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________________ सक्षायाम् 526 सज्ञासायसूत्राध्ययनेषु सज्ञायाम् -VI.1.213 (मतुप से पूर्व आकार को उदात्त होता है, यदि वह मत्वन्त शब्द स्त्रीलिङ्ग में) सञ्जाविषयक हो तो। सजायाम्-VI. ii. 77 सज्जाविषय में (भी अणन्त उत्तरपद रहते पर्वपद को आधुदात्त होता है, यदि वह अण् कृत्र से परे न हो तो)। सज्ञायाम्- VI. 1. 94 (गिरि तथा निकाय शब्द उत्तरपद रहते) सञ्जाविषय में (पूर्वपद को अन्तोदात्त होता है)। . सजायाम्- VI. ii. 106 (बहुव्रीहि समास में) सज्जाविषय में (पूर्वपद विश्व शब्द को अन्तोदात्त होता है)। सज्ञायाम्- VI. II. 129 समाविषय में (कुल,सूद स्थल, कर्ष-इन उत्तरपद शब्दों को तत्पुरुष समास में आधुदात्त होता है)। .. कूल = किनारा, तालाब। सूद = रसोइया, कुंआ, कर्ष = रेखा खीचना, घसीटना, हल जोतना। सज्ञायाम्- VI. I. 146 (गति, कारक तथा उपपद से उत्तर क्तान्त उत्तरपद को अन्तोदात्त होता है। सञ्जाविषय में (आचितादि शब्दों को छोड़कर)। आचित = पूर्ण, भरा हुआ, ढका हुआ। सज्ञायाम्-VI. ii. 159 (नञ् से परे आक्रोश गम्यमान हो तो) सञ्जाविषय में (वर्तमान उत्तरपद को अन्तोदात्त होता है)। सप्तायाम्- VI. I. 165 सज्जाविषय में (उत्तरपद मित्र तथा अजिन शब्दों को बहुव्रीहि समास में अन्तोदात्त होता है)। सप्ज्ञायाम्-VI. ii. 183 (प्र उपसर्ग से उत्तर अस्वागवाची उत्तरपद को) सज्जाविषय में (अन्तोदात्त होता है)। अजिन = पशुचर्म। सज्ञायाम्-VI. 1.4 (मनस् शब्द से उत्तर) सञ्जाविषय में (तृतीयाविभक्ति का उत्तरपद परे रहते अलुक् होता है)। सज्ज्ञायाम्-VI. iii.8 (हलन्त तथा अकारान्त शब्द से उत्तर) सज्जाविषय में (सप्तमी विभक्ति का उत्तरपद परे रहते अलुक होता है)। सज्ज्ञायाम्-VI.ili.56. (उदक शब्द को उद आदेश होता है) सज्ञा विषय में, (उत्तरपद परे रहते)। सजायाम्-VI. iii.77 (सह शब्द को स आदेश होता है, उत्तरपद परे रहते) . सञ्जाविषय में। सनायाम्- VI. iii. 116 (वन तथा गिरि शब्द उत्तरपद रहते यथासंख्य करके . . कोटरादि एवं किंशुलकादि गणपठित शब्दों को) सज्जा... विषय में (दीर्घ होता है)। सजायाम्- VI. iii, 124 (अष्टन् शब्द को उत्तरपद परे रहते) सञ्जाविषय में (दीर्घ होता है)। सज्ञायाम्-VI. iii. 128 (नर शब्द उत्तरपद रहते) सज्ञाविषय में (विश्व शब्द को दीर्घ होता है)। सज्ज्ञायाम्-VIII. ii. 11 सञ्जाविषय में (मतुप् को वकारादेश होता है)। सजायाम्- VIII. iii. 99 (गकारभिन्न इण तथा कवर्ग से उत्तर सकार को एकार परे रहते) सञ्जाविषय में (मूर्धन्य आदेश होता है)। सजायाम्- VIII. iv.3 (गकारभिन्न पूर्वपद में स्थित निमित्त से उत्तर) सजाविषय में (नकार को णकारादेश होता है)। सज्ञासयसूत्राध्ययनेषु -v.i. 57 (परिमाण समानाधिकरणवाले प्रथमासमर्थ सङ्ख्यावाची प्रातिपदिकों से) सज्जा, सच = समूह, सूत्र तथा अध्ययन के प्रत्ययार्थ होने पर (यथाविहित प्रत्यय होते है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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