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________________ अस्य अन्विोः . 77 अस्य-V.ii.79 अस्याम् - IV. 1.56 (प्रथमासमर्थ शृङ्खल प्रातिपदिक से) षष्ठ्यर्थ में (कन् (प्रथमासमर्थ प्रहरण समानाधिकरण वाले प्रातिपदिकों प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ बन्धन बन रहा हो से) सप्तम्यर्थ में (ण प्रत्यय होता है) यदि 'अस्याम' से तथा जो षष्ठी से निर्दिष्ट हो वह करभ ऊंट का छोटा निर्दिष्ट (क्रीडा) हो। बच्चा हो तो) अस्याम् - IV. ii. 57 अस्य-V.ii.94 (प्रथमासमर्थ क्रियावाची धजन्त प्रातिपदिक से) सप्त(है' क्रिया के समानाधिकरणवाले प्रथमासमर्थ म्यर्थ में (ज प्रत्यय होता है)। प्रातिपदिकों से) षष्ठ्यर्थ (तथा सप्तम्यर्थ) में (मतुप् प्रत्यय अस्वाइपूर्वपदात् - IV.i. 53 होता है)। स्वाङ्गभिन्न पद जिसके पूर्वपद में है, ऐसे (अन्तोदात्त क्त अस्य-VI.i. 38 प्रत्ययान्त बहुव्रीहि समास वाले) प्रातिपदिक से (विकल्प इस वय के यकार को (कित् लिट् के परे रहते विकल्प से स्त्रीलिङ्ग में डोष् प्रत्यय होता है)। करके वकासदेश भी हो जाता है)। अस्वाङ्गम् -VI. ii. 183 अस्य-VI. iv.45 (प्र उपसर्ग से उत्तर) अस्वाङ्गवाची उत्तरपद को (सजा(क्तिच प्रत्यय परे रहते अङ्गसंज्ञक सन् धातु को विषय में अन्तोदात्त होता है)। आकारादेश हो जाता है तथा विकल्प से) इसका (लोप तथा विकल्प स) इसका (लाप ...अस्वैरी-III.I. 119 भी होता है)। देखें-पदास्वैरि०. III. 1. 119 अस्य-VI. iv. 107 ...अह... -VIII. 1. 24 (असंयोग पूर्व वाले) उकारान्त प्रत्यय का (विकल्प देखें-चवाहाo VIII. 1. 24 करके लोप भी होता है,मकारादि तथा वकारादि प्रत्ययों। अह - VIII. i. 61 के परे रहते)। अह (से युक्त प्रथम तिङन्त को विनियोग तथा चकार ...अस्य-VI. iv. 148 से क्षिया अर्थात् शिष्टाचार का व्यतिक्रम गम्यमान होने देखें- यस्य VI. iv. 148 पर अनुदात्त नहीं होता। अस्य - VII. iv. 32 ...अहन् -II. iv.29 अवर्णान्त अङ्ग को (च्चि परे रहते ईकारादेश होता है)। देखें - रात्राहाहाः II. iv. 29 अस्यति ... III. 1.52 ...अहन्..-III. 1. 21 देखें - अस्यतिवक्ति० III. 1. 52 देखें - दिवाविभा० III. ii. 21 अस्यति...-III. iv.57 अहन् -VI. iii. 109 देखें - अस्यतितृषोः III. iv.57 (संख्या, वि तथा साय पूर्ववाले अह्न शब्द को विकल्प अस्यतितृषोः -III. iv.57 करके) अहन् आदेश होता है,(ङि परे रहते)। (क्रिया के उत्तर = व्यवधान में वर्तमान) असु तथा तृष अहन् -VIII. 1.68 धातुओं से (कालवाची द्वितीयान्त शब्द उपपद रहते णमुल अहन् के नकार को (रु होता है)। प्रत्यय होता है)। अहनि -IV. iv. 130 अस्यतिवक्तिख्यातिभ्यः-III. 1.52 (ओजस प्रातिपदिक से मत्वर्थ में यत् और ख प्रत्यय असु,वच्,ख्याञ्- इन धातुओं से उत्तर (च्लि के स्थान होते है),दिन अभिधेय हो तो (वेद-विषय में)। में अङ् आदेश होता है, कर्तृवाची लुङ् परे रहते)। अन्विडो: - VI.i. 180 (तासि प्रत्यय, अनुदात्तेत् धातु.डित् धातु तथा उपदेश अस्यते: - VII. iv. 17 में जो अवर्णान्त - इन से उत्तर लकार के स्थान में जो 'अस क्षेपणे' अङ्गको (अङ परे रहते थक आगम होता सार्वधातुक प्रत्यय, वे अनुदात्त होते है), तथा इङ् धातुओं को छोड़कर।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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