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________________ और वाक्चातुर्य पर मुग्ध होकर क्षितिप्रतिष्ठितपुर के राजा जितशत्रु ने उससे विवाह किया था । यही कनकमंजरी भवान्तर में कनकमाला बनी और राजा जितशत्रु प्रत्येकबुद्ध नग्गति बने । - उत्तराध्ययन टीका (भावविजयकृत) कनकमाला मेघकूट नगर के विद्याधर राजा मेघसंवर की अपुत्रवती पटरानी, जिसने रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न कुमार का पालन-पोषण किया था । कनकरथ एक राज्यलिप्सु राजा, अपने पुत्रों को इस विचार से मार देता था कि वे उसके राज्य पर उत्तराधिकार न जताने लगें। (देखिए -तेतलीपुत्र) कनकसुन्दरी चम्पानगरी के श्रमणोपासक श्रेष्ठी जिनदत्त की पुत्री, एक बुद्धिमती और धर्मसमर्पिता बाला । विवाह अयोध्या नगरी के श्रेष्ठी धनदत्त के पुत्र मदनकुमार से सम्पन्न हुआ था । पर मदनकुमार विवाह से पूर्वी वेश्यापुत्री गुलाब के प्रेमपाश में बंधा था। गुलाब की माता गणिका कामलता को जब यह ज्ञात हुआ कि उसकी पुत्री के प्रेमी मदनकुमार का विवाह चम्पानगरी की कनकसुन्दरी नामक अनिंद्य सुन्दरी बाला से सम्पन्न होने जा रहा है तो उसने मदनकुमार के कान भर दिए कि कनकसुन्दरी तो कानी है और उसके समकक्ष नहीं है। कानों के कच्चे मदनकुमार ने कनकसुन्दरी से विवाह तो कर लिया पर उससे बात करना तो दूर, उसका घूंघट तक उठाकर नहीं देखा कि वह एकाक्षी ही है। विवाह के पश्चात् भी गुलाब के प्रेम-पाश से वह मुक्त नहीं हुआ। I कनकसुन्दरी जिनोपासिका थी । उसने पतिविमुखता को अपने कर्मों का ही दोष माना । वह धर्मध्यानपूर्वक जीवनयापन करने लगी। किसी समय कौमुदी महोत्सव हेतु जाते हुए नगरनरेश की दृष्टि कनकसुन्दरी के रूप पर पड़ी। उसने जाल फैलाकर कनकसुन्दरी को अपना बनाना चाहा । पर कनकसुन्दरी ने अपनी बुद्धिमत्ता से राजा को सुपथ पर ला दिया और राजा ने उसे बहन का मान देकर सम्मानित किया । आखिर कनकसुन्दरी ने मदनकुमार को भी सुपथगामी बना लिया। मदनकुमार ने जब अपनी पत्नी का घूंघट उठाया तो उसे सर्वांगपूर्ण सुन्दरी देखकर वह चकित रह गया। गणिका के कपटजाल को जानकर उसे उससे घृणा हो गई और अपनी पत्नी के साथ वह सानन्द जीवनयापन करने लगा । कनकसुन्दरी ने अपने पति को भी जिन धर्म का उपासक बना दिया। धर्म-ध्यानपूर्वक जीवन यापन करते हुए आयु के अंतिम पक्ष में कनकसुन्दरी और मदन कुमार ने दीक्षा धारण की और अंत में मोक्षपद प्राप्त किया । कनका (आर्या ) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है । (देखिए - कमला आर्या) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 5 अ. 15 कनिष्क (राजा) मथुरा नगरी पर ई. की प्रथम सदी से लेकर तृतीय सदी तक कुषाण राजाओं का शासन रहा, जिनमें कनिष्क नामक राजा का विशेष प्रभाव रहा। वह सर्वधर्म समन्वय की नीति का संवाहक था । जैन धर्म की ... 82 • जैन चरित्र कोश •••
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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