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________________ ओर उसका पर्याप्त झुकाव था। उसके समय के मथुरा से प्राप्त शिलालेखों में से कई जैन शिलालेखों पर उसका नाम भी अंकित है। -मथुरा के शिलालेख (क) कपिल (कपिला) कपिल चम्पानरेश दधिवाहन का राजपुरोहित था और कपिला उसकी पत्नी थी। (देखिए-सुदर्शन सेठ) (ख) कपिल (केवली) उत्तराध्ययन सूत्र में इनका विस्तृत वर्णन है। इनका संक्षिप्त परिचय निम्न रूप में है कौशाम्बी के राजपुरोहित काश्यप ब्राह्मण कपिल के पिता थे। इनकी माता का नाम श्रीदेवी था। मातापिता के लाड़-प्यार के कारण कपिल अपठित रह गए। दुर्दैववश काश्यप अकालकाल-कवलित बन गए। अपठित होने से कपिल अपने पिता का पद न पा सका। एक अन्य पण्डित को राजा ने राजपुरोहित बना दिया। परिणामतः कपिल और उसकी माता आर्थिक संकट से घिर गए। किसी समय नए राजपुरोहित की सवारी निकल रही थी। पुरानी स्मृतियों में खोकर श्रीदेवी साश्रुनयना हो गई। कपिल के पूछने पर उसने बता दिया कि किसी समय तुम्हारे पिता की सवारी ऐसे ही निकलती थी। उनकी मृत्यु के पश्चात् इस पद पर तुम्हारा अधिकार होता। पर तुम तो अपठित हो। इसलिए राजा ने इस नए पण्डित को राजपुरोहित बना दिया है। सुनकर कपिल में पढ़ने की उमंग जागी। उसने संकल्प किया कि वह पढ़कर अपने पिता का उत्तराधिकार प्राप्त करेगा। श्रीदेवी ने उसे अपने पति के मित्र श्रावस्ती निवासी उपाध्याय इन्द्रदत्त के पास अध्ययन के लिए भेज दिया। इन्द्रदत्त ने एक सेठ के यहां कपिल के भोजन और आवास की व्यवस्था करवा दी। कपिल का भोजन एक दासी बनाती थी। दासी युवा थी। कपिल भी युवा था। प्रतिदिन का पारस्परिक मिलन प्रेम में बदल गया। कपिल का मन अध्ययन से भटक गया। भेद खुला तो सेठ ने अपनी सेवाएं वापिस ले लीं। कपिल और दासी को उदर पोषण कठिन हो गया। दासी ने ही इसका समाधान निकाला। उसने कपिल को बताया कि यहां के महाराज प्रतिदिन प्रातः उनके पास सर्वप्रथम पहुंचने वाले ब्राह्मण को दो मासा सोना दान देते हैं। वे महाराज के पास जाएं और सोना प्राप्त करें। कपिल सर्वप्रथम पहुंचने की उमंग में आधी रात को ही राजमहल के द्वार पर पहुंच गया। पहरेदारों ने उसे चोर समझकर पकड़ लिया और प्रातःकाल महाराज के समक्ष पेश किया। राजा के पूछने पर कपिल ने अपनी कहानी अथान्त कह दी। उसकी निश्छलता से राजा बहुत प्रभावित हुआ। उसने कहा, वह जो चाहे मांग ले, उसे मुंह मांगा वरदान मिलेगा। कपिल ने सोचने के लिए कुछ समय मांगा। वह महल के पीछे उद्यान में चला गया। उसने सोचा-चार मासा सोना मांग लूँ? पर चार से क्या होगा? आठ मांग लूं? यूं सोलह, बत्तीस, चौंसठ से बढ़ते-बढ़ते वह पूरा राज्य मांगने को तैयार हो गया। पर उसी क्षण उसकी विचारधारा बदल गई। विचार मुड़े। उसने स्वयं को धिक्कारा। भाव दशा निर्मल, सुनिर्मल और परम सुनिर्मल बन गई। कर्मकाराएं कट गईं। कपिल को केवलज्ञान हो गया। देव-दुंदुभियां बज उठीं। राजा, प्रजा और देव कपिल के चरणों में नत हो गए। - किसी समय कपिल केवली एक जंगल से गुजर रहे थे। वहां उन्हें बलभद्र प्रमुख पांच सौ तीस चोरों ने घेर लिया। कपिल ने ऐसा वैराग्योत्पादक गीत गाया जिससे वे पांच सौ तीस चोर प्रबुद्ध होकर मुनि बन गए। दीर्घ काल तक धर्मोपदेशों से भव्यों का उद्धार करते हुए कपिल सिद्ध हुए। -उत्तराध्ययन सूत्र ...जैन चरित्र कोश ... ... 83 ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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