरि) पर समवसृत हुए। प्रभु के पदार्पण का संवाद सुनकर जितशत्रु हर्षाभिभूत हो उनके वन्दन के लिए गया। प्रभु का प्रवचन सुनकर वह प्रतिबुद्ध हुआ और राज्य त्याग कर मुनिधर्म में प्रव्रजित हो गया। प्रव्रजित होकर जितशत्रु तप-संयम की आराधना में तल्लीन हो गया। -तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (ढ) जितशत्रु राजा __चिकित्सिका नगरी के एक धर्मात्मा राजा। एक बार महाराज जितशत्रु ने उत्कृष्ट भावों से धर्मवीर्य नामक एक मासोपवासी अणगार को आहार देकर अतिशय शुभ कर्मों का संचय किया। परिणामतः वे भवान्तर ... जैन चरित्र कोश ... -.-201 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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