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________________ अस्मिन् 76 अस्मिन्-v.1.46 (प्रथमासमर्थ प्रातिपादिकों से) सप्तम्यर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होते है, यदि 'वृद्धि' ब्याज के रूप में दिया जाने वाला द्रव्य,'आय' =जमीदारों का भाग, 'लाभ' = मूल- द्रव्य के अतिरिक्त प्राप्य द्रव्य, शुल्क' = राजा का भाग तथा 'उपदा' = घूस दी जाने वाली क्रिया के कर्म वाच्य हों तो)। अस्मिन् -v.ii. 45 (प्रथमासमर्थ दशन् शब्द अन्त वाले प्रातिपदिक से) सप्तम्यर्थ में (ड प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ अधिक समानाधिकरण वाला हो तो)। अस्मिन् -V.1.2 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से) सप्तम्यर्थ में (कन प्रत्यय होता है,यदि वह प्रथमासमर्थ बहुल करके सज्जाविषय में अन्नविषयक हो तो)। अस्मिन् -V. 1.94 (है' क्रिया के समानाधिकरण वाले प्रथमासमर्थ प्राति- पदिक से षष्ठ्यर्थ तथा) सप्तम्यर्थ में (मतुप् प्रत्यय होता अस्मे-III. 1. 122 स्म शब्दरहित (पुरा शब्द) उपपद रहते (अनद्यतन भूत- काल में धातु से लङ्ग प्रत्यय विकल्प से होता है और चकार से लट् भी होता है)। अस्मै -IV.iv.66 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से) इसके लिए नियमपूर्वक दिया जाता है, विषय में ठक् प्रत्यय होता है)। अस्य-I. 1.69 (नपुंसकलिङ्ग शब्द नपुंसकलिङ्गभिन्न अर्थात् स्त्रीलिङ्ग पुंल्लिङ्ग शब्दों के साथ शेष रह जाता है, तथा स्त्रीलिङ्ग पुंल्लिङ्ग शब्द हट जाते हैं,एवं) उस नपुंसकलिङ्ग शब्द को (एकवत् कार्य भी विकल्प करके हो जाता है, यदि उन शब्दों में नपुंसक गुण एवं अनपुंसक गुण का ही वैशिष्ट्य हो,शेष प्रकृति आदि समान ही हो)। अस्य -III. iv. 32 (वर्षा का प्रमाण गम्यमान हो तो कर्म उपपद रहते परी धातु से णमुल् प्रत्यय होता है तथा) इस पूरी धातु के (अकार का लोप विकल्प से होता है)। अस्य - IV.ii. 23 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिकों से) षष्ठ्यर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ देवताविशेषवाची प्रातिपदिक हो)। अस्य-IV. 1.54 (प्रथमासमर्थ छन्दोवाची प्रातिपदिकों से) षष्कार्थ में (यथाविहित अण प्रत्यय होता है, प्रगाथों के आदि के अभिधेय होने पर)। अस्य - IV. iii. 52 (प्रथमासमर्थ कालवाची सोढ अर्थात् 'जिसे सहन किया गया' समानाधिकरण प्रातिपदिक से) षष्ठ्यर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है)। . अस्य-IV. iii. 89 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से) षष्ठ्यर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है, यदि प्रथमासमर्थ 'निवास' हो तो)। अस्य-IV. iv.51 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से) षष्ठ्यर्थ में (ठक प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ 'जीतने योग्य' हो तो)। " अस्य - IV. iv. 88 . (आबर्हि = उत्पाटनीय समानाधिकरण प्रथमासमर्थ मल प्रातिपदिक से) षष्ठ्यर्थ में (यत् प्रत्यय होता है)। अस्य-v.i.16 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिकों से) षष्ठ्यर्थ (तथा सप्तम्यर्थ) में (यथाविहित प्रत्यय होता है,यदि वह प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक स्यात् अर्थात् 'सम्भव हो', क्रिया के साथ समानाधिकरण वाला हो तो)। अस्य-V.1.55 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिकों से) षष्ठ्यर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ भाग, मूल्य तथा वेतन समानाधिकरण हो तो)। अस्य-v.i. 56. (प्रथमासमर्थ परिमाणवाची प्रातिपदिकों से) षष्ठ्यर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होते हैं)। अस्य- (प्रथमासमर्थ कालवाची प्रातिपदिक से) षष्ठ्यर्थ में (यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है. ब्रह्मचर्य गम्यमान होने पर)। अस्य-V.i. 103 (प्रथमासमर्थ समय प्रातिपदिक से) षष्ठ्यर्थ में (यथाविहित ठज प्रत्यय होता है,यदि वह प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक प्राप्त समानाधिकरण वाला हो तो)। अस्य-v.ii. 35 (प्रथमासमर्थ संज्ञात समानाधिकरण वाले तारकादि प्रातिपदिकों से) षष्ठ्यर्थ में (इतच् प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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