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________________ (ख) काश्यप (गाथापति) इनका परिचय मकाई गाथापति के समान है। (देखिए-मंकाई-गाथापति) –अन्तगडसूत्र वर्ग 6, अध्ययन 4 किंकम गाथापति इनका परिचय मकाई गाथापति के समान है। (देखिए-मंकाई गाथापति) -अन्तगड सूत्र वर्ग 6 किरणवेग तिलकानगरी नरेश महाराज विद्युत्गति का पुत्र । (देखिए-मरुभूति) किरातराज राढ़देश की राजधानी कोटिवर्ष का राजा। किसी समय साकेत नगरी का एक श्रमणोपासक व्यापारी व्यापार के लिए कोटिवर्ष देश में गया। उसने किरातराज को कुछ बहुमूल्य हीरे भेंट किए। किरातराज हीरे पाकर बहुत प्रसन्न हुआ और हीरों के प्रलोभन में भारत आ गया। साकेतनरेश ने उसका आतिथ्य किया। संयोग से उन्हीं दिनों वहां भगवान महावीर पधारे। उमड़ती जनता को देख किरातराज ने जिज्ञासा प्रस्तुत की तो साकेतनरेश ने कहा, हमारे नगर में हीरों का महाव्यापारी आया है। उसी के दर्शनार्थ लोग उमड़ रहे हैं। किरातराज ने भी हीरों के महाव्यापारी से भेंट की इच्छा व्यक्त की। किरातराज जिनदेव श्रावक के साथ भगवान महावीर के पास गया। भगवान ने द्रव्य और भाव रूप हीरों का भेद प्रस्तुत किया और भाव हीरों की महिमा प्रतिपादित की। सुनकर किरातराज कृतकृत्य बन गया और प्रव्रजित बन साधना में संलग्न हो गया। कीचक विराटराज का साला और उसकी सेना का प्रमुख । कीचक इतना शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति था कि उससे विराटराज भी भय मानता था तथा उस द्वारा किए गए न्याय-अन्याय को मान्य करता था। वनवास काल का तेरहवां वर्ष पांचों पाण्डवों ने द्रौपदी के साथ नाम-वेश परिवर्तन कर विराट नगर में बिताया। द्रौपदी विराट नरेश की रानी की परिचारिका बनी थी। उस समय कीचक की कुदृष्टि द्रौपदी के रूप पर पड़ी और वह उस पर मुग्ध हो गया। उसने द्रौपदी से अपना काम-प्रस्ताव कहा। द्रौपदी ने उसे घृणा से अस्वीकार कर दिया। कीचक ने द्रौपदी पर बल प्रयोग करना चाहा और भरी सभा में उसे अपमानित किया। द्रौपदी ने राजा से न्याय की याचना की, पर राजा मौन रहा। इस पर द्रौपदी ने विवश होकर पाचक वेश में रह रहे भीम से अपनी व्यथा कही। भीम ने अवसर साध कर कीचक का वध कर डाला। -जैन महाभारत कीर्तिचन्द्र चम्पा नगरी का राजा। एक न्याय और नीति निपुण नरेश, जिसके साम्राज्य में प्रजा सुखी और सन्तुष्ट थी। राजा कीर्तिचन्द्र का एक छोटा भाई था, जिसका नाम समरविजय था। कीर्तिचन्द्र अपने अनुज पर प्राण लुटाता था और उसे युवराज पद पर आसीन किया था। एक बार दोनों भाई नगर के निकट बहने वाली बरसाती नदी में नौका विहार कर रहे थे। सहसा बाढ़ आ गई और उनकी किश्ती तीव्र वेग से बहकर चम्पानगरी से बहुत दूर निकल गई। जैसे-तैसे दोनों भाइयों को किनारा मिला। चतुर्दिक् सघन वन था। सहसा समरविजय की दृष्टि मणिरत्नों के अकूत ढेर पर पड़ी। मणिरत्नों को देखते ही समरविजय का मन लोभाविष्ट बन गया। उसके मन में अनेक कल्पनाएं जाग उठीं-कि मुझे भाई का वध करके यह मणिरत्नों का ढेर और राज्य प्राप्त कर लेना चाहिए। समरविजय ने तलवार निकालकर भाई पर प्रहार करना चाहा, पर कीर्तिचन्द्र सावधान ... जैन चरित्र कोश .. -- 101 ....
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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