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________________ में चम्पानगरी में राजकुमार महाचन्द के रूप में जन्मे, जहां उन्होंने यथासमय भगवान महावीर से श्रमण धर्म अंगीकार कर परमपद प्राप्त किया। (देखिए-महाचन्द कुमार) -विपाक सूत्र, द्वि.श्रु.,अ.9 (क) जितारि राजा श्रीपुर नगर का एक राजा, जो धर्म का विश्वास करने वाला नहीं था पर महामंत्री मतिसागर के द्वारा धर्म की महिमा सिद्ध कर दिए जाने पर संसार त्याग कर मुनि बन गया और उसी भव में मोक्ष गया। (दखिएमतिसागर) (ख) जितारि राजा सावत्थी नरेश। तृतीय तीर्थंकर संभवनाथ के पिता। जिनकुशल सूरि (आचार्य) 'छोटे दादा' नाम से श्वेताम्बर मंदिरमार्गी परंपरा में अर्चित-वन्दित एक प्रभावक जैन आचार्य। मंदिरमार्गी श्वेताम्बर परम्परा में चार दादा गुरुओं की परम्परा है। जिनदत्त सूरि प्रथम और मणिधारी जिनचंद्र सूरि द्वितीय दादा गुरु नाम से सुविख्यात हैं। ये दोनों बड़े दादा गुरु कहलाते हैं। जिनकुशल सूरि छोटे दादा नाम से ख्यात हैं और दादा गुरुओं में उनका क्रम तृतीय है। ___आचार्य जिनकुशल सूरि के गुरु का नाम जिनचंद्र सूरि था, जो 'कलिकाल केवली' उपाधि से अलंकृत थे। आचार्य जिनकुशल सूरि का जन्म छाजेड़ गौत्रीय वैश्य वंश में वी.नि. 1807 में समियाणा नगर में हुआ था। समियाणा के मंत्री जेसल श्रेष्ठी उनके पिता तथा जयंतश्री उनकी माता थी। आचार्य श्री का गृहनाम करमण था। दस वर्ष की अवस्था में करमण दीक्षित हुए और कुशलकीर्ति नाम से जाने गए। आगम-आगमेतर दर्शनों के अध्ययन से वे अपने समय के मान्य विद्वान मुनिवर बने। वी.नि. 1847 में आचार्य पद पर उनकी नियुक्ति हुई और 'जिनकुशल सूरि' उनका नामकरण हुआ। राजस्थान और सिन्ध प्रदेश आचार्य श्री के विहार क्षेत्र रहे। अपने समय के वे एक चमत्कारी आचार्य थे। उनके भक्तों की संख्या विशाल थी। उनका स्वर्गवास देवराजपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में वी.नि. 1859 में हुआ। वर्तमान में कई नगरों में उनकी चरण-पादुकाएं स्थापित हैं, जिनके प्रति काफी लोग श्रद्धाभक्ति रखते हैं। उनकी चरण-पादुकाओं को आज भी चमत्कारी माना जाता है। जिनचंद्र (आचार्य) जैन शासन के एक प्रभावक आचार्य। ये आचार्य मणिधारी जिनचंद्रसूरि से भिन्न थे। इन्हें भी दादा नाम से सम्मान प्राप्त है। चार दादा गुरुओं में इनका चतुर्थ क्रम है। आचार्य जिनचंद्र का जन्म वी.नि. 2065 में वैश्य वंश में बड़ली ग्राम में हुआ। इनके पिता का नाम शाह श्रीवंत और माता का नाम श्रीदेवी था। 8 वर्ष की अवस्था में ये जिनमाणिक्यसूरि के शिष्य बने। 17 वर्ष की अवस्था में खरतरगच्छ मुनि संघ के आचार्य पाट पर नियुक्त हुए। आचार्य जिनचंद्र का व्यक्तित्व प्रभावशाली और प्रवचनशैली आकर्षक थी। एक बड़ा मानव समाज उनसे प्रभावित हुआ। बादशाह अकबर भी उनसे प्रभावित था। कश्मीर जाते हुए अकबर ने आचार्य जिनचंद्र से आशीर्वाद प्राप्त किया था और कश्मीर में सात दिनों के लिए अमारि घोषित की थी। बादशाह की इस ...202 जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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