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________________ साकार हो गया। दरिया के तीव्र प्रवाह में जितशत्रु को बहते देखकर सुकुमालिका संतुष्ट बनकर अपने स्थान पर लौट आई। पुण्योदय से एक काष्ठखण्ड जितशत्रु के हाथ लग गया। वह कई दिन तक दरिया में बहते-बहते आखिर किनारे लग गया। किनारे पर बैठकर वह त्रियाचरित्र पर चिंतन करने लगा। उसे प्रसन्नता और संतोष इसलिए था कि उसकी आंखें खुल गईं थी। संयोग से उस नगर के निःसंतान राजा का उसी दिन अवसान हुआ था। परम्परा के अनुसार नागरिकों ने सुसज्जित अश्व को नए राजा के चयन के लिए छोड़ा हुआ था। अश्व ने जितशत्रु का चयन किया। इस प्रकार जितशत्रु पुनः राजा बन गया। मंत्रियों ने राजा से विवाह करने की प्रार्थना की। पर राजा को तो स्त्रीजाति से ही अविश्वास हो चला था। उसने अविवाहित रहने का ही निर्णय किया। जितशत्रु ने अपने बुद्धिबल से ऐसा सुशासन स्थापित किया कि प्रजा उसकी पूजा करने लगी। उधर पंगु और सुकुमालिका ने गली-गली घूमकर उदर पोषण का विकल्प तलाशा। सुकुमालिका पंगु को कंधे पर बैठाकर चलती। पंगु गीत गाता। गीत समाप्ति पर सुकुमालिका लोगों को कल्पित आत्मकथा सुनाते हुए कहती कि उसके माता-पिता ने उसका विवाह इस पंगु से किया है, पर वह एक पतिव्रता नारी है, उसके लिए अब यह पंगु ही पूज्य है। उसकी कल्पित कथा पर लोग सहानुभूति से भर जाते और उसे धन देते। ____ घूमते-घामते पंगु और सुकुमालिका एक बार उस नगर में पहुंचे, जहां जितशत्रु राजा बना था। इस अनमेल युगल की चर्चा जितशत्रु के कानों तक भी पहुंची। जितशत्रु को विश्वास हो गया कि निश्चित ही यह पंग और सकमालिका ही होने चाहिएं। राजा के आदेश पर इस युगल को दरबार में बलाया गया। हर्षित हो दोनों दरबार में पहुंचे। पंगु ने गीतों से समा बांधा तो सुकुमालिका ने कल्पित आत्मकथा से लोगों की सहानुभूति बटोरी। लोग उसकी दुखद कथा सुनकर दयार्द्र बन गए। पर जितशत्रु ठहाका लगाकर हँसने लगा। सुकुमालिका ने ध्यान से राजा को देखा तो वह उसे पहचान गई। उसके पांव तले की धरा खिसक गई। वह राजा के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगी। आखिर सभासदों की उत्सुकता को शांत करने के लिए राजा ने सुकुमालिका की वास्तविक कथा सुनाई। लोग त्रियाचरित्र का ऐसा विद्रूप सुनकर सुकुमालिका को धिक्-धिक् कहने लगे। राजा ने उसे अपने नगर से निकाल दिया। न्यायनीतिपूर्वक राजधर्म का सुदीर्घ काल तक पालन करते हुए देहोत्सर्ग के पश्चात् राजा सद्गति का अधिकारी बना। -आख्यानक मणिकोश-22-70 (ग) जितशत्रु चम्पानगरी का राजा। (देखिए-ललितांग कुमार) (घ) जितशत्रु क्षितिप्रतिष्ठित नगर का राजा। (देखिए-कनकमंजरी) (ङ) जितशत्रु अढ़ाई हजार वर्ष पूर्व श्रावस्ती नगरी का राजा। (च) जितशत्रु अत्यन्त प्राचीन काल में पाटलिपुत्र का एक न्यायनीतिपूर्वक राज्य करने वाला राजा। (दखिए-आरामशोभा) ...200 - ...जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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