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________________ (म) कपिल (ब्राह्मण) एक श्रमणोपासक ब्राह्मण । उसका पुत्र कल्पक नन्द साम्राज्य के प्रथम नरेश नंद का मंत्री था। अनुमानतः कपिल सर्वज्ञ जंबूस्वामी के समय का श्रमणोपासक था। -परिशिष्ट पर्व, सर्ग-7 कमठ ___भगवान पार्श्वकालीन एक तापस। पार्श्व चरित्र के अनुसार भगवान पार्श्व और कमठ के जीव का विगत कई जन्मों से परस्पर किसी न किसी रूप में सम्बन्ध रहा। अहंकार और द्वेष के वश होकर कमठ का जीव पार्श्व के जीव को विभिन्न प्रकार से प्रताड़नाएं देता रहा, पर पार्श्व का जीव समता और क्षमा भाव के द्वारा निरन्तर आत्मविकास करता रहा। किसी अज्ञात पुण्य के फलस्वरूप मानव भव प्राप्त कर कमठ ने तापसवृत्ति अंगीकार की और वह अज्ञान तप करने लगा। पंचाग्नि तप से उसने लोक में पर्याप्त यश अर्जित कर लिया। पंचाग्नि में जल रहे एक बड़े लक्कड़ में रहे हुए सर्पयुगल का भेद खोलकर राजकुमार पार्श्व ने कमठ के अज्ञान तप से जनता को सावधान किया। तप से हो रही हिंसा को साक्षात् देखकर जनता ने कमठ को धिक्कारा। उसका यश अपयश में बदल गया। निरंतर आर्त और रौद्रध्यान में रहकर अज्ञान तप करते हुए कमठ ने आयुष्य पूर्ण किया। अज्ञान तप के फलस्वरूप वह भवनवासी देवों में मेघमाली नामक देव बना। वहां भी उसके मन में प्रभु पार्श्व के प्रति रहा हुआ ईर्ष्याभाव कम नहीं हुआ। एक बार उसने घनघोर वर्षा कर प्रभु पार्श्व को जल में डुबोना चाहा। आखिर धरणेन्द्र पद्मावती की प्रभु-भक्ति के समक्ष कमठ भयभीत बन गया और प्रभु को उपसर्ग मुक्त कर तथा क्षमा मांग कर अपने स्थान पर चला गया। -तीर्थंकर चरित्र कमल श्रीपुर नगर के बारहव्रती श्रावक श्रीपति श्रेष्ठी का इकलौता पुत्र, एक उद्दण्ड, अविनीत और दुर्व्यसनी युवक। ऐसी कोई बुराई नहीं थी, जो उसके जीवन में नहीं थी। श्रीपति अग्रगण्य श्रावक थे। सभी संत उस पर कृपावर्षण करते थे। कितने ही संतों ने कमल को सन्मार्ग पर लाने का प्रयास किया, पर चीकने घड़े पर जैसे जलबिन्दु नहीं ठहरता, वैसे ही कमल पर किसी भी संत की शिक्षा का प्रभाव नहीं पड़ा। एक बार एक आचार्य श्रीपुर नगर में पधारे। उन्होंने कमल से कहा, कोई एक नियम तुम धारण कर लो! उपहास की शैली में कमल ने कहा, 'तो मेरे पड़ौसी कुम्हार का मुंह देखे बिना भोजन नहीं करना' यह नियम करा दीजिए। ज्ञानी आचार्य ने कमल को नियम करा दिया और कहा, छोटे से छोटे नियम का भी श्रद्धा से पालन किया जाए तो उसका महान फल होता है। कमल कुम्हार का मुंह देखकर प्रतिदिन भोजन करता। एक दिन वह भोजन करने बैठा तो उसे नियम स्मरण आया। उस समय कुम्हार घर पर नहीं था। उसे ज्ञात हुआ कि वह तो जंगल में मिट्टी लेने गया है। कमल दौड़कर जंगल में पहुंचा। उधर मिट्टी खोदते हुए कुम्हार को पर्याप्त धन मिला था। दूर से ही कमल ने कुम्हार का मुंह देखा और 'देख लिया-देख लिया' कहकर घर की ओर भागा। कुम्हार चिन्तित हुआ कि कमल बात फैला देगा तो धन उसे राजकोष में देना पड़ेगा। वह दौड़ा-दौड़ा कमल के पास पहुंचा और बोला, हम आधा-आधा धन बांट लेंगे, किसी से मत कहना! कमल पूरी बात समझ गया। उसने कुम्हार से आधा धन प्राप्त कर लिया। रात्रि में अपनी शैया पर लेटा हुआ कमल अचिन्त्य धन की प्राप्ति पर प्रसन्न हो रहा था। चिन्तन .... 84 - - जैन चरित्र कोश ...
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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